सोमवार, 21 अक्तूबर 2024

श्रीगर्ग-संहिता (माधुर्यखण्ड) अठारहवाँ अध्याय


 

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श्रीगर्ग-संहिता

(माधुर्यखण्ड)

अठारहवाँ अध्याय

 

यमुनाजी के जप और पूजन के लिये पटल और पद्धति का वर्णन

 

मांधातोवाच -
कृष्णायाः पटलं पुण्यं कामदं पद्धतिं तथा ।
वद मां मुनिशार्दूल त्वं साक्षात् ज्ञानशेवधिः ॥ १ ॥


सौभरिरुवाच -
पटलं पद्धतिं वक्ष्ये यमुनाया महामते ।
कृत्वा श्रुत्वाऽथ जप्त्वा वा जीवन्मुक्तो भवेन्नरः ॥ २ ॥
प्रणवं पूर्वमुद्‍धृत्य मायाबीजं ततः परम् ।
रमाबीजं ततः कृत्वा कामबीजं विधानतः ॥ ३ ॥
कालिन्दीति चतुर्थ्यंते देवीपदमतः परम् ।
नमः पश्चात्संविधार्य जपेन्मन्त्रमिमं नरः ॥ ४ ॥
जप्त्वैकादशलक्षाणि मंत्रसिद्धिर्भवेद्‌भुवि ।
जनैः प्रार्थ्याश्च ये कामाः सर्वे प्राप्याः स्वतश्च ते ॥ ५ ॥
विधाय षोडशदलं पद्मं सिंहासने शुभे ।
कर्णिकायां च कालिंदीं न्यसेच्छ्रीकृष्णसंयुताम् ॥ ६ ॥
जाह्नवीं विरजां कृष्णां चन्द्रभागां सरस्वतीम् ।
गोमतीं कौशिकीं वेणीं सिंधुं गोदावरीं तथा ॥ ७ ॥
वेदस्मृतिं वेत्रवतीं शतद्रुं सरयूं तथा ।
पूजयेन् मानवश्रेष्ठ ऋषिकुल्यां ककुद्मिनीम् ॥ ८ ॥
पृथक्पृथक् तद्दलेषु नामोच्चार्य विधानतः ।
वृन्दावनं गोवर्द्धनं वृन्दां च तुलसीं तथा ।
चतुर्दिक्षु विधायाशु पूजयेन्नामभिः पृथक् ॥ ९ ॥
ॐनमो भगवत्यै कलिन्दनन्दिन्यै सूर्यकन्यकायै
यमभगिन्यै श्रीकृष्णप्रियायै यूथीभूतायै स्वाहा ।
अनेन मंत्रेण आवाहनादि षोडशोपचारान् समाहित उपाहरेत् ॥ १० ॥
इत्येव पटलं विद्धि तुभ्यं वक्ष्यामि पद्धतिम् ।
यावत्संपूर्णतां याति पुरश्चरणमेव हि ॥ ११ ॥
तावद्‌ भवेद् ब्रह्मचारी जपेन्मौनव्रती द्विजः ।
यवभोजी भूमिशायी पत्रभुग् जितमानसः ॥ १२ ॥
कामं क्रोधं तथा लोभं मोहं द्वेषं विसृज्य सः ।
भक्त्या परमया राजन् वर्तमानस्तु देशकः ॥ १३ ॥
ब्राह्मे मुहूर्ते उत्थाय ध्यात्वा देवीं कलिंदजाम् ।
अरुणोदयवेलायां नद्यां स्नानं समाचरेत् ॥ १४ ॥
माध्याह्ने चापि संध्यायां संध्यावन्दनतत्परः ।
सप्तमे नियमे राजन् कालिन्दीतीरमास्थितः ॥ १५ ॥
दशलक्षं ब्राह्मणानां सपुत्राणां महात्मनाम् ।
पूजयित्वा गन्धपुष्पैर्दत्वा तेभ्यः सुभोजनम् ॥ १६ ॥
वस्त्रभूषणसौवर्णपात्राणि प्रस्फुरंति च ।
दक्षिणाश्च शुभा दद्यात्ततः सिद्धिर्भवेत् खलु ॥ १७ ॥
इति ते पद्धतिः प्रोक्ता मया राजन् महमते ।
कुरु त्वं नियमं सर्वं किं भूयः श्रोतुमिच्छसि ॥ १८ ॥

मांधाता बोले – मुनिश्रेष्ठ ! यमुनाजीके काम- पूरक पवित्र पटल तथा पद्धतिका जैसा स्वरूप है, वह मुझे बताइये; क्योंकि आप साक्षात् ज्ञानकी निधि हैं ॥ १ ॥

