गुरुवार, 16 जनवरी 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - ग्यारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध - ग्यारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)

मन्वन्तरादि कालविभाग का वर्णन

संध्यांशयोरन्तरेण यः कालः शतसङ्ख्ययोः ।
तमेवाहुर्युगं तज्ज्ञा यत्र धर्मो विधीयते ॥ २० ॥
धर्मश्चतुष्पान्मनुजान् कृते समनुवर्तते ।
स एवान्येष्वधर्मेण व्येति पादेन वर्धता ॥ २१ ॥
त्रिलोक्या युगसाहस्रं बहिराब्रह्मणो दिनम् ।
तावत्येव निशा तात यन्निमीलति विश्वसृक् ॥ २२ ॥
निशावसान आरब्धो लोककल्पोऽनुवर्तते ।
यावद्दिनं भगवतो मनून् भुञ्जंश्चतुर्दश ॥ २३ ॥

युगकी आदि में सन्ध्या होती है और अन्त में सन्ध्यांश। इनकी वर्ष-गणना सैकड़ों की संख्या में बतलायी गयी है। इनके बीचका जो काल होता है, उसीको कालवेत्ताओं ने युग कहा है। प्रत्येक युग में एक-एक विशेष धर्म का विधान पाया जाता है ॥ २० ॥ सत्ययुग के मनुष्यों में धर्म अपने चारों चरणोंसे रहता है; फिर अन्य युगोंमें अधर्म की वृद्धि होने से उसका एक-एक चरण क्षीण होता जाता है ॥ २१ ॥ प्यारे विदुरजी ! त्रिलोकीसे बाहर महर्लोकसे ब्रह्मलोकपर्यन्त यहाँ की एक सहस्र चतुर्युगी का एक दिन होता है और इतनी ही बड़ी रात्रि होती है, जिसमें जगत् कर्ता ब्रह्माजी शयन करते हैं ॥ २२ ॥ उस रात्रिका अन्त होनेपर इस लोक का कल्प आरम्भ होता है; उसका क्रम जब तक ब्रह्माजी का दिन रहता है, तबतक चलता रहता है। उस एक कल्पमें चौदह मनु हो जाते हैं ॥ २३ ॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌺🌿🌼💐जय श्रीकृष्ण🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    ।। ॐ श्रीपरमात्मने नमः ।।
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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