॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - बीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)
ब्रह्माजीकी रची हुई अनेक प्रकारकी सृष्टिका वर्णन
सूत उवाच –
हरेर्धृतक्रोडतनोः स्वमायया
निशम्य गोरुद्धरणं रसातलात् ।
लीलां हिरण्याक्षमवज्ञया हतं
सञ्जातहर्षो मुनिमाह भारतः ॥ ८ ॥
विदुर उवाच –
प्रजापतिपतिः सृष्ट्वा प्रजासर्गे प्रजापतीन् ।
किं आरभत मे ब्रह्मन् प्रब्रूह्यव्यक्तमार्गवित् ॥ ९ ॥
ये मरीच्यादयो विप्रा यस्तु स्वायम्भुवो मनुः ।
ते वै ब्रह्मण आदेशात् कथं एतद् अभावयन् ॥ १० ॥
सद्वितीयाः किमसृजन् स्वतन्त्रा उत कर्मसु ।
आहो स्वित्संहताः सर्व इदं स्म समकल्पयन् ॥ ११ ॥
सूतजीने कहा—मुनिगण ! अपनी मायासे वराहरूप धारण करनेवाले श्रीहरिकी रसातलसे पृथ्वीको निकालने और खेलमें ही तिरस्कारपूर्वक हिरण्याक्षको मार डालनेकी लीला सुनकर विदुरजीको बड़ा आनन्द हुआ और उन्होंने मुनिवर मैत्रेयजीसे कहा ॥ ८ ॥
विदुरजीने कहा—ब्रह्मन् ! आप परोक्ष विषयोंको भी जाननेवाले हैं; अत: यह बतलाइये कि प्रजापतियोंके पति श्रीब्रह्माजीने मरीचि आदि प्रजापतियोंको उत्पन्न करके फिर सृष्टिको बढ़ानेके लिये क्या किया ॥ ९ ॥ मरीचि आदि मुनीश्वरोंने और स्वायम्भुव मनुने भी ब्रह्माजीकी आज्ञासे किस प्रकार प्रजाकी वृद्धि की ? ॥ १० ॥ क्या उन्होंने इस जगत् को पत्नियों के सहयोग से उत्पन्न किया या अपने-अपने कार्य में स्वतन्त्र रहकर,अथवा सब ने एक साथ मिलकर इस जगत् की रचना की ? ॥ ११ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🌺💖💐🌺जय श्रीहरि:🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्रीपरमात्मने नमः
नारायण नारायण हरि: !! हरि: !!
श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव: !!