॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध -पहला अध्याय..(पोस्ट१०)
उद्धव और विदुर की भेंट
कच्चिच्छिवं देवकभोजपुत्र्या
विष्णुप्रजाया इव देवमातुः ।
या वै स्वगर्भेण दधार देवं
त्रयी यथा यज्ञवितानमर्थम् ॥ ३३ ॥
अपिस्विदास्ते भगवान् सुखं वो
यः सात्वतां कामदुघोऽनिरुद्धः ।
यमामनन्ति स्म हि शब्दयोनिं
मनोमयं सत्त्वतुरीयतत्त्वम् ॥ ३४ ॥
अपिस्विदन्ये च निजात्मदैवं
अनन्यवृत्त्या समनुव्रता ये ।
हृदीकसत्यात्मज चारुदेष्ण
गदादयः स्वस्ति चरन्ति सौम्य ॥ ३५ ॥
(विदुरजी उद्धवजी से पूछ रहे हैं) भोजवंशी देवक की पुत्री देवकी जी अच्छी तरह हैं न, जो देवमाता अदितिके समान ही साक्षात् विष्णुभगवान् की माता हैं ? जैसे वेदत्रयी यज्ञविस्ताररूप अर्थको अपने मन्त्रोंमें धारण किये रहती है, उसी प्रकार उन्होंने भगवान् श्रीकृष्णको अपने गर्भमें धारण किया था ॥ ३३ ॥ आप भक्तजनों की कामनाएँ पूर्ण करनेवाले भगवान् अनिरुद्ध जी सुखपूर्वक हैं न,जिन्हें शास्त्र वेदों के आदिकारण और अन्त:करणचतुष्टय के चौथे अंश मन के अधिष्ठाता बतलाते हैं [*] ॥ ३४ ॥ सौम्यस्वभाव उद्धवजी ! अपने हृदयेश्वर भगवान् श्रीकृष्णका अनन्यभावसे अनुसरण करनेवाले जो हृदीक, सत्यभामानन्दन चारुदेष्ण और गद आदि अन्य भगवान् के पुत्र हैं, वे सब भी कुशलपूर्वक हैं न ? ॥ ३५ ॥
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[*] चित्त, अहंकार, बुद्धि और मन—ये अन्त:करणके चार अंश है। इनके अधिष्ठाता क्रमश: वासुदेव,सङ्कर्षण,प्रद्युम्न और अनिरुद्ध हैं।
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
💐🌹💐🌾जय श्रीकृष्ण🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण