॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध -पहला अध्याय..(पोस्ट०७)
उद्धव और विदुर की भेंट
अन्यानि चेह द्विजदेवदेवैः
कृतानि नानायतनानि विष्णोः ।
प्रत्यङ्ग मुख्याङ्कितमन्दिराणि
यद्दर्शनात् कृष्णमनुस्मरन्ति ॥ २३ ॥
ततस्त्वतिव्रज्य सुराष्ट्रमृद्धं
सौवीरमत्स्यान् कुरुजाङ्गलांश्च ।
कालेन तावद्यमुनामुपेत्य
तत्रोद्धवं भागवतं ददर्श ॥ २४ ॥
स वासुदेवानुचरं प्रशान्तं
बृहस्पतेः प्राक्तनयं प्रतीतम् ।
आलिङ्ग्य गाढं प्रणयेन भद्रं
स्वानां अपृच्छद् भागवत्प्रजानाम् ॥ २५ ॥
इनके सिवा पृथ्वी में ब्राह्मण और देवताओं के स्थापित किये हुए जो भगवान् विष्णु के और भी अनेकों मन्दिर थे, जिनके शिखरों पर भगवान् के प्रधान आयुध चक्र के चिह्न थे और जिनके दर्शनमात्र से श्रीकृष्णका स्मरण हो आता था, उनका भी (विदुर जी ने) सेवन किया ॥ २३ ॥ वहाँ से चलकर वे धन-धान्यपूर्ण सौराष्ट्र, सौवीर, मत्स्य और कुरुजाङ्गल आदि देशोंमें होते हुए जब कुछ दिनोंमें यमुना-तटपर पहुँचे, तब वहाँ उन्होंने परमभागवत उद्धवजीका दर्शन किया ॥ २४ ॥ वे भगवान् श्रीकृष्णके प्रख्यात सेवक और अत्यन्त शान्तस्वभाव थे। वे पहले बृहस्पतिजीके शिष्य रह चुके थे। विदुरजीने उन्हें देखकर प्रेमसे गाढ़ आलिङ्गन किया और उनसे अपने आराध्य भगवान् श्रीकृष्ण और उनके आश्रित अपने स्वजनोंका कुशल-समाचार पूछा ॥ २५ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🌹💖🥀🚩जय श्रीकृष्ण🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव !!!
जय हो मेरे राधा रमण बिहारी जी