॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
चतुर्थ स्कन्ध -पहला अध्याय..(पोस्ट०२)
स्वायम्भुव मनु की कन्याओं के वंश का वर्णन
तां कामयानां भगवान् उवाह यजुषां पतिः ।
तुष्टायां तोषमापन्नोऽ जनयद् द्वादशात्मजान् ॥ ॥ ६ ॥
तोषः प्रतोषः सन्तोषो भद्रः शान्तिरिडस्पतिः ।
इध्मः कविर्विभुः स्वह्नः सुदेवो रोचनो द्विषट् ॥ ७ ॥
तुषिता नाम ते देवा आसन् स्वायम्भुवान्तरे ।
मरीचिमिश्रा ऋषयो यज्ञः सुरगणेश्वरः ॥ ८ ॥
प्रियव्रतोत्तानपादौ मनुपुत्रौ महौजसौ ।
तत्पुत्रपौत्रनप्तॄणां अनुवृत्तं तदन्तरम् ॥ ९ ॥
देवहूतिमदात् तात कर्दमायात्मजां मनुः ।
तत्संबन्धि श्रुतप्रायं भवता गदतो मम ॥ १० ॥
दक्षाय ब्रह्मपुत्राय प्रसूतिं भगवान्मनुः ।
प्रायच्छद्यत्कृतः सर्गः त्रिलोक्यां विततो महान् ॥ ११ ॥
याः कर्दमसुताः प्रोक्ता नव ब्रह्मर्षिपत्नायः ।
तासां प्रसूतिप्रसवं प्रोच्यमानं निबोध मे ॥ १२ ॥
पत्नी मरीचेस्तु कला सुषुवे कर्दमात्मजा ।
कश्यपं पूर्णिमानं च ययोः आपूरितं जगत् ॥ १३ ॥
पूर्णिमासूत विरजं विश्वगं च परन्तप ।
देवकुल्यां हरेः पाद शौचाद्याभूत्सरिद्दिवः ॥ १४ ॥
अत्रेः पत्न्येनसूया त्रीन् जज्ञे सुयशसः सुतान् ।
दत्तं दुर्वाससं सोमं आत्मेशब्रह्मसम्भवान् ॥ १५ ॥
(श्रीमैत्रेयजी कहते हैं) जब दक्षिणा विवाह के योग्य हुई तो उसने यज्ञ भगवान् को ही पतिरूप में प्राप्त करने की इच्छा की, तब भगवान् यज्ञपुरुष ने उससे विवाह किया। इससे दक्षिणा को बड़ा सन्तोष हुआ । भगवान् ने प्रसन्न होकर उससे बारह पुत्र उत्पन्न किये ॥ ६ ॥ उनके नाम हैं—तोष, प्रतोष, सन्तोष, भद्र, शान्ति, इडस्पति, इध्म, कवि, विभु, स्वह्न, सुदेव और रोचन ॥ ७ ॥ ये ही स्वायम्भुव मन्वन्तर में ‘तुषित’ नामके देवता हुए । उस मन्वन्तर में मरीचि आदि सप्तर्षि थे, भगवान् यज्ञ ही देवताओं के अधीश्वर इन्द्र थे और महान् प्रभावशाली प्रियव्रत एवं उत्तानपाद मनुपुत्र थे। वह मन्वन्तर उन्हीं दोनों के बेटों, पोतों और दौहित्रों के वंशसे छा गया ॥ ८-९ ॥ प्यारे विदुरजी ! मनुजी ने अपनी दूसरी कन्या देवहूति कर्दमजी को ब्याही थी। उसके सम्बन्धकी प्राय: सभी बातें तुम मुझसे सुन चुके हो ॥ १० ॥ भगवान् मनु ने अपनी तीसरी कन्या प्रसूति का विवाह ब्रह्माजी के पुत्र दक्षप्रजापति से किया था; उसकी विशाल वंशपरम्परा तो सारी त्रिलोकी में फैली हुई है ॥ ११ ॥ मैं कर्दमजी की नौ कन्याओं का, जो नौ ब्रहमर्षियों से ब्याही गयी थीं, पहले ही वर्णन कर चुका हूँ। अब उनकी वंशपरम्पराका वर्णन करता हूँ, सुनो ॥ १२ ॥ मरीचि ऋषि की पत्नी कर्दमजी की बेटी कलासे कश्यप और पूर्णिमा नामक दो पुत्र हुए, जिनके वंश से यह सारा जगत् भरा हुआ है ॥ १३ ॥ शत्रुतापन विदुरजी ! पूर्णिमा के विरज और विश्वग नामके दो पुत्र तथा देवकुल्या नाम की एक कन्या हुई। यही दूसरे जन्म में श्रीहरिके चरणों के धोवन से देवनदी गङ्गा के रूप में प्रकट हुई ॥ १४ ॥ अत्रि की पत्नी अनसूया से दत्तात्रेय, दुर्वासा और चन्द्रमा नाम के तीन परम यशस्वी पुत्र हुए । ये क्रमश: भगवान् विष्णु, शङ्कर और ब्रह्मा के अंश से उत्पन्न हुए थे ॥ १५ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🌹💟🥀जय श्री हरि: !!🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्रीपरमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण