मंगलवार, 1 जुलाई 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - अट्ठाईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध - अट्ठाईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)

अष्टाङ्गयोग की विधि

बाहूंश्च मन्दरगिरेः परिवर्तनेन
     निर्णिक्तबाहुवलयान् अधिलोकपालान् ।
सञ्चिन्तयेद् दशशतारमसह्यतेजः
     शङ्खं च तत्करसरोरुहराजहंसम् ॥ २७ ॥
कौमोदकीं भगवतो दयितां स्मरेत
     दिग्धामरातिभटशोणितकर्दमेन ।
मालां मधुव्रतवरूथगिरोपघुष्टां
     चैत्यस्य तत्त्वममलं मणिमस्य कण्ठे ॥ २८ ॥
भृत्यानुकम्पितधियेह गृहीतमूर्तेः
     सञ्चिन्तयेद् भगवतो वदनारविन्दम् ।
यद्विस्फुरन् मकरकुण्डलवल्गितेन ।
     विद्योतितामलकपोलमुदारनासम् ॥ २९ ॥

समस्त लोकपालोंकी आश्रयभूता भगवान्‌की चारों भुजाओंका ध्यान करे, जिनमें धारण किये हुए कङ्कणादि आभूषण समुद्रमन्थनके समय मन्दराचलकी रगड़से और भी उजले हो गये हैं। इसी प्रकार जिसके तेजको सहन नहीं किया जा सकता, उस सहस्र धारोंवाले सुदर्शनचक्रका तथा उनके कर-कमलमें राजहंसके समान विराजमान शङ्खका चिन्तन करे ॥ २७ ॥ फिर विपक्षी वीरोंके रुधिरसे सनी हुई प्रभुकी प्यारी कौमोद की गदा का, भौंरों के शब्द से गुञ्जायमान वनमाला का और उनके कण्ठ में सुशोभित सम्पूर्ण जीवोंके निर्मलतत्त्वरूप कौस्तुभमणिका ध्यान करे [*] ॥ २८ ॥ भक्तोंपर कृपा करनेके लिये ही यहाँ साकाररूप धारण करनेवाले श्रीहरिके मुखकमलका ध्यान करे, जो सुघड़ नासिकासे सुशोभित है और झिलमिलाते हुए मकराकृति कुण्डलोंके हिलनेसे अतिशय प्रकाशमान स्वच्छ कपोलोंके कारण बड़ा ही मनोहर जान पड़ता है ॥ २९ ॥
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[*] ‘आत्मानमस्य जगतो निर्लेपमगुणामलम् । बिभर्ति कौस्तुभमङ्क्षण स्वरूपं भगवान्‌ हरि: ।।’ अर्थात् इस जगत् की  निर्लेप, निर्गुण, निर्मल तथा स्वरूपभूत आत्माको कौस्तुभमणिके रूपमें भगवान्‌ धारण करते हैं।

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 💞🌺🥀जय श्री हरि: !! 🙏
    ॐ श्रीपरमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे !!
    हे नाथ नारायण वासुदेव: !!

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