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श्रीहरि: #
श्रीगर्ग-संहिता
(गिरिराज खण्ड)
पाँचवाँ अध्याय (पोस्ट
03)
गोपों का श्रीकृष्ण के विषय में संदेहमूलक विवाद तथा श्रीनन्दराज
एवं वृषभानुवर के द्वारा समाधान
श्रीवृषभानुवर उवाच -
को दोषो नन्दराजस्य ज्ञातेस्तं सन्त्यजाम्यहम् ।
गोपेष्टो ज्ञातिमुकुटो नन्दराजो मम प्रियः ॥२६॥
गोपा ऊचुः -
न चेत्त्यजसि तं राजंस्त्यजामस्त्वां व्रजौकसः ।
त्वद्गृहे वर्धिता कन्योद्वाहयोग्या महामुने ॥२७॥
भवता ज्ञातिमुख्येन संपदुन्मदशालिना ।
न दत्ता वरमुख्याय कलुषं तव विद्यते ॥२८॥
अद्य त्वां ज्ञातिसंभ्रष्टं पृथङ्मन्यामहे नृप ।
न चेच्छीघ्रं नन्दराजं त्यज त्यज महामते ॥२९॥
श्रीवृषभानुवर उवाच -
गर्गस्य वाक्यं हे गोप वदिष्यामि समाहितः ।
येन गोपगणा यूयं भवताशु गतव्यथाः ॥३०॥
असंख्यब्रह्माण्डपतिर्गोलोकेशः परात्परः ।
तस्मात्परो वरो नास्ति जातो नन्दगृहे शिशुः ॥३१॥
भुवो भारावताराय कंसादिनां वधाय च ।
ब्रह्मणा प्रार्थितः कृष्णो बभूव जगतीतले ॥३२॥
श्रीकृष्णपट्टराज्ञी या गोलोके राधिकाऽभिधा ।
त्वद्गेहे साऽपि संजाता त्वं न जानासी तां पराम् ॥३३॥
अहं न कारयिष्यामि विवाहमनयोनृप ।
तयोर्विवाहो भविता भाण्डीरे यमुनातटे ॥३४॥
वृन्दावनसमीपे च निर्जने सुन्दरे स्थले ।
परमेष्ठी समागत्य विवाहं कारयिष्यति ॥३५॥
तस्माद्राधां गोपवर विद्ध्यर्द्धाङ्गीं परस्य च ।
लोकचूडामणेः साक्षाद्राज्ञीं गोलोकमन्दिरे ॥३६॥
यूयं सर्वेऽपि गोपाला गोलोकादागता भुवि ।
तथा गोपीगणा गावो गोकुले राधिकेच्छया ॥३७॥
एवमुक्त्वा गते साक्षाद्गर्गाचार्ये महामुनौ ।
तद्दिनादथ राधायां सन्देहं न करोम्यहम् ॥३८॥
वेदवाक्यं ब्रह्मवचः प्रमाणं हि महीतले ।
इति वः कथितं गोपाः किं भूयः श्रोतुमिच्छथ ॥३९॥
वृषभानुवर बोले –नन्दराजका क्या दोष है जिससे मैं उनको
त्याग दूँ ? नन्दराज तो समस्त गोपोंके प्रिय, अपनी जातिके मुकुट तथा मेरे भी परम् प्रिय
हैं ॥ २६ ॥
गोप बोले- राजन् ! महामते ! यदि तुम नन्दराजको नहीं
छोड़ोगे तो हम सब व्रजवासी तुम्हे छोड़ देंगे। तुम्हारे घरमें कन्या बड़ी आयुकी होकर
विवाहके योग्य हो गयी है और तुमने हमारी जातिके प्रधान होकर भी धन-सम्पत्तिके मदसे
मतवाले हो अबतक उसे किसी श्रेष्ठ वरके हाथमें नहीं सौंपा है।
इसलिये तुम्हारे ऊपर पाप चढ़ा हुआ है। महामते नरेश ! आज से हम
तुम्हें जातिभ्रष्ट तथा अपने से अलग मान लेंगे; नहीं तो शीघ्र
नन्दराज को छोड़ दो ॥ २७-२९ ॥
वृषभानुवर ने कहा— गोपगण ! मैं
एकाग्र- चित्त होकर गर्गजीकी कही हुई बात बता रहा हूँ. जिससे शीघ्र ही तुम्हारी चिन्ता-व्यथा
दूर हो जायगी उन्होंने बताया 'असंख्य ब्रह्माण्डोंके अधिपति लोकेश्वर, परात्पर भगवान्
श्रीकृष्ण नन्दगृह में बालक होकर अवतीर्ण हुए हैं। उनसे बढ़कर
श्रीराधाके लिये कोई वर नहीं है । ब्रह्माजीकी प्रार्थनासे भूगिका भार उतारने और कंसादिके वध करनेके लिये भूतल पर श्रीकृष्णका अवतार हुआ है ॥ ३०-३२ ॥
गोलोक में, 'श्रीराधा नाम की जो श्रीकृष्ण की पटरानी हैं, वे ही तुम्हारे
घर में कन्यारूपसे अवतीर्ण हुई हैं। उन 'परा देवी को तुम नहीं जानते। मैं इन दोनोंका
विवाह नहीं कराऊँगा इनका विवाह यमुनातटपर भाण्डीर-वन में होगा
। वृन्दावन के समीप निर्जन सुन्दर स्थल में साक्षात ब्रह्माजी पधार कर श्रीराधा तथा
श्रीकृष्ण का विवाह- कार्य सम्पन्न करायेंगे ॥३३-३५॥
अतः गोपप्रवर ! तुम श्रीराधा को लोकचूडामणि साक्षात् परमात्मा श्रीकृष्ण की
अर्धाङ्गस्वरूपा एवं गोलोकधाम की महारानी समझो। तुम समस्त गोपगण
भी गोलोक में इस भूतलपर आये हो। इसी तरह गोपियाँ और गौएँ भी श्रीराधाकी
इच्छासे ही गोलोकसे गोकुलमें आयी हैं।" यों कहकर साक्षात् महामुनि गर्गाचार्य
जब चले गये, उसी दिन से श्रीराधाके विषयमें मैं कभी कोई संदेह या शङ्का नहीं करता ।
इस भूतलपर ब्राह्मणवचन वेदवाक्यवत् प्रमाण हैं । गोपो ! यह सब रहस्य मैंने तुम्हें
सुना दिया; अब और क्या सुनना चाहते हो ? ॥ ३६ - ३९ ॥
इस प्रकार श्रीगर्गसंहिता में श्रीगिरिराजखण्ड
अन्तर्गत श्रीनारद - बहुलाश्व-संवादमें 'गोपविवाद' नामक पाँचवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥
५ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता पुस्तक कोड 2260 से
🌹💖🥀श्रीराधेकृष्णा भ्याम् नमः 🙏🙏राधे राधे राधे राधे राधे राधे श्रीकृष्ण 🌺🌿🌸
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ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
गोविंदाय नमो नमः 🙏🙏