मंगलवार, 1 अक्तूबर 2024

श्रीगर्ग-संहिता (माधुर्यखण्ड) पाँचवाँ अध्याय (पोस्ट 02)


 

# श्रीहरि: #

 

श्रीगर्ग-संहिता

(माधुर्यखण्ड)

पाँचवाँ अध्याय (पोस्ट 02)

 

अयोध्यावासिनी गोपियों के आख्यान के प्रसङ्ग में राजा विमल की संतान के लिये चिन्ता तथा महामुनि याज्ञवल्क्य द्वारा उन्हें बहुत-सी पुत्री होने का विश्वास दिलाना

 

 श्रीयाज्ञवल्क्य उवाच -
अस्मिन् जन्मनि राजेन्द्र पुत्रो नैव च नैव च ।
 पुत्र्यस्तव भविष्यन्ति कोटिशो नृपसत्तम ॥ १२ ॥


 राजोवाच -
पुत्रं विना पूर्वऋणान्न कोऽपि
     प्रमुच्यते भूमितले मुनीन्द्र ।
 सदा ह्यपुत्रस्य गृहे व्यथा स्या-
     त्परं त्विहामुत्र सुखं न किंचित् ॥ १३ ॥


 श्रीयाज्ञवल्क्य उवाच -
मा खेदं कुरु राजेन्द्र पुत्र्यो देयास्त्वया खलु ।
 श्रीकृष्णाय भविष्याय परं दायादिकैः सह ॥ १४ ॥
 तेनैव कर्मणा त्वं वै देवर्षिपितृणामृणात् ।
 विमुक्तो नृपशार्दूल परं मोक्षमवाप्स्यसि ॥ १५ ॥


 श्रीनारद उवाच -
तदाऽतिहर्षितो राजा श्रुत्वा वाक्यं महामुनेः ।
 पुनः पप्रच्छ संदेहं याज्ञवल्क्यं महामुनिम् ॥ १६ ॥


 राजोवाच -
कस्मिन् कुले कुत्र देशे भविष्यः श्रीहरिः स्वयम् ।
 कीदृग्‌रूपश्च किंवर्णो वर्षैश्च कतिभिर्गतैः ॥ १७ ॥


 श्रीयाज्ञवल्क्य उवाच -
द्वापरस्य युगस्यास्य तव राज्यान्महाभुज ।
 अवशेषे वर्षशते तथा पञ्चदशे नृप ॥ १८ ॥
 तस्मिन् वर्षे यदुकुले मथुरायां यदोः पुरे ।
 भाद्रे बुधे कृष्णपक्षे धात्रर्क्षे हर्षणे वृषे ॥ १९ ॥
 बवेऽष्टम्यामर्धरात्रे नक्षत्रेशमहोदये ।
 अंधकारावृते काले देवक्यां शौरिमन्दिरे ॥ २० ॥
 भविष्यति हरिः साक्षादरण्यामध्वरेऽग्निवत् ।
 श्रीवत्सांको घनश्यामो वनमाल्यतिसुन्दरः ॥ २१ ॥
 पीतांबरः पद्मनेत्रो भविष्यति चतुर्भुजः ।
 तस्मै देया त्वया कन्या आयुस्तेऽस्ति न संशयः ॥ २२ ॥

याज्ञवल्क्य बोले- राजेन्द्र ! इस जन्ममें तो तुम्हारे भाग्य में पुत्र नहीं है, नहीं है, परंतु नृपश्रेष्ठ ! तुम्हें पुत्रियाँ करोड़ोंकी संख्यामें प्राप्त होंगी ।। १२ ।।

राजाने कहा- मुनीन्द्र ! पुत्रके बिना कोई भी इस भूतलपर पूर्वजोंके ऋणसे मुक्त नहीं होता। पुत्र- हीनके घरमें सदा ही व्यथा बनी रहती है। उसे इस लोक या परलोकमें कुछ भी सुख नहीं मिलता ॥ १३ ॥

याज्ञवल्क्य बोले- राजेन्द्र ! खेद न करो। भविष्य में भगवान् श्रीकृष्णका अवतार होनेवाला है। तुम उन्हींको दहेजके साथ अपनी सब पुत्रियाँ समर्पित कर देना । नृपश्रेष्ठ ! उसी कर्मसे तुम देवताओं, ऋषियों तथा पितरोंके ऋणसे छूटकर परममोक्ष प्राप्त कर लोगे ।। १४-१५ ॥

श्रीनारदजी कहते हैं- महामुनिका यह वचन सुनकर उस समय राजाको बड़ा हर्ष हुआ। उन्होंने महर्षि याज्ञवल्क्यसे पुनः अपना संदेह पूछा ? ॥ १६ ॥

राजा बोले- मुनीश्वर ! कितने वर्ष बीतनेपर किस देशमें और किस कुलमें साक्षात् श्रीहरि अवतीर्ण होंगे ? उस समय उनका रूप-रंग क्या होगा ? ॥ १७ ॥

याज्ञवल्क्य बोले- महाबाहो ! इस द्वापरयुग के जो अवशेष वर्ष हैं, उन्हीं में तुम्हारे राज्यकाल से एक सौ पंद्रह वर्ष व्यतीत होने पर यादवपुरी मथुरा में यदुकुल के भीतर भाद्रपदमास, कृष्णपक्ष, बुधवार, रोहिणी नक्षत्र,हर्षण योग, वृषलग्न, वव करण और अष्टमी तिथिमें आधी रातके समय चन्द्रोदय-काल में, जब कि सब कुछ अन्धकार से आच्छन्न होगा, वसुदेव-भवन में देवकी के गर्भ से साक्षात् श्रीहरि का विर्भाव होगा- ठीक उसी तरह जैसे यज्ञमें अरणि-काष्ठसे अग्निका प्राकट्य होता है। भगवान्‌ के वक्षःस्थल पर श्रीवत्सका चिह्न होगा। उनकी अङ्गकान्ति मेघके समान श्याम होगी। वे वनमाला से अलंकृत और अतीव सुन्दर होंगे। पीताम्बरधारी, कमलनयन तथा अवतारकाल में चतुर्भुज होंगे। तुम उन्हें अपनी कन्याएँ देना । तुम्हारी आयु अभी बहुत है। तुम उस समयतक जीवित रहोगे, इसमें संशय नहीं है ।। १८ – २२ ।।

 

इस प्रकार श्रीगर्गसंहिता में माधुर्यखण्ड के अन्तर्गत नारद- बहुलाश्व-संवाद में 'अयोध्यावासिनी गोपाङ्गनाओं का उपाख्यान' नामक पाँचवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ ५ ॥

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से



1 टिप्पणी:

  1. 🥀❤️🌹कृष्ण दामोदरम्
    वासुदेवम् हरि: !!
    श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव
    जय श्री राधे कृष्ण के🙏🥀🙏

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