शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2024

श्रीगर्ग-संहिता (माधुर्यखण्ड) सातवाँ अध्याय (पोस्ट 01)


 

# श्रीहरि: #

 

श्रीगर्ग-संहिता

(माधुर्यखण्ड)

सातवाँ अध्याय (पोस्ट 01)

 

राजा विमल का संदेश पाकर भगवान् श्रीकृष्ण का उन्हें दर्शन और मोक्ष प्रदान करना तथा उनकी राजकुमारियों को साथ लेकर व्रजमण्डल में लौटना

 

श्रीनारद उवाच -
अथ दूतः सिन्धुदेशान् माथुरान्पुनरागतः ।
 चरन् वृन्दावने कृष्णातीरे कृष्णं ददर्श ह ॥ १ ॥
 कृष्णं प्रणम्य रहसि कृताञ्जलिपुटः शनैः ।
 प्रदक्षिणीकृत्य दूतो विमलोक्तमुवाच सः ॥ २ ॥


 दूत उवाच -
स्वयं परं ब्रह्म परः परेशः
     परैरदृश्यः परिपूर्णदेवः ।
 यः पुण्यसंघैः सततं हि दूरः
     तस्मै नमः सज्जनगोचराय ॥ ३ ॥
 गोविप्रदेवश्रुतिसाधुधर्म
     रक्षार्थमद्यैव यदोः कुलेऽजः ।
 जातोऽसि कंसादिवधाय योऽसौ
     तस्मै नमोऽनंतगुणार्णवाय ॥ ४ ॥
 अहो परं भाग्यमलं व्रजौकसां
     धन्यं कुलं नन्दवरस्य ते पितुः ।
 धन्यो व्रजौ धन्यमरण्यमेतद्
     यत्रैव साक्षात्प्रकटः परो हरिः ॥ ५ ॥
 यद्‌राधिकासुन्दरकण्ठरत्‍नं
     यद्‌गोपिकाजीवनमूलरूपम् ।
 तदेव मन्नेत्रपथि प्रजातं
     किं वर्णये भाग्यमतः स्वकीयम् ॥ ६ ॥
 गुप्तो व्रजे गोपभिषेण चासि
     कस्तूरिकामोद इव प्रसिद्धः ।
 यशश्च ते निर्मलमाशु शुक्ली
     करोति सर्वत्र गतं त्रिलोकीम् ॥ ७ ॥
 जानासि सर्वं जनचैत्यभावं
     क्षेत्रज्ञ आत्मा कृतिवृन्दसाक्षी ।
 तथापि वक्ष्ये नृपवाक्यमुक्तं
     परं रहस्यं रहसि स्वधर्मम् ॥ ८ ॥
 या सिंधुदेशेषु पुरी प्रसिद्धा
     श्रीचम्पका नाम शुभा यथैन्द्री ।
 तत्पालकोऽसौ विमलो यथेन्द्रः
     त्वत्पादपद्मे कृतचित्तवृत्तिः ॥ ९ ॥
 सदा कृतं यज्ञशतं त्वदर्थं
     दानं तपो ब्राह्मणसेवनं च ।
 तीर्थं जपं येन सुसाधनेन
     तस्मै परं दर्शनमेव देहि ॥ १० ॥
 तत्कन्यकाः पद्मविशालनेत्राः
     पूर्णं पतिं त्वां मृगयंत्य आरात् ।
 सदा त्वदर्थं नियमव्रतस्था-
     स्त्वत्पादसेवाविमलीकृताङ्गाः ॥ ११ ॥
 गृहाण तासां व्रजदेव पाणीन्
     दत्वा परं दर्शनमद्‌भुतं स्वम् ।
 गच्छाशु सिन्धून् विशदीकुरु त्वं
     विमृश्य कर्तव्यमिदं त्वया हि ॥ १२ ॥

 

श्रीनारदजी कहते हैं- राजन् ! तदनन्तर दूत पुनः सिन्धुदेशसे मथुरा-मण्डलमें आया । वृन्दावनमें विचरते हुए यमुनाके तटपर उसको श्रीकृष्णका दर्शन हुआ । एकान्तमें श्रीकृष्णको प्रणाम करके दोनों हाथ जोड़कर और उनकी परिक्रमा करके उसने धीरे-धीरे राजा विमलकी कही हुई बात दुहरायी ।। १-२ ।।

