मंगलवार, 26 अगस्त 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण चतुर्थ स्कन्ध - पहला अध्याय..(पोस्ट०४)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
चतुर्थ स्कन्ध -पहला अध्याय..(पोस्ट०४)

स्वायम्भुव मनु की कन्याओं के वंश का वर्णन

तत्प्रादुर्भावसंयोग विद्योतितमना मुनिः ।
उत्तिष्ठन्नेकपादेन ददर्श विबुधर्षभान् ॥ २३ ॥
प्रणम्य दण्डवद्भूरमौ उपतस्थेऽर्हणाञ्जलिः ।
वृषहंससुपर्णस्थान् स्वैः स्वैश्चिह्नैश्च चिह्नितान् ॥ २४ ॥
कृपावलोकेन हसद् वदनेनोपलम्भितान् ।
तद् रोचिषा प्रतिहते निमील्य मुनिरक्षिणी ॥ २५ ॥
चेतस्तत्प्रवणं युञ्जन् नस्तावीत्संहताञ्जलिः ।
श्लक्ष्णया सूक्तया वाचा सर्वलोकगरीयसः ॥ २६ ॥

अत्रिरुवाच -
विश्वोद्भचवस्थितिलयेषु विभज्यमानैः
     मायागुणैरनुयुगं विगृहीतदेहाः ।
ते ब्रह्मविष्णुगिरिशाः प्रणतोऽस्म्यहं वः
     तेभ्यः क एव भवतां मे इहोपहूतः ॥ २७ ॥
एको मयेह भगवान् विविधप्रधानैः
     चित्तीकृतः प्रजननाय कथं नु यूयम् ।
अत्रागतास्तनुभृतां मनसोऽपि दूराद्
     ब्रूत प्रसीदत महानिह विस्मयो मे ॥ २८ ॥

उन तीनों का (ब्रह्मा, विष्णु और महादेव का) एक ही साथ प्रादुर्भाव होने से अत्रिमुनि का अन्त:करण प्रकाशित हो उठा। उन्होंने एक पैरसे खड़े-खड़े ही उन देवदेवों को देखा और फिर पृथ्वी पर दण्ड के समान लोटकर प्रणाम करनेके अनन्तर अर्घ्य-पुष्पादि पूजन की सामग्री हाथ में ले उनकी पूजा की । वे तीनों अपने-अपने वाहन—हंस, गरुड और बैलपर चढ़े हुए तथा अपने कमण्डलु, चक्र, त्रिशूलादि चिह्नोंसे सुशोभित थे ॥२३-२४॥ उनकी आँखोंसे कृपाकी वर्षा हो रही थी। उनके मुखपर मन्द हास्यकी रेखा थी—जिससे उनकी प्रसन्नता झलक रही थी। उनके तेजसे चौंधियाकर मुनिवरने अपनी आँखें मूँद लीं ॥ २५ ॥ वे चित्तको उन्हींकी ओर लगाकर हाथ जोड़ अतिमधुर और सुन्दर भावपूर्ण वचनोंमें लोकमें सबसे बड़े उन तीनों देवोंकी स्तुति करने लगे ॥ २६ ॥ अत्रिमुनि ने कहा—भगवन् ! प्रत्येक कल्पके आरम्भमें जगत् की उत्पत्ति, स्थिति और लयके लिये जो मायाके सत्त्वादि तीनों गुणोंका विभाग करके भिन्न-भिन्न शरीर धारण करते हैं—वे ब्रह्मा, विष्णु और महादेव आप ही हैं; मैं आपको प्रणाम करता हूँ। कहिये—मैंने जिनको बुलाया था, आपमेंसे वे कौन महानुभाव हैं ? ॥ २७ ॥ क्योंकि मैंने तो सन्तानप्राप्ति की इच्छासे केवल एक सुरेश्वर भगवान्‌का ही चिन्तन किया था। फिर आप तीनोंने यहाँ पधारनेकी कृपा कैसे की ? आपलोगों तक तो देहधारियों के मