॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - नवाँ अध्याय..(पोस्ट०८)
ब्रह्माजी द्वारा भगवान् की स्तुति
ब्रह्मोवाच –
तिर्यङ्मनुष्यविबुधादिषु जीवयोनि ।
ष्वात्मेच्छयात्मकृतसेतुपरीप्सया यः ।
रेमे निरस्तविषयोऽप्यवरुद्धदेहः ।
तस्मै नमो भगवते पुरुषोत्तमाय ॥ १९ ॥
योऽविद्ययानुपहतोऽपि दशार्धवृत्त्या ।
निद्रामुवाह जठरीकृतलोकयात्रः ।
अन्तर्जलेऽहिकशिपुस्पर्शानुकूलां ।
भीमोर्मिमालिनि जनस्य सुखं विवृण्वन् ॥ २० ॥
आप पूर्णकाम हैं, आपको किसी विषयसुखकी इच्छा नहीं है, तो भी आपने अपनी बनायी हुई धर्ममर्यादा की रक्षाके लिये पशु-पक्षी, मनुष्य और देवता आदि जीवयोनियों में अपनी ही इच्छासे शरीर धारण कर अनेकों लीलाएँ की हैं। ऐसे आप पुरुषोत्तम भगवान् को मेरा नमस्कार है ॥ १९ ॥ प्रभो ! आप अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश—पाँचों में से किसी के भी अधीन नहीं हैं; तथापि इस समय जो सारे संसार को अपने उदर में लीनकर भयङ्कर तरङ्गमालाओं से विक्षुब्ध प्रलयकालीन जल में अनन्तविग्रह की कोमल शय्या पर शयन कर रहे हैं, वह पूर्वकल्पकी कर्मपरम्परासे श्रमित हुए जीवोंको विश्राम देनेके लिये ही है ॥ २० ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🌹💖🥀💐जय श्रीहरि:🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्रीपरमात्मने नमः
हे करुणामय दीनदयाल
नारायण नारायण नारायण नारायण