बुधवार, 16 जुलाई 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - उनतीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०९ )

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध - उनतीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०९)

भक्ति का मर्म और काल की महिमा

भक्तियोगश्च योगश्च मया मानव्युदीरितः ।
ययोरेकतरेणैव पुरुषः पुरुषं व्रजेत् ॥ ३५ ॥
एतद्भकगवतो रूपं ब्रह्मणः परमात्मनः ।
परं प्रधानं पुरुषं दैवं कर्मविचेष्टितम् ॥ ३६ ॥
रूपभेदास्पदं दिव्यं काल इत्यभिधीयते ।
भूतानां महदादीनां यतो भिन्नदृशां भयम् ॥ ३७ ॥
योऽन्तः प्रविश्य भूतानि भूतैरत्त्यखिलाश्रयः ।
स विष्ण्वाख्योऽधियज्ञोऽसौ कालः कलयतां प्रभुः ॥ ३८ ॥
न चास्य कश्चिद् दयितो न द्वेष्यो न च बान्धवः ।
आविशत्यप्रमत्तोऽसौ प्रमत्तं जनमन्तकृत् ॥ ३९ ॥
यद्भतयाद् वाति वातोऽयं सूर्यस्तपति यद्भधयात् ।
यद्भतयाद् वर्षते देवो भगणो भाति यद्भदयात् ॥ ४० ॥

(भगवान् देवहूति से कह रहे हैं) माताजी ! इस प्रकार मैंने तुम्हारे लिये भक्तियोग और अष्टाङ्गयोग का वर्णन किया। इनमें से एक का भी साधन करने से जीव परमपुरुष भगवान्‌ को प्राप्त कर सकता है ॥ ३५ ॥ भगवान्‌ परमात्मा परब्रह्मका अद्भुत प्रभावसम्पन्न तथा जागतिक पदार्थों के नानाविध वैचित्र्य का हेतुभूत स्वरूपविशेष ही ‘काल’ नामसे विख्यात है। प्रकृति और पुरुष इसीके रूप हैं तथा इनसे यह पृथक् भी है। नाना प्रकार के कर्मोंका मूल अदृष्ट भी यही है तथा इसीसे महत्तत्त्वादिके अभिमानी भेददर्शी प्राणियोंको सदा भय लगा रहता है ॥ ३६-३७ ॥ जो सबका आश्रय होनेके कारण समस्त प्राणियोंमें अनुप्रविष्ट होकर भूतों द्वारा ही उनका संहार करता है, वह जगत् का शासन करनेवाले ब्रह्मादि का भी प्रभु भगवान्‌ काल ही यज्ञों का  फल देनेवाला विष्णु है ॥ ३८ ॥ इसका न तो कोई मित्र है न कोई शत्रु और न तो कोई सगा-सम्बन्धी ही है । यह सर्वदा सजग रहता है और अपने स्वरूपभूत श्रीभगवान्‌ को भूलकर भोगरूप प्रमाद में पड़े हुए प्राणियों पर आक्रमण करके उनका संहार करता है ॥३९॥ इसी के भय से वायु चलता है, इसी के भयसे सूर्य तपता है, इसी के भय से इन्द्र वर्षा करते हैं और इसी के भय से तारे चमकते हैं ॥ ४०॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌹💟🕉️🌹ॐश्रीपरमात्मने नमः 🙏🙏 जय श्री हरि: !!
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - उनतीसवाँ अध्याय..(पोस्ट१०)

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