॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - तैंतीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०८)
देवहूतिको तत्त्वज्ञान एवं मोक्षपदकी प्राप्ति
एवं सा कपिलोक्तेन मार्गेणाचिरतः परम् ।
आत्मानं ब्रह्मनिर्वाणं भगवन्तं अवाप ह ॥ ३० ॥
तद्वीरासीत् पुण्यतमं क्षेत्रं त्रैलोक्यविश्रुतम् ।
नाम्ना सिद्धपदं यत्र सा संसिद्धिमुपेयुषी ॥ ३१ ॥
तस्यास्तद्योगविधुतं आर्त्यं मर्त्यमभूत्सरित् ।
स्रोतसां प्रवरा सौम्य सिद्धिदा सिद्धसेविता ॥ ३२ ॥
कपिलोऽपि महायोगी भगवान् पितुराश्रमात् ।
मातरं समनुज्ञाप्य प्राग् उदीचीं दिशं ययौ ॥ ३३ ॥
सिद्धचारण गन्धर्वैः मुनिभिश्च अप्सरोगणैः ।
स्तूयमानः समुद्रेण दत्तार्हणनिकेतनः ॥ ३४ ॥
आस्ते योगं समास्थाय साङ्ख्याचार्यैरभिष्टुतः ।
त्रयाणामपि लोकानां उपशान्त्यै समाहितः ॥ ३५ ॥
एतन्निगदितं तात यत्पृष्टोऽहं तवानघ ।
कपिलस्य च संवादो देवहूत्याश्च पावनः ॥ ३६ ॥
य इदमनुशृणोति योऽभिधत्ते
कपिलमुनेर्मतं आत्मयोगगुह्यम् ।
भगवति कृतधीः सुपर्णकेतौ
उपलभते भगवत् पदारविन्दम् ॥ ३७ ॥
विदुरजी ! इस प्रकार देवहूतिजीने कपिलदेवजीके बताये हुये मार्गद्वारा थोड़े ही समयमें नित्य- मुक्त परमात्मस्वरूप श्रीभगवान्को प्राप्त कर लिया ॥ ३० ॥ वीरवर ! जिस स्थानपर उन्हें सिद्धि प्राप्त हुई थी, वह परम पवित्र क्षेत्र त्रिलोकीमें ‘सिद्धपद’ नामसे विख्यात हुआ ॥ ३१ ॥
साधुस्वभाव विदुरजी ! योगसाधन के द्वारा उनकेशरीरके सारे दैहिक मल दूर हो गये थे। वह एक नदीके रूपमें परिणत हो गया, जो सिद्धगणसे सेवित और सब प्रकारकी सिद्धि देनेवाली है ॥ ३२ ॥ महायोगी भगवान् कपिलजी भी माताकी आज्ञा ले पिताके आश्रमसे ईशानकोणकी ओर चले गये ॥ ३३ ॥ वहाँ स्वयं समुद्रने उनका पूजन करके उन्हें स्थान दिया। वे तीनों लोकोंको शान्ति प्रदान करनेके लिये योगमार्गका अवलम्बन कर समाधिमें स्थित हो गये हैं। सिद्ध, चारण, गन्धर्व, मुनि और अप्सरागण उनकी स्तुति करते हैं तथा सांख्याचार्यगण भी उनका सब प्रकार स्तवन करते रहते हैं ॥ ३४-३५ ॥
निष्पाप विदुरजी ! तुम्हारे पूछनेसे मैंने तुम्हें यह भगवान् कपिल और देवहूतिका परम पवित्र संवाद सुनाया ॥ ३६ ॥ यह कपिलदेवजीका मत अध्यात्मयोग का गूढ़ रहस्य है । जो पुरुष इसका श्रवण या वर्णन करता है, वह भगवान् गरुडध्वज की भक्ति से युक्त होकर शीघ्र ही श्रीहरि के चरणारविन्दों को प्राप्त करता है ॥ ३७ ॥
इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां तृतीयस्कन्धे कापिलेयोपाख्याने त्रयस्त्रिंशोऽध्यायः ॥ ३३ ॥
तीसरा स्कन्ध समाप्त
हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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