#
श्रीहरि: #
श्रीगर्ग-संहिता
(माधुर्यखण्ड)
छठा अध्याय (पोस्ट 02)
अयोध्यापुरवासिनी स्त्रियोंका राजा विमलके
यहाँ पुत्रीरूपसे उत्पन्न होना; उनके विवाहके लिये राजाका मथुरामें श्रीकृष्णको देखनेके
निमित्त दूत भेजना; वहाँ पता न लगनेपर भीष्मजीसे अवतार - रहस्य जानकर उनका श्रीकृष्णके
पास दूत प्रेषित करना
श्रीनारद उवाच -
इति चिन्तयतस्तस्य विस्मितस्य नृपस्य च ।
गजाह्वयात्सिन्धुदेशान् जेतुं भीष्मः समागतः ॥ १८ ॥
तं पूज्य विमलो राजा दत्वा तस्मै बलिं बहु ।
पप्रच्छ सर्वाभिप्रायं भीष्मं धर्मभृतां वरम् ॥ १९ ॥
विमल उवाच -
याज्ञवल्क्येन पूर्वोक्तो मथुरायां हरिः स्वयम् ।
वसुदेवस्य देवक्यां भविष्यति न संशयः ॥ २० ॥
न जातो वसुदेवस्य सकाशेऽद्य हरिः परः ।
ऋषिवाक्यं मृषा न स्यात्कस्मै दास्यामि कन्यकाः ॥ २१ ॥
महाभागवतः साक्षात्त्वं परावरवित्तमः ।
जितेन्द्रियो बाल्यभावाद्वीरो धन्वी वसूत्तमः ।
एतद्वद महाबुद्धे किं कर्तव्यं मयाऽत्र वै ॥ २२ ॥
श्रीनारद उवाच -
विमलं प्राह गांगेयो महाभागवतः कविः ।
दिव्यदृग्धर्मतत्वज्ञः श्रीकृष्णस्य प्रभाववित् ॥ २३ ॥
भीष्म उवाच -
हे राजन् गुप्तमाख्यानं वेदव्यासमुखाच्छ्रुतम् ।
सर्वपापहरं पुण्यं शृणु हर्षविवर्द्धनम् ॥ २४ ॥
देवानां रक्षणार्थाय दैत्यानां हि वधाय च ।
वसुदेवगृहे जातः परिपूर्णतमो हरिः ॥ २५ ॥
अर्धरात्रे कंसभयान्नीत्वा शौरिश्च तं त्वरम् ।
गत्वा च गोकुले पुत्रं निधाय शयने नृप ॥ २६ ॥
यशोदानन्दयोः पुत्रीं मायां नीत्वा पुरं ययौ ।
ववृधे गोकुले कृष्णो गुप्तो ज्ञातो न कैर्नृभिः ॥ २७ ॥
सोऽद्यैव वृदकारण्ये हरिर्गोपालवेषधृक् ।
एकादश समास्तत्र गूढो वासं करिष्यति ।
दैत्यं कंसं घातयित्वा प्रकटः स भविष्यति ॥ २८ ॥
अयोध्यापुरवासिन्यः श्रीरामस्य वराच्च याः ।
ताः सर्वास्तव भार्यासु बभूवुः कन्यकाः शुभाः ॥ २९ ॥
गूढाय देवदेवाय देयाः कन्यास्त्वया खलु ।
न विलम्बः क्वचित्कार्यो देहः कालवशो ह्ययम् ॥ ३० ॥
इत्युक्त्वाऽथ गते भीष्मे सर्वज्ञे हस्तिनापुरम् ।
दूतं स्वं प्रेषयामास विमलो नन्दसूनवे ॥ ३१ ॥
श्रीनारदजी कहते हैं- राजन् ! राजा विमल जब इस प्रकार
विस्मित होकर विचार कर रहे थे, उसी समय हस्तिनापुरसे सिन्धुदेशको जीतनेके लिये भीष्म
आये ॥ १८ ॥
राजा विमल ने धर्मधारियों में श्रेष्ठ
पितामह भीष्म का आदर-सत्कार कर उन्हें प्रभूत मात्रा में उपहार दी और उनसे
याज्ञवल्क्यजी के वचनों का अभिप्राय पूछा ॥ १९ ॥
विमल बोले- महाबुद्धिमान्
भीष्मजी ! पहले याज्ञवल्क्यजीने मुझसे कहा था कि मथुरामें साक्षात् श्रीहरि वसुदेवकी
