सोमवार, 24 मार्च 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - सत्रहवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध - सत्रहवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)

हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष का जन्म तथा 
हिरण्याक्ष की दिग्विजय

स एवं उत्सिक्त मदेन विद्विषा
     दृढं प्रलब्धो भगवान् अपां पतिः ।
रोषं समुत्थं शमयन् स्वया धिया
     व्यवोचदङ्‌गोपशमं गता वयम् ॥ २९ ॥
पश्यामि नान्यं पुरुषात् पुरातनाद्
     यः संयुगे त्वां रणमार्गकोविदम् ।
आराधयिष्यति असुरर्षभेहि तं
     मनस्विनो यं गृणते भवादृशाः ॥ ३० ॥
तं वीरमारादभिपद्य विस्मयः
     शयिष्यसे वीरशये श्वभिर्वृतः ।
यस्त्वद्विधानां असतां प्रशान्तये
     रूपाणि धत्ते सदनुग्रहेच्छया ॥ ३१ ॥

उस मदोन्मत्त शत्रुके इस प्रकार बहुत उपहास करनेसे भगवान्‌ वरुण को क्रोध तो बहुत आया, किन्तु अपने बुद्धिबल से वे उसे पी गये और बदले में उससे कहने लगे—‘भाई ! हमें तो अब युद्धादि का कोई चाव नहीं रह गया है ॥ २९ ॥ भगवान्‌ पुराणपुरुष के सिवा हमें और कोई ऐसा दीखता भी नहीं, जो तुम-जैसे रणकुशल वीर को युद्ध में सन्तुष्ट कर सके। दैत्यराज ! तुम उन्हीं के पास जाओ, वे ही तुम्हारी कामना पूरी करेंगे। तुम-जैसे वीर उन्हीं का गुणगान किया करते हैं ॥ ३० ॥ वे बड़े वीर हैं। उनके पास पहुँचते ही तुम्हारी सारी शेखी पूरी हो जायगी और तुम कुत्तोंसे घिरकर वीरशय्यापर शयन करोगे। वे तुम-जैसे दुष्टोंको मारने और सत्पुरुषोंपर कृपा करनेके लिये अनेक प्रकारके रूप धारण किया करते हैं’ ॥ ३१ ॥

इति श्रीमद्‌भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां
तृतीयस्कन्धे सप्तदशोऽध्यायः ॥ १७ ॥

हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🥀💖🌺🌹जय श्रीहरि:🙏🙏
    ॐ श्रीपरमात्मने नमः
    श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव: !!
    नारायण नारायण हरि: !! हरि: !!

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