रविवार, 24 नवंबर 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-पांचवां अध्याय..(पोस्ट११)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध - पाँचवा अध्याय..(पोस्ट११)

विदुरजीका प्रश्न  और मैत्रेयजीका सृष्टिक्रमवर्णन

पानेन ते देव कथासुधायाः
     प्रवृद्धभक्त्या विशदाशया ये ।
वैराग्यसारं प्रतिलभ्य बोधं
     यथाञ्जसान् वीयुरकुण्ठधिष्ण्यम् ॥ ४५ ॥
तथापरे चात्मसमाधियोग
     बलेन जित्वा प्रकृतिं बलिष्ठाम् ।
त्वामेव धीराः पुरुषं विशन्ति
     तेषां श्रमः स्यान्न तु सेवया ते ॥ ४६ ॥

देव ! आपके कथामृतका पान करनेसे उमड़ी हुई भक्तिके कारण जिनका अन्त:करण निर्मल हो गया है, वे लोग—वैराग्य ही जिसका सार है—ऐसा आत्मज्ञान प्राप्त करके अनायास ही आपके वैकुण्ठधामको चले जाते हैं ॥ ४५ ॥ दूसरे धीर पुरुष चित्तनिरोधरूप समाधिके बलसे आपकी बलवती मायाको जीतकर आपमें ही लीन तो हो जाते हैं, पर उन्हें श्रम बहुत होता है; किन्तु आपकी सेवाके मार्गमें कुछ भी कष्ट नहीं है ॥ ४६ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


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