॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - दूसरा अध्याय..(पोस्ट०३)
उद्धवजी द्वारा भगवान् की बाललीलाओं का वर्णन
प्रदर्श्या तप्ततपसां अवितृप्तदृशां नृणाम् ।
आदायान्तरधाद्यस्तु स्वबिम्बं लोकलोचनम् ॥ ११ ॥
यन्मर्त्यलीलौपयिकं स्वयोग
मायाबलं दर्शयता गृहीतम् ।
विस्मापनं स्वस्य च सौभगर्द्धेः
परं पदं भूषणभूषणाङ्गम् ॥ १२ ॥
यद्धर्मसूनोर्बत राजसूये
निरीक्ष्य दृक्स्वस्त्ययनं त्रिलोकः ।
कार्त्स्न्येन चाद्येह गतं विधातुः
अर्वाक्सृतौ कौशलमित्यमन्यत ॥ १३ ॥
यस्यानुरागप्लुतहासरास
लीलावलोकप्रतिलब्धमानाः ।
व्रजस्त्रियो दृग्भिरनुप्रवृत्त
धियोऽवतस्थुः किल कृत्यशेषाः ॥ १४ ॥
जिन्होंने कभी तप नहीं किया, उन लोगों को भी इतने दिनों तक दर्शन देकर अब उनकी दर्शन-लालसा को तृप्त किये बिना ही वे भगवान् श्रीकृष्ण अपने त्रिभुवन-मोहन श्रीविग्रह को छिपाकर अन्तर्धान हो गये हैं और इस प्रकार उन्होंने मानो उनके नेत्रोंको ही छीन लिया है ॥ ११ ॥ भगवान् ने अपनी योगमाया का प्रभाव दिखाने के लिए मानवलीलाओं के योग्य जो दिव्य श्रीविग्रह प्रकट किया था, वह इतना सुन्दर था कि उसे देखकर सारा जगत् तो मोहित हो ही जाता था, वे स्वयं भी विस्मित हो जाते थे । सौभाग्य और सुन्दरताकी पराकाष्ठा थी उस रूपमें। उससे आभूषण (अङ्गोंके गहने) भी विभूषित हो जाते थे ॥ १२ ॥ धर्मराज युधिष्ठिरके राजसूय यज्ञमें जब भगवान् के उस नयनाभिराम रूपपर लोगों की दृष्टि पड़ी थी, तब त्रिलोकी ने यही माना था कि मानवसृष्टि की रचना में विधाता की जितनी चतुराई है, सब इसी रूपमें पूरी हो गयी है ॥ १३ ॥ उनके प्रेमपूर्ण हास्य-विनोद और लीलामय चितवन से सम्मानित होने पर व्रजबालाओंकी आँखें उन्हीं की ओर लग जाती थीं और उनका चित्त भी ऐसा तल्लीन हो जाता था कि वे घरके काम-धंधोंको अधूरा ही छोडक़र जड पुतलियोंकी तरह खड़ी रह जाती थीं॥१४॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🌹💖🥀🌹जय श्रीहरि:🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव!!