॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - दसवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)
दस प्रकार की सृष्टि का वर्णन
गौरजो महिषः कृष्णः सूकरो गवयो रुरुः ।
द्विशफाः पशवश्चेमे अविरुष्ट्रश्च सत्तम ॥ २१ ॥
खरोऽश्वोऽश्वतरो गौरः शरभश्चमरी तथा ।
एते चैकशफाः क्षत्तः श्रृणु पञ्चनखान् पशून् ॥ २२ ॥
श्वा सृगालो वृको व्याघ्रो मार्जारः शशशल्लकौ ।
सिंहः कपिर्गजः कूर्मो गोधा च मकरादयः ॥ २३ ॥
कङ्कगृध्रबकश्येन भासभल्लूकबर्हिणः ।
हंससारसचक्राह्व काकोलूकादयः खगाः ॥ २४ ॥
अर्वाक्स्रोतस्तु नवमः क्षत्तरेकविधो नृणाम् ।
रजोऽधिकाः कर्मपरा दुःखे च सुखमानिनः ॥ २५ ॥
वैकृतास्त्रय एवैते देवसर्गश्च सत्तम ।
वैकारिकस्तु यः प्रोक्तः कौमारस्तूभयात्मकः ॥ २६ ॥
साधुश्रेष्ठ! इन तिर्यकों मे गौ, बकरा, भैंसा, कृष्ण-मृग, सूअर, नीलगाय, रुरु नामक मृग, भेड़ और ऊँट – ये द्विशफ (दो सुरोंवाले) पशु कहलाते है ॥ २१॥ गधा, घोडा, खच्चर, गौरमृग, शरफ और चमरी- ये एकशफा (एक खुरवाले) है ॥ अब पांच नखवाले पशु पक्षियों के नाम सुनो ॥ २२ ॥ कुत्ता, गीदड़, भेडिया, बाघ, बिलाव, खरगोश, साही, सिंह, बन्दर, हाथी, कछुआ,गोह और मगर आदि ( पशु ) हैं ॥ २३ ॥ कंक ( बगुला ), गिद्ध, बटेर, बाज, भास, बल्लुक, मोर, हंस, सारस, चकवा, कौवा, और उल्लू आदि उड़ने वाले जीव कहलाते हैं ॥ २४ ॥ विदुरजी ! नवीं सृष्टि मनुष्यों की हैं ॥ इसके आहार का प्रवाह ऊपर (मुंह ) से नीचे कि ओर होता है ॥ मनुष्य रजोगुणप्रधान, कर्मपरायण और दु:खरूप विषयों में ही सुख माननेवाले होते हैं ॥ २५ ॥ स्थावर, पशु-पक्षी और मनुष्य—ये तीनों प्रकारकी सृष्टियाँ तथा आगे कहा जानेवाला देवसर्ग वैकृत सृष्टि हैं तथा जो महत्तत्त्वादिरूप वैकारिक देवसर्ग है, उसकी गणना पहले प्राकृत सृष्टि में की जा चुकी है। इनके अतिरिक्त सनत्कुमार आदि ऋषियों का जो कौमारसर्ग है वह प्राकृत-वैकृत दोनों प्रकार का है ॥ २६ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🏵️🥀🌹ॐश्रीपरमात्मने नमः
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव !!
नारायण नारायण नारायण नारायण