॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
चतुर्थ स्कन्ध -पहला अध्याय..(पोस्ट०५)
स्वायम्भुव मनु की कन्याओं के वंश का वर्णन
मैत्रेय उवाच -
इति तस्य वचः श्रुत्वा त्रयस्ते विबुधर्षभाः ।
प्रत्याहुः श्लक्ष्णया वाचा प्रहस्य तं ऋषिं प्रभो ॥ २९ ॥
देवा ऊचुः -
यथा कृतस्ते सङ्कल्पो भाव्यं तेनैव नान्यथा ।
सत्सङ्कल्पस्य ते ब्रह्मन् यद्वै ध्यायति ते वयम् ॥ ३० ॥
अथास्मद् अंशभूतास्ते आत्मजा लोकविश्रुताः ।
भवितारोऽङ्ग भद्रं ते विस्रप्स्यन्ति च ते यशः ॥ ३१ ॥
एवं कामवरं दत्त्वा प्रतिजग्मुः सुरेश्वराः ।
सभाजितास्तयोः सम्यग् दम्पत्योर्मिषतोस्ततः ॥ ३२ ॥
सोमोऽभूद्ब्र ह्मणोंऽशेन दत्तो विष्णोस्तु योगवित् ।
दुर्वासाः शंकरस्यांशो निबोधाङ्गिरसः प्रजाः ॥ ३३ ॥
श्रीमैत्रेयजी कहते हैं—समर्थ विदुरजी ! अत्रिमुनि के वचन सुनकर वे तीनों देव हँसे और उनसे सुमधुर वाणी में कहने लगे ॥ २९ ॥
देवताओं ने कहा—ब्रह्मन् ! तुम सत्यसङ्कल्प हो । अत: तुमने जैसा सङ्कल्प किया था, वही होना चाहिये। उससे विपरीत कैसे हो सकता था ? तुम जिस ‘जगदीश्वर’ का ध्यान करते थे, वह हम तीनों ही हैं ॥ ३० ॥ प्रिय महर्षे ! तुम्हारा कल्याण हो, तुम्हारे यहाँ हमारे ही अंशस्वरूप तीन जगद्विख्यात पुत्र उत्पन्न होंगे और तुम्हारे सुन्दर यशका विस्तार करेंगे ॥ ३१ ॥
उन्हें इस प्रकार अभीष्ट वर देकर तथा पति-पत्नी दोनोंसे भलीभाँति पूजित होकर उनके देखते- ही-देखते वे तीनों सुरेश्वर अपने-अपने लोकोंको चले गये ॥ ३२ ॥ ब्रह्माजीके अंशसे चन्द्रमा,विष्णुके अंशसे योगवेत्ता दत्तात्रेयजी और महादेवजीके अंशसे दुर्वासा ऋषि अत्रिके पुत्ररूपमें प्रकट हुए। अब अङ्गिरा ऋषिकी सन्तानों का वर्णन सुनो ॥ ३३ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
🌺💖🌺ॐश्रीपरमात्मने नमः
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नारायण नारायण नारायण नारायण