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श्रीहरि: #
श्रीगर्ग-संहिता
(माधुर्यखण्ड)
सोलहवाँ अध्याय
श्रीयमुना - कवच
मांधातोवाच –
यमुनायाः कृष्णराज्ञ्याः कवचं
सर्वतोऽमलम् ।
देहि मह्यं महाभाग धारयिष्याम्यहं सदा ॥ १ ॥
सौभरिरुवाच -
यमुनायाश्च कवचं सर्वरक्षाकरं नृणाम् ।
चतुष्पदार्थदं साक्षाच्छृणु राजन्महामते ॥ २ ॥
कृष्णां चतुर्भुजां श्यामां पुण्डरीकदलेक्षणाम् ।
रथस्थां सुन्दरीं ध्यात्वा धारयेत्कवचं ततः ॥ ३ ॥
स्नातः पूर्वमुखो मौनि कृतसंध्यः कुशासने ।
कुशैर्बद्धशिखो विप्रः पठेद्वै स्वस्तिकासनः ॥ ४ ॥
यमुना मे शिरः पातु कृष्णा नेत्रद्वयं सदा ।
श्यामा भ्रूभंगदेशं च नासिकां नाकवासिनी ॥ ५ ॥
कपोलौ पातु मे साक्षात्परमानन्दरूपिणी ।
कृष्णवामांससंभूता पातु कर्णद्वयं मम ॥ ६ ॥
अधरौ पातु कालिन्दी चिबुकं सूर्यकन्यका ।
यमस्वसा कन्धरां च हृदयं मे महानदी ॥ ७ ॥
कृष्णप्रिया पातु पृष्ठं तटिनि मे भुजद्वयम् ।
श्रोणीतटं च सुश्रोणी कटिं मे चारुदर्शना ॥ ८ ॥
ऊरुद्वयं तु रंभोरुर्जानुनी त्वंघ्रिभेदिनी ।
गुल्फौ रासेश्वरी पातु पादौ पापप्रहारिणी ॥ ९ ॥
अंतर्बहिरधश्चोर्ध्वं दिशासु विदिशासु च ।
समंतात्पातु जगतः परिपूर्णतमप्रिया ॥ १० ॥
इदं श्रीयमुनाश्च कवचं परमाद्भुतम् ।
दशवारं पठेद्भक्त्या निर्धनो धनवान्भवेत् ॥ ११ ॥
त्रिभिर्मासैः पठेद्धीमान् ब्रह्मचारी मिताशनः ।
सर्वराज्याधिपत्यञ्च प्राप्यते नात्र संशयः ॥ १२ ॥
दशोत्तरशतं नित्यं त्रिमासावधि भक्तितः ।
यः पठेत्प्रयतो भूत्वा तस्य किं किं न जायते ॥ १३ ॥
यः पठेत्प्रातरुत्थाय सर्वतीर्थफलं लभेत् ।
अंते व्रजेत्परं धाम गोलोकं योगिदुर्लभम् ॥ १४ ॥
मांधाता बोले- महाभाग ! आप मुझे श्रीकृष्ण- की पटरानी
यमुनाके सर्वथा निर्मल कवच का उपदेश दीजिये, मैं उसे सदा धारण
करूँगा ॥ १ ॥
सौभरि बोले- महामते नरेश ! यमुनाजीका कवच मनुष्यों की सब प्रकारसे रक्षा करनेवाला तथा साक्षात् चारों पदार्थोंको देनेवाला
है, तुम इसे सुनो- यमुनाजीके चार भुजाएँ हैं। वे श्यामा (श्यामवर्णा एवं षोडश वर्षकी
अवस्थासे युक्त) हैं। उनके नेत्र प्रफुल्ल कमलदलके समान सुन्दर एवं विशाल हैं । वे
परम सुन्दरी हैं और दिव्य रथपर बैठी हुई हैं। इस प्रकार उनका ध्यान करके कवच धारण करे
॥ २-३ ॥
स्नान करके पूर्वाभिमुख हो मौनभावसे कुशासन- पर बैठे
और कुशोंद्वारा शिखा बाँधकर संध्या-वन्दन करनेके अनन्तर ब्राह्मण (अथवा द्विजमात्र)
स्वस्तिकासन से स्थित हो कवचका पाठ करे ॥ ४ ॥
'यमुना' मेरे मस्तककी रक्षा करें और 'कृष्णा' सदा
दोनों नेत्रोंकी। 'श्यामा' भ्रूभंग-देशकी और 'नाकवासिनी' नासिकाकी रक्षा करें। 'साक्षात्
परमानन्दरूपिणी' मेरे दोनों कपोलोंकी रक्षा करें। 'कृष्णवामांससम्भूता' (श्रीकृष्णके बायें कंधेसे प्रकट हुई वे देवी) मेरे
दोनों कानोंका संरक्षण करें। 'कालिन्दी' अधरोंकी और 'सूर्यकन्या' चिबुक (ठोढ़ी) की रक्षा करें। 'यमस्वसा' ( यमराजकी बहिन) मेरी ग्रीवाकी और 'महानदी' मेरे हृदयकी रक्षा करें। 'कृष्णप्रिया' पृष्ठ-भागका और 'तटिनी'
मेरी दोनों भुजाओंका रक्षण करें। 'सुश्रोणी' श्रोणीतट ( नितम्ब) की और 'चारुदर्शना'
मेरे कटिप्रदेशकी रक्षा करें। 'रम्भोरू' दोनों ऊरुओं (जाँघों) की और 'अङ्घ्रिभेदिनी'
मेरे दोनों घुटनोंकी रक्षा करें। 'रासेश्वरी' गुल्फों (घुट्टियों) का और 'पापापहारिणी' पादयुगलका त्राण करें। 'परिपूर्णतम-
प्रिया' भीतर-बाहर, नीचे-ऊपर तथा दिशाओं और विदिशाओंमें सब ओरसे मेरी रक्षा करें ॥
५ - १० ॥
यह श्रीयमुनाका परम अद्भुत कवच है। जो भक्तिभावसे दस
बार इसका पाठ करता है, वह निर्धन भी धनवान् हो जाता है। जो बुद्धिमान् मनुष्य ब्रह्मचर्यके
पालनपूर्वक परिमित आहारका सेवन करते हुए तीन मासतक इसका पाठ करेगा, वह सम्पूर्ण राज्योंका
आधिपत्य प्राप्त कर लेगा, इसमें संशय नहीं है ॥ ११-१२ ॥
जो तीन महीने की अवधितक प्रतिदिन
भक्तिभावसे शुद्धचित्त हो इसका एक सौ दस बार पाठ करेगा, उसको क्या-क्या नहीं मिल जायगा
? जो प्रातःकाल उठकर इसका पाठ करेगा, उसे सम्पूर्ण तीर्थोंमें स्नानका फल मिल जायगा
तथा अन्तमें वह योगिदुर्लभ परमधाम गोलोकमें चला जायगा ॥ १३ –
१४ ॥
इस प्रकार श्रीगर्गसंहितामें माधुर्यखण्डके
अन्तर्गत श्रीसौभरि मांधाताके संवादमें 'यमुना-कवच' नामक सोलहवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥
१६ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता पुस्तक कोड 2260 से
🥀💖🌹 जय श्रीकृष्ण🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
जय हो कृष्णप्रिया कालिंदी यमुने
महादेवि 🙏🌺🙏🌺🙏