मंगलवार, 15 अक्तूबर 2024

श्रीगर्ग-संहिता (माधुर्यखण्ड) तेरहवाँ अध्याय

# श्रीहरि: #

 

श्रीगर्ग-संहिता

(माधुर्यखण्ड)

तेरहवाँ अध्याय

 

देवाङ्गनास्वरूपा गोपियाँ

 

श्रीनारद उवाच -
अथ देवांगनानां च गोपीनां वर्णनं शृणु ।
 चतुष्पदार्थदं नॄणां भक्तिवर्धनमुत्तमम् ॥ १ ॥
 बभूव मालवे देशे गोपो नन्दो दिवस्पतिः ।
 भार्यासहस्रसंयुक्तो धनवान् नीतिमान्परः ॥ २ ॥
 तीर्थयात्राप्रसंगेन मथुरायां समागतः ।
 नन्दराजं व्रजाधीशं श्रुत्वा श्रीगोकुलं ययौ ॥ ३ ॥
 मिलित्वा गोपराजं स दृष्ट्वा वृन्दावनश्रियम् ।
 नन्दराजाज्ञया तत्र वासं चक्रे महामनाः ॥ ४ ॥
 योजनद्वयमाश्रित्य घोषं चक्रे गवां पुनः ।
 मुदं प्राप व्रजे राजन् ज्ञातिभिः स दिवस्पतिः ॥ ५ ॥
 तस्य देवलवाक्येन सर्वा देवजनस्त्रियः ।
 जाताः कन्या महादिव्या ज्वलदग्निशिखोपमाः ॥ ६ ॥
 श्रीकृष्णं सुन्दरं दृष्ट्वा मोहिताः कन्यकाश्च ताः ।
 दामोदरस्य प्राप्त्यर्थं चक्रुर्माघव्रतं परम् ॥ ७ ॥
 अर्धोदयेऽर्के यमुनां नित्यं स्नात्वा व्रजांगनाः ।
 उच्चैर्जगुः कृष्णलीलां प्रेमानन्दसमाकुलाः ॥ ८ ॥
 तासां प्रसन्नः श्रीकृष्णो वरं ब्रूहीत्युवाच ह ।
 ता ऊचुस्तं परं नत्वा कृताञ्जलिपुटाः शनैः ॥ ९ ॥


 गोप्य ऊचुः -
योगीश्वराणां किल दुर्लभस्त्वं
     सर्वेश्वरः कारणकारणोऽसि ।
 त्वं नेत्रगामी भवतात्सदा नो
     वंशीधरो मन्मथमन्मथांगः ॥ १० ॥
 तथाऽस्तु चोक्त्वा हरिरादिदेवः
     तासां तु यो दर्शनमाततान ।
 भूयात्सदा ते हृदि नेत्रमार्गे
     तथा स आहूत इवाशु चित्ते ॥ ११ ॥
 परिपूर्णतमः साक्षाच्छ्रीकृष्णो नान्य एव हि ।
 एककार्यार्थमागत्य कोटिकार्यं चकार ह ॥ १२ ॥
 परिकरीकृतपीतपटं हरिं
     शिखिकिरीटनतीकृतकंधरम् ।
 लकुटवेणुकरं चलकुंडलं
     पटुतरं नतवेषधरं भजे ॥ १३ ॥
 भक्त्यैव वश्यो हरिरादिदेवः
     सदा प्रमाणं किल चात्र गोप्यः ।
 सांख्यं च योगं न कृतं कदापि
     प्रेम्णैव यस्य प्रकृतिं गताः स्युः ॥ १४ ॥

श्रीनारदजी कहते हैं— मिथिलेश्वर ! अब देवाङ्गनास्वरूपा गोपियोंका वर्णन सुनो, जो मनुष्योंको चारों पदार्थ देनेवाला तथा उनके भक्तिभावको बढ़ानेवाला सर्वोत्तम साधन है ॥ १ ॥

