गुरुवार, 24 अक्तूबर 2024

श्रीगर्ग-संहिता (माधुर्यखण्ड) बीसवाँ अध्याय

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श्रीगर्ग-संहिता

(माधुर्यखण्ड)

बीसवाँ अध्याय

 

बलदेवजी के हाथ से प्रलम्बासुर का वध तथा उसके पूर्वजन्म का परिचय

 

श्रीनारद उवाच -
इति कृष्णस्तवं श्रुत्वा मान्धाता नृपसत्तमः ।
अयोध्यां प्रययौ वीरो नत्वा श्रीसौभरिं मुनिम् ॥ १ ॥
इदं मया ते कथितं गोपीनां चरितं शुभम् ।
महापापहररं पुण्यं किं भूयः श्रोतुमिच्छसि ॥ २ ॥


बहुलाश्व उवाच -
श्रुतं तव मुखाद्ब्रह्मन् गोपीनां वर्णनं परम् ।
यमुनायाश्च पंचांगं महापातकनाशनम् ॥ ३ ॥
श्रीकृष्णः सबलः साक्षाद्‌‍गोलोकाधिपतिः प्रभुः ।
अग्रे चकार कं लीलां ललितां व्रजमंडले ॥ ४ ॥


श्रीनारद उवाच -
एकदा चारयन्गाः स्वाः सबलो गोपबालकैः ।
भांडीरे यमुनातीरे बाललीलां चकार ह ॥ ५ ॥
विहारं कारयन् बालैः वाह्यवाहकलक्षणम् ।
विजहार वने कृष्णो दर्शयन्गा मनोहराः ॥ ६ ॥
तत्रागतो गोपरूपी प्रलंबः कंसनोदितः ।
न ज्ञातो बालकैः सोपि हरिणा विदितोऽभवत् ॥ ७ ॥
विहारे विजयं रामं नेतुं कोऽपि न मन्यते ।
ऊवाह तं प्रलंबोऽसौ भांडीराद्यमुनातटम् ॥ ८ ॥
अवरोहरणतो दैत्यो मथुरां गंतुमुद्यतः ।
दधार घनवद्‍रूपं गिरीन्द्र इव दुर्गमः ॥ ९ ॥
बभौ बलो दैत्यपृष्ठे सुन्दरो लोलकुण्डलः ।
आकाशस्थः पूर्णचन्द्रः सतडिज्जलदो यथा ॥ १० ॥
दैत्यं भयंकरं वीक्ष्य बलदेवो महाबलः ।
रुषाऽहनन्मुष्टिना तं शिरस्यद्रिं यथाऽद्रिभित् ॥ ११ ॥
विशीर्णमस्तको दैत्यो यथा वज्रहतो गिरिः ।
पपात भूमौ सहसा चालयन् वसुधातलम् ॥ १२ ॥
तज्ज्योतिर्निर्गतं दीर्घं बले लीनं बभूव ह ।
तदैव ववृषुर्देवाः पुष्पैर्नन्दनसंभवैः ॥ १३ ॥
अभूज्जय जयारावो दिवी भूमौ नृपेश्वर ।
एवं श्रीबलदेवस्य चरितं परमाद्‌भुतम् ।
मया ते कथितं राजन् किं भूयः श्रोतुमिच्छसि ॥ १४ ॥


बहुलाश्व उवाच -
कोऽयं दैत्यः पूर्वकाले प्रलंबो रणदुर्मदः ।
बलदेवस्य हस्तेन मुक्तिं प्राप कथं मुने ॥ १५ ॥


