॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - नवाँ अध्याय..(पोस्ट०७)
ब्रह्माजी द्वारा भगवान् की स्तुति
ब्रह्मोवाच –
लोको विकर्मनिरतः कुशले प्रमत्तः ।
कर्मण्ययं त्वदुदिते भवदर्चने स्वे ।
यस्तावदस्य बलवान् इह जीविताशां ।
सद्यश्छिनत्त्यनिमिषाय नमोऽस्तु तस्मै ॥ १७ ॥
यस्माद्बिदभेम्यहमपि द्विपरार्धधिष्ण्यं ।
अध्यासितः सकललोकनमस्कृतं यत् ।
तेपे तपो बहुसवोऽवरुरुत्समानः ।
तस्मै नमो भगवतेऽधिमखाय तुभ्यम् ॥ १८ ॥
भगवन् ! आपने अपनी आराधना को ही लोकों के लिये कल्याणकारी स्वधर्म बताया है, किन्तु वे इस ओर से उदासीन रहकर सर्वदा विपरीत (निषिद्ध) कर्मोंमें लगे रहते हैं। ऐसी प्रमाद की अवस्था में पड़े हुए इन जीवों की जीवन-आशा को जो सदा सावधान रहकर बड़ी शीघ्रता से काटता रहता है, वह बलवान् काल भी आपका ही रूप है; मैं उसे नमस्कार करता हूँ ॥ १७ ॥
यद्यपि मैं सत्यलोक का अधिष्ठाता हूँ, जो दो परार्धपर्यन्त रहनेवाला और समस्त लोकों का वन्दनीय है, तो भी आपके उस कालरूप से डरता रहता हूँ। उससे बचने और आपको प्राप्त करने के लिये ही मैंने बहुत समयतक तपस्या की है। आप ही अधियज्ञरूपसे मेरी इस तपस्याके साक्षी हैं, मैं आपको नमस्कार करता हूँ ॥ १८ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🥀💖🌹ॐश्रीपरमात्मने नमः
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नारायण नारायण नारायण नारायण🌼🌿जय श्रीहरि:🙏🙏
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