दूतने कहा- जो स्वयं परब्रह्म परमेश्वर हैं, सबसे परे और सबके द्वारा अदृश्य हैं, जो परिपूर्ण देव पुण्यकी राशिसे भी सदा दूर - ऊपर उठे हुए हैं, तथापि संतजनोंको प्रत्यक्ष दर्शन देनेवाले हैं, उन भगवान् श्रीकृष्णको मेरा नमस्कार है ।। ।।

गौ, ब्राह्मण, देवता, वेद, साधु पुरुष तथा धर्मकी रक्षाके लिये जो अजन्मा होनेपर भी इन दिनों कंसादि दैत्यों के वधके लिये यदुकुल में उत्पन्न हुए हैं, उन अनन्त गुणों के महासागर आप श्रीहरि को मेरा नमस्कार है। अहो ! व्रजवासियों का बहुत बड़ा सौभाग्य है। आपके पिता नन्दराज का कुल धन्य है, यह व्रजमण्डल तथा यह वृन्दावन धन्य हैं, जहाँ आप परमेश्वर श्रीहरि साक्षात् प्रकट हैं ।। ४-५ ।।

प्रभो! आप श्रीराधारानी के कण्ठ में सुशोभित सुन्दर (नीलमणिमय) हार हैं, और गोपियों के प्राणस्वरूप हैं, ऐसे आप आज  मेरे नेत्रों के समक्ष उपस्थित हैं, इससे अधिक मेरा और कौन सा सौभाग्य होगा, जिसका की मैं वर्णन करूँ |  आप भले ही इस व्रजमंडल में गोपवेश में छिपे हुए हैं, पर कस्तूरी की सुगन्ध की भाँति सर्वत्र प्रसिद्ध हैं और आपका सर्वत्र फैला हुआ निर्मल यश सम्पूर्ण त्रिलोकीको तत्काल श्वेत किये देता है । आप लोगोंके चित्तका सम्पूर्ण अभिप्राय जानते हैं; क्योंकि आप समस्त क्षेत्रोंके ज्ञाता आत्मा हैं और कर्मराशिके साक्षी हैं ।। ६-७ ।।

तथापि राजा विमलने जो परम रहस्यकी और स्वधर्मसे सम्बद्ध बात कही है, उसको मैं आपसे एकान्तमें बताऊँगा । सिन्धुदेशमें जो चम्पका नामसे प्रसिद्ध इन्द्रपुरीके समान सुन्दर नगरी है, उसके पालक राजा विमल देवराज इन्द्रके समान ऐश्वर्यशाली हैं। उनकी चित्तवृत्ति सदा आपके चरणारविन्दोंमें लगी रहती है। उन्होंने आपकी प्रसन्नताके लिये सदा सैकड़ों यज्ञोंका अनुष्ठान किया है तथा दान, तप, ब्राह्मणसेवा, तीर्थसेवन और जप आदि किये हैं। उनके इन उत्तम साधनोंको निमित्त बनाकर आप उन्हें अपना सर्वोत्कृष्ट दर्शन अवश्य दीजिये ।। ८-१० ।।

उनकी बहुत-सी कन्याएँ हैं, जो प्रफुल्ल कमल दलके समान विशाल नेत्रोंसे सुशोभित हैं और आप पूर्ण परमेश्वर को पतिरूप में अपने निकट पाने के शुभ अवसर की प्रतीक्षा करती हैं । वे राजकुमारियाँ सदा आपकी प्राप्तिके लिये नियमों और व्रतोंके पालनमें तत्पर हैं तथा आपके चरणोंकी सेवासे उनके तन, मन निर्मल हो गये हैं। व्रजके देवता ! आप अपना उत्तम और अद्भुत दर्शन देकर उन सब राजकन्याओंका पाणिग्रहण कीजिये । इस समय आपके समक्ष जो यह कर्तव्य प्राप्त हुआ है, इसका विचार करके आप सिन्धुदेशमें चलिये और वहाँके लोगोंको अपने पावन दर्शनसे विशुद्ध कीजिये ॥ ११-१२

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से



1 टिप्पणी:

  1. 🥀💖🍂🌹जय श्रीहरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरार
    हे नाथ नारायण वासुदेव
    कृष्ण दामोदरम् वासुदेवम् हरि:
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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