॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - नवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)
ब्रह्माजी द्वारा भगवान् की स्तुति
ब्रह्मोवाच –
तद्वा इदं भुवनमङ्गल मङ्गलाय ।
ध्याने स्म नो दर्शितं त उपासकानाम् ।
तस्मै नमो भगवतेऽनुविधेम तुभ्यं ।
योऽनादृतो नरकभाग्भिरसत्प्रसङ्गैः ॥ ४ ॥
ये तु त्वदीयचरणाम्बुजकोशगन्धं ।
जिघ्रन्ति कर्णविवरैः श्रुतिवातनीतम् ।
भक्त्या गृहीतचरणः परया च तेषां ।
नापैषि नाथ हृदयाम्बुरुहात्स्वपुंसाम् ॥ ५ ॥
तावद्भायं द्रविणगेहसुहृन्निमित्तं ।
शोकः स्पृहा परिभवो विपुलश्च लोभः ।
तावन्ममेत्यसदवग्रह आर्तिमूलं ।
यावन्न तेऽङ्घ्रिमभयं प्रवृणीत लोकः ॥ ६ ॥
हे विश्वकल्याणमय ! मैं आपका उपासक हूँ, आपने मेरे हितके लिये ही मुझे ध्यानमें अपना यह रूप दिखलाया है। जो पापात्मा विषयासक्त जीव हैं, वे ही इसका अनादर करते हैं। मैं तो आपको इसी रूपमें बार-बार नमस्कार करता हूँ ॥ ४ ॥ मेरे स्वामी ! जो लोग वेदरूप वायुसे लायी हुई आपके चरणरूप कमलकोश की गन्ध को अपने कर्णपुटों से ग्रहण करते हैं, उन अपने भक्तजनोंके हृदय-कमल से आप कभी दूर नहीं होते; क्योंकि वे पराभक्तिरूप डोरी से आपके पादपद्मों को बाँध लेते हैं ॥ ५ ॥ जबतक पुरुष आपके अभयप्रद चरणारविन्दों का आश्रय नहीं लेता, तभी तक उसे धन, घर और बन्धुजनों के कारण प्राप्त होनेवाले भय, शोक, लालसा, दीनता और अत्यन्त लोभ आदि सताते हैं और तभीतक उसे मैं-मेरेपनका दुराग्रह रहता है, जो दु:खका एकमात्र कारण है ॥ ६ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🌹💖🥀ॐश्रीपरमात्मने नमः
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव
नारायण नारायण नारायण नारायण नारायण