मालवदेशमें एक गोप थे, जिनका नाम था - दिवस्पति नन्द । उनके एक सहस्र पत्रियाँ थीं। वे बड़े धनवान् और नीतिज्ञ थे। एक समय तीर्थयात्राके प्रसङ्गसे उनका मथुरामें आगमन हुआ। वहाँ व्रजाधीश्वर नन्दराजका नाम सुनकर वे उनसे मिलनेके लिये गोकुल गये ॥ २-३

वहाँ नन्दराजसे मिलकर और वृन्दावनकी शोभा देखकर महामना दिवस्पति नन्द- राजकी आज्ञासे वहीं रहने लगे ॥

उन्होंने दो योजन भूमिको घेरकर गौओंके लिये गोष्ठ बनाया । राजन् उस व्रजमें अपने कुटुम्बी बन्धुजनोंके साथ रहते हुए दिवस्पतिको बड़ी प्रसन्नता प्राप्त हुई ॥

देवल मुनिके आदेशसे समस्त देवाङ्गनाएँ उन्हीं दिवस्पतिकी महादिव्य कन्याएँ हुईं, जो प्रज्वलित अग्निके समान तेजस्विनी थीं ॥ ६॥

किसी समय श्यामसुन्दर श्रीकृष्णका दर्शन पाकर वे सब कन्याएँ मोहित हो गयीं और उन दामोदरकी प्राप्ति- के लिये उन्होंने परम उत्तम माघ मासका व्रत किया। आधे सूर्यके उदित होते-होते प्रतिदिन वे व्रजाङ्गनाएँ यमुनामें जाकर स्नान करतीं और प्रेमानन्दसे विह्वल हो उच्चस्वरसे श्रीकृष्णकी लीलाएँ गाती थीं । भगवान् श्रीकृष्ण उनपर प्रसन्न होकर बोले- 'तुम कोई वर माँगो ।' तब उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर उन परमात्माको प्रणाम करके उनसे धीरे-धीरे कहा ।। ७–९॥

गोपियाँ बोलीं- प्रभो ! निश्चय ही आप योगीश्वरोंके लिये भी दुर्लभ हैं। सबके ईश्वर तथा कारणोंके भी कारण हैं। आप वंशीधारी हैं। आपका अङ्ग मन्मथके मनको भी मथ डालनेवाला (मोह लेने- वाला) है। आप सदा हमारे नेत्रोंके समक्ष रहें ॥ १० ॥

राजन् ! तब 'तथास्तु' कहकर जिन आदिदेव श्रीहरिने गोपियोंके लिये अपने दर्शनका द्वार उन्मुक्त कर दिया, वे सदा तुम्हारे हृदयमें, नेत्रमार्गमें बसे रहें और बुलाये हुए-से तत्काल चित्तमें आकर स्थित हो जायँ । जिन्होंने कमर में पीताम्बर बाँध रखा है, जिनके सिर पर मोरपंख का मुकुट सुशोभित है और गर्दन झुकी हुई है, जिनके हाथ में बाँसुरी और लकुटी है तथा कानोंमें रत्नमय कुण्डल झलमला रहे हैं, उन पटुतर नटवेषधारी श्रीहरिका मैं भजन करता हूँ। आदिदेव श्रीहरि केवल भक्तिसे ही वशमें होते हैं निश्चय ही इसमें गोपियाँ सदा प्रमाणभूत हैं, जिन्होंने न तो कभी सांख्य का विचार किया योग का अनुष्ठान; केवल प्रेमसे ही वे भगवान्‌ के स्वरूप को प्राप्त हो गयीं ॥। ११ – १४ ॥


इस प्रकार श्रीगर्गसंहितामें माधुर्यखण्डके अन्तर्गत नारद-बहुलाश्व-संवादमें 'देवाङ्गनास्वरूपा गोपियोंका उपाख्यान' नामक तेरहवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १३ ॥

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से

 

 



1 टिप्पणी:

  1. 🌹💖💐🌾जय श्रीहरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    कृष्ण दामोदरम् वासुदेवम् हरि:
    जय गोपीजन चितचोर प्रभु जय जय नंद किशोर 🙏🙏🙏

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