श्रीनारद उवाच -
शिवस्य पूजनार्थं हि यक्षराट् स्ववने शुभे ।
कारयामास पुष्पाणां रक्षां यक्षैरितस्ततः ॥ १६ ॥
तदप्यस्यापि जगृहुः पुष्पाणि प्रस्फुरंति च ।
ततः क्रुद्धो ददौ शापं यक्षराड् धनदो बली ॥ १७ ॥
ये गृह्णंत्यस्य पुष्पाणि स्वे चान्ये सुरमानवाः ।
भवितारोऽसुराः सर्वे मच्छापात् सहसा भुवि ॥ १८ ॥
हूहूसुतोऽथ विजयो विचरन् तीर्थभूमिषु ।
वनं चैत्ररथं प्राप्तो गायन् विष्णुगुणान्पथि ॥ १९ ॥
वीणापाणिरजानन्वै गन्धर्वः सुमनांसि च ।
गृहीत्वा सोऽसुरो जातो गन्धर्वत्वं विहाय तत् ॥ २० ॥
तदैव शरणं प्राप्तः कुबेरस्य महात्मनः ।
नत्वा तत्प्रार्थनां चक्रे कृतांजलिपुटः शनैः ॥ २१ ॥
तस्मै प्रसन्नो राजेन्द्र कुबेरोऽपि वरं ददौ ।
त्वं विष्णुभक्तः शांतात्मा मा शोकं कुरु मानद ॥ २२ ॥
द्वापरांते च ते मुक्तिः बलदेवस्य हस्ततः ।
भविष्यति न सन्देहो भांडीरे यमुनातटे ॥ २३ ॥


श्रीनारद उवाच -
हूहूसुतः स गन्धर्वः प्रलंबोऽभून्महासुरः ।
कुबेरस्य वराद्‍राजन् परं मोक्षं जगाम ह ॥ २४ ॥

श्रीनारदजी कहते हैं- राजन् ! इस प्रकार यमुनाजी का सहस्रनामस्तोत्र सुनकर वीरभूप- शिरोमणि मांधाता सौभरिमुनि को नमस्कार करके अयोध्यापुरी को चले गये। यह मैंने तुमसे गोपियोंके शुभ चरित्रका वर्णन किया, जो महान् पापोंको हर लेनेवाला और पुण्यप्रद है । बताओ और क्या सुनना चाहते हो ? ॥ १-२ ॥

बहुलाश्व बोले- ब्रह्मन् ! मैंने आपके मुखसे गोपियोंके चरित्रका उत्तम वर्णन सुना। साथ ही यमुनाके पञ्चाङ्गका भी श्रवण किया, जो बड़े-बड़े पातकोंका नाश करनेवाला है। साक्षात् गोलोकके अधिपति भगवान् श्रीकृष्णने बलरामजीके साथ व्रजमण्डलमें आगे कौन-कौन-सी मनोहर लीलाएँ कीं, यह बताइये ॥ ३-४ ॥

श्रीनारदजीने कहा- राजन् ! एक दिन श्रीबलराम और ग्वाल-बालोंके साथ अपनी गौएँ चराते हुए श्रीकृष्ण भाण्डीरवनमें यमुनाजीके तटपर बालोचित खेल खेलने लगे ॥

बालकों से बाह्य- वाहन का खेल करवाते हुए श्रीकृष्ण मनोहर गौओं की देख-भाल करते हुए वनमें विहार करते थे। (इस खेलमें कुछ लड़के वाहन — घोड़ा आदि बनते और कुछ उनकी पीठपर सवारी करते थे।) उस समय वहाँ कंसका भेजा हुआ असुर प्रलम्ब गोपरूप धारण करके आया। दूसरे ग्वाल-बाल तो उसे न पहचान सके, किंतु भगवान् श्रीकृष्णसे उसकी माया छिपी न रही । खेलमें हारनेवाला बालक जीतनेवालेको पीठपर चढ़ाता था; किंतु जब बलरामजी जीत गये, तब उन्हें कोई भी पीठपर चढ़ानेको तैयार नहीं हुआ। उस समय प्रलम्बासुर ही उन्हें भाण्डीरवनसे यमुनातटतक अपनी पीठपर चढ़ाकर ले जाने लगा ॥ ६-८

[एक निश्चित स्थान था, जहाँ ढोकर ले जानेवाला बालक अपनी पीठपर चढ़े हुए बालकको उतार देता था; परंतु] प्रलम्बासुर उतारनेके स्थानपर पहुँचकर भी उन्हें उतारे बिना ही मथुरातक ले जानेको उद्यत हो गया। उसने बादलोंकी घोर घटाकी भाँति भयानक रूप धारण कर लिया और विशाल पर्वतके समान दुर्गम हो गया। उस दैत्यकी पीठपर बैठे हुए सुन्दर बलरामजीके कानोंमें कान्तिमान् कुण्डल हिल रहे थे। ऐसा जान पड़ता था, मानो आकाशमें पूर्ण चन्द्रमा उदित हुए हों अथवा मेघोंकी घटामें बिजली चमक रही हो ॥ ९-१०