पत्नी देवकीके गर्भसे प्रकट होंगे, इसमें संशय नहीं है। परंतु इस समय वसुदेवके यहाँ
परमेश्वर श्रीहरिका प्राकट्य नहीं हुआ है। साथ ही ऋषिकी बात झूठी हो नहीं सकती; अतः
इस समय मैं अपनी कन्याओंका दान किसके हाथमें करूँ । आप साक्षात् महाभागवत हैं और पूर्वापर की बातें जानने- वालों में सबसे श्रेष्ठ हैं।
बचपन से ही आपने इन्द्रियों पर विजय पायी
है। आप वीर, धनुर्धर एवं वसुओं में श्रेष्ठ हैं । इसलिये यह बताइये कि अब मुझे क्या करना चाहिये ।। २० - २२ ॥
श्रीनारदजी कहते हैं- गङ्गानन्दन भीष्मजी महान् भगवद्भक्त,
विद्वान्, दिव्यदृष्टिसे सम्पत्र, धर्मके तत्त्वज्ञ तथा श्रीकृष्णके प्रभावको जाननेवाले
थे । उन्होंने राजा विमलसे कहा-- ॥ २३ ॥
भीष्मजी बोले - राजन् ! यह एक गुप्त बात है, जिसे मैंने
वेदव्यासजीके मुँहसे सुनी थी । यह प्रसङ्ग समस्त पापों को हर
लेनेवाला, पुण्यप्रद तथा हर्षवर्धक है; इसे सुनो। परिपूर्णतम भगवान् श्रीहरि देवताओं की रक्षा तथा दैत्यों का वध करने के लिये वसुदेव के घरमें अवतीर्ण हुए हैं ।।
२४ - २५ ॥
हे राजन् ! किंतु आधी रातके समय वसुदेव कंसके भयसे उस बालकको
लेकर तुरंत गोकुल चले गये और वहाँ अपने पुत्रको यशोदाकी शय्यापर सुलाकर, यशोदा और नन्दकी
पुत्री मायाको साथ ले, मथुरापुरीमें लौट आये। इस प्रकार श्रीकृष्ण गोकुलमें गुप्तरूपसे
पलकर बड़े हुए हैं, यह बात दूसरे कोई भी मनुष्य नहीं जानते ।। २६
- २७ ॥
वे ही गोपालवेषधारी श्रीहरि वृन्दावनमें ग्यारह वर्षोंतक
गुप्तरूपसे वास करेंगे। फिर कंस-दैत्यका वध करके प्रकट हो जायँगे । अयोध्यापुरवासिनी
जो नारियाँ श्रीरामचन्द्रजीके वरसे गोपीभावको प्राप्त हुई हैं, वे सब तुम्हारी पत्नियोंके
गर्भसे सुन्दरी कन्याओंके रूपमें उत्पन्न हुई हैं। तुम उन गूढरूपमें विद्यमान देवाधिदेव
श्रीकृष्णको अपनी समस्त कन्याएँ अवश्य दे दो। इस कार्यमें कदापि विलम्ब न करो, क्योंकि
यह शरीर कालके अधीन है ।। २८ - ३० ॥
यों कहकर जब सर्वज्ञ भीष्मजी हस्तिनापुरको चले गये,
तब राजा विमलने नन्दनन्दनके पास अपना दूत भेजा ॥ ३१ ॥
इस प्रकार श्रीगर्गसंहितामें माधुर्यखण्डके
अन्तर्गत नारद- बहुलाश्व-संवादमें 'अयोध्यापुरवासिनी गोपिकाओंका उपाख्यान' नामक छठा
अध्याय पूरा हुआ ॥ ६ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता पुस्तक कोड 2260 से
🥀💖🥀🌹जय श्रीहरि:🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
गोविंद हरे गोपाल हरे
जय जय प्रभु दीनदयाल हरे
कृष्ण दामोदरम् वासुदेवम् हरि: