शनिवार, 5 अक्तूबर 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-पहला अध्याय..(पोस्ट०४)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध -पहला अध्याय..(पोस्ट०४)

उद्धव और विदुर की भेंट

इति ऊचिवान् तत्र सुयोधनेन
    प्रवृद्धकोपस्फुरिताधरेण ।
असत्कृतः सत्स्पृहणीयशीलः
    क्षत्ता सकर्णानुजसौबलेन ॥ १४ ॥
क एनमत्रोपजुहाव जिह्मं
    दास्याः सुतं यद्बसलिनैव पुष्टः ।
तस्मिन् प्रतीपः परकृत्य आस्ते
    निर्वास्यतामाशु पुराच्छ्वसानः ॥ १५ ॥
स इत्थमत्युल्बणकर्णबाणैः
    भ्रातुः पुरो मर्मसु ताडितोऽपि ।
स्वयं धनुर्द्वारि निधाय मायां
    गतव्यथोऽयादुरु मानयानः ॥ १६ ॥

विदुरजीका ऐसा सुन्दर स्वभाव था कि साधुजन भी उसे प्राप्त करनेकी इच्छा करते थे। किन्तु उनकी यह बात सुनते ही कर्ण, दु:शासन और शकुनिके सहित दुर्योधनके होठ अत्यन्त क्रोधसे फडक़ने लगे और उसने उनका तिरस्कार करते हुए कहा—‘अरे ! इस कुटिल दासीपुत्रको यहाँ किसने बुलाया है ? यह जिनके टुकड़े खा-खाकर जीता है, उन्हींके प्रतिकूल होकर शत्रुका काम बनाना चाहता है। इसके प्राण तो मत लो, परंतु इसे हमारे नगरसे तुरन्त बाहर निकाल दो’ ॥ १४-१५ ॥ भाईके सामने ही कानोंमें बाणके समान लगनेवाले इन अत्यन्त कठोर वचनोंसे मर्माहत होकर भी विदुरजीने कुछ बुरा न माना और भगवान्‌ की मायाको प्रबल समझकर अपना धनुष राजद्वारपर रख वे हस्तिनापुरसे चल दिये ॥ १६ ॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌹💖श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव !!
    नारायण नारायण नारायण नारायण 💟🙏जय श्री कृष्ण 🍂🙏🌹

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