बुधवार, 15 जनवरी 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - ग्यारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध - ग्यारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)

मन्वन्तरादि कालविभाग का वर्णन

विदुर उवाच ।
पितृदेवमनुष्याणां आयुः परमिदं स्मृतम् ।
परेषां गतिमाचक्ष्व ये स्युः कल्पाद्ब्हिर्विदः ॥ १६ ॥
भगवान् वेद कालस्य गतिं भगवतो ननु ।
विश्वं विचक्षते धीरा योगराद्धेन चक्षुषा ॥ १७ ॥

मैत्रेय उवाच ।
कृतं त्रेता द्वापरं च कलिश्चेति चतुर्युगम् ।
दिव्यैर्द्वादशभिर्वर्षैः सावधानं निरूपितम् ॥ १८ ॥
चत्वारि त्रीणि द्वे चैकं कृतादिषु यथाक्रमम् ।
सङ्ख्यातानि सहस्राणि द्विगुणानि शतानि च ॥ १९ ॥

विदुरजीने कहा—मुनिवर ! आपने देवता, पितर और मनुष्यों की परमायु का वर्णन तो किया। अब जो सनकादि ज्ञानी मुनिजन त्रिलोकी से बाहर कल्प से भी अधिक कालतक रहनेवाले हैं, उनकी भी आयुका वर्णन कीजिये ॥ १६ ॥ आप भगवान्‌ काल की गति भलीभाँति जानते हैं; क्योंकि ज्ञानीलोग अपनी योगसिद्ध दिव्य दृष्टि से सारे संसार को देख लेते हैं ॥ १७ ॥
मैत्रेयजी ने कहा—विदुरजी ! सत्ययुग, त्रेता, द्वापर और कलि—ये चार युग अपनी सन्ध्या और सन्ध्यांशों के सहित देवताओं के बारह सहस्र वर्ष तक रहते हैं, ऐसा बतलाया गया है ॥ १८ ॥ इन सत्यादि चारों युगों में क्रमश: चार, तीन, दो और एक सहस्र दिव्य वर्ष होते हैं और प्रत्येक में जितने सहस्र वर्ष होते हैं उससे दुगुने सौ वर्ष उनकी सन्ध्या और सन्ध्यांशों में होते हैं[*] ॥ १९ ॥ 
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[*] अर्थात् सत्ययुगमें ४००० दिव्य वर्ष युग के और ८०० सन्ध्या एवं सन्ध्यांश के—इस प्रकार ४८०० वर्ष होते हैं। इसी प्रकार त्रेता में ३६००, द्वापर में २४०० और कलियुग में १२०० दिव्यवर्ष होते हैं। मनुष्यों का एक वर्ष देवताओं का एक दिन होता है, अत: देवताओं का एक वर्ष मनुष्यों के ३६० वर्ष के बराबर हुआ। इस प्रकार मानवीय मान से कलियुग में ४३२००० वर्ष हुए तथा इससे दुगुने द्वापर में, तिगुने त्रेता में और चौगुने सत्ययुग में होते हैं।

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌹💖🥀ॐश्रीपरमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    ।। जय श्रीकृष्ण ।।
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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