सौभरि ने कहा- महामते ! अब मैं यमुनाजीके पटल तथा पद्धतिका भी वर्णन करता हूँ, जिसका अनुष्ठान, श्रवण अथवा जप करके मनुष्य जीवन्मुक्त हो जाता है। पहले प्रणव (ॐ) का उच्चारण करके फिर मायाबीज (ह्रीं) का उच्चारण करे। तत्पश्चात् श्रीकृष्णप्रियायै यूथीभूतायै स्वाहा।' इस मन्त्रसे लक्ष्मीबीज (श्रीं) को रखकर उसके बाद कामबीज आवाहन आदि सोलह उपचारोंको एकाग्रचित्त हो (क्लीं) का विधिवत् प्रयोग करे। इसके अनन्तर 'कालिन्दी' शब्दका चतुर्थ्यन्त रूप (कालिन्यै) रखे । फिर 'देवी' शब्दके चतुर्थ्यन्तरूप (देव्यै) का प्रयोग करके अन्तमें 'नमः' पद जोड़ दे। (इस प्रकार 'ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कालिन्द्यै देव्यै नमः ।' यह मन्त्र बनेगा ।) इस मन्त्रका मनुष्य विधिवत् जप करे। इस ग्यारह तू जप करे। इस ग्यारह अक्षरवाले मन्त्रका ग्यारह लाख जप करनेसे इस पृथ्वीपर सिद्धि प्राप्त हो सकती है। मनुष्योंद्वारा जिन-जिन काम्य-पदार्थोंके लिये प्रार्थना की जाती है, वे सब स्वतः सुलभ हो जाते हैं । २-

सुन्दर सिंहासनपर षोडशदल कमल अङ्कित करके उसकी कर्णिकामें श्रीकृष्णसहित कालिन्दीका न्यास (स्थापन) करे। कमलके सोलह दलोंमें अलग- अलग विधिपूर्वक नाम ले-लेकर मानवश्रेष्ठ साधक क्रमशः गङ्गा, विरजा, कृष्णा, चन्द्रभागा, सरस्वती, गोमती, कौशिकी, वेणी, सिंधु, गोदावरी, वेदस्मृति, वेत्रवती, शतद्रू, सरयू, ऋषिकुल्या तथा ककुद्मिनीका पूजन करे। पूर्वादि चार दिशाओंमें क्रमशः वृन्दावन, गोवर्धन, वृन्दा तथा तुलसीका उनके नामोच्चारणपूर्वक क्रमशः पूजन करे। तत्पश्चात् 'ॐ नमो भगवत्यै कलिन्दनन्दिन्यै सूर्यकन्यकायै यमभगिन्यै श्रीकृष्णप्रियायै यूथीभूतायै स्वाहा |’ इस मंत्र से आवाहन आदि सोलह उपचारों को एकाग्रचित्त हो  अर्पित करे ।। - १० ॥

इस प्रकार यमुनाका पटल जानो । अब पद्धति बताऊँगा। जबतक पुरश्चरण पूरा न हो जाय, तबतक ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए मौनावलम्बनपूर्वक द्विजको जप करना चाहिये । पुरश्चरणकाल में जौ का आटा खाय, पृथ्वीपर शयन करे, पत्तलपर भोजन करे और मन को वश में रखे ॥ ११-१२

राजन् ! आचार्यको चाहिये कि काम, क्रोध, लोभ, मोह तथा द्वेषको त्यागकर परम भक्ति भावसे जपमें प्रवृत्त रहे। ब्राह्ममुहूर्तमें उठकर कालिन्दी देवीका ध्यान करे और अरुणोदयकी बेलामें नदीमें स्नान करे। मध्याह्नकालमें और दोनों संध्याओंके समय संध्या-वन्दन अवश्य किया करे। राजन् ! जब अनुष्ठान समाप्त हो, तब यमुनाके तटपर जाकर पुत्रों- सहित दस लाख महात्मा ब्राह्मणोंका गन्ध-पुष्पसे पूजन करके उन्हें उत्तम भोजन दे । तदनन्तर वस्त्र, आभूषण और सुवर्णमय चमकीले पात्र तथा उत्तम दक्षिणाएँ दे । इससे निश्चय ही सिद्धि होती है । ११ – १७ ॥

महामते ! नरेश! इस प्रकार मैंने तुमसे यमुनाजीके जप और पूजनकी पद्धति बतायी है। तुम सारा नियम पूर्ण करो। बताओ ! अब और क्या सुनना चाहते हो ? ॥ १८ ॥

 

इस प्रकार श्रीगर्गसंहितामें माधुर्यखण्डके अन्तर्गत मांधाता और सौभरि के संवादमें 'पटल और पद्धतिका वर्णन' नामक अठारहवाँ अध्याय पूरा हुआ || १८ ||

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से



1 टिप्पणी:

  1. 🌹💖🥀 जय श्रीकृष्ण 🙏🙏
    जय यमुना महारानी कृष्णप्रिया 🙏🙏

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