उस भयानक दैत्यको देखकर महाबली बलदेवजीको बड़ा क्रोध हुआ । उन्होंने उसके मस्तकपर कसके एक मुक्का मारा, मानो इन्द्रने किसी पर्वतपर वज्रका प्रहार किया हो। उस दैत्यका मस्तक वज्रसे आहत पहाड़की तरह फट गया और वह सहसा पृथ्वीको कम्पित करता हुआ धराशायी हो गया। उसके शरीरसे एक विशाल ज्योति निकली और बलरामजीमें विलीन हो गयी। उस समय देवता बलरामजीके ऊपर नन्दनवनके फूलोंकी वर्षा करने लगे। नृपेश्वर ! पृथ्वीपर और आकाशमें भी जय-जयकार होने लगी। राजन् ! इस प्रकार श्रीबलदेवजीके परम अद्भुत चरित्रका मैंने तुम्हारे समक्ष वर्णन किया, अब और क्या सुनना चाहते हो ? ॥११– १४॥

बहुलाश्वने पूछा- मुने ! वह रण-दुर्मद दैत्य प्रलम्ब पूर्वजन्ममें कौन था ? और बलदेवजीके हाथसे उसकी मुक्ति क्यों हुई ? ॥ १५ ॥

श्रीनारदजीने कहा- राजन् ! यक्षराज कुबेरने अपने सुन्दर वनमें भगवान् शिवको पूजाके लिये फुलवारी लगा रखी थी और इधर-उधर यक्षोंको तैनात करके उन फूलोंकी रक्षाका प्रबन्ध करवाया था; तथापि उस पुष्पवाटिकाके सुन्दर एवं चमकीले फूल लोग तोड़ लिया करते थे। इससे कुपित हो बलवान् यक्षराज कुबेरने यह शाप दिया- 'जो यक्ष इस फुलवारीके फूल लेंगे अथवा दूसरे भी जो देवता और मनुष्य आदि फूल तोड़नेका अपराध करेंगे, वे सब सहसा मेरे शापसे भूतलपर असुर हो जायँगे।' ॥ १६-१८

एक दिन हूहू नामक गन्धर्वका बेटा 'विजय' तीर्थभूमियोंमें विचरता तथा मार्गमें भगवान् विष्णुके गुणोंको गाता हुआ चैत्ररथ वनमें आया। उसके हाथमें वीणा थी। बेचारा गन्धर्व शापकी बातको नहीं जानता था, अतः उसने वहाँसे कुछ फूल ले लिये। फूल लेते ही वह गन्धर्वरूपको त्यागकर असुर हो गया। फिर तो वह तत्काल महात्मा कुबेरकी शरण में गया और नमस्कार करके दोनों हाथ जोड़कर धीरे- धीरे शापसे छूटनेके लिये प्रार्थना करने लगा । राजेन्द्र ! तब उसपर प्रसन्न होकर कुबेरने भी वर दिया- 'मानद ! तुम भगवान् विष्णुके भक्त तथा शान्त-चित्त महात्मा हो, इसलिये शोक न करो । द्वापरके अन्तमें भाण्डीर-वनमें यमुनाके तटपर बलदेवजीके हाथसे तुम्हारी मुक्ति होगी, इसमें संदेह नहीं है ॥ १-२

श्रीनारदजी कहते हैं—- राजन् ! हूहू का पुत्र वह विजयनामक गन्धर्व ही महान् असुर प्रलम्ब

हुआ और कुबेर के वर से उसको परम मोक्ष की प्राप्ति हुई ॥ २४ ॥

 

इस प्रकार श्रीगर्गसंहितामें माधुर्यखण्डके अन्तर्गत श्रीनारद- बहुलाश्व-संवादमें 'प्रलम्ब-वध' नामक बीसवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ २० ॥ 

 



2 टिप्‍पणियां:

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  2. 🌺🌿🌼🌺जय श्रीकृष्ण🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    बलराम दाऊजी महाराज की जय हो 🙏🙏जय श्रीराधेकृष्ण🙏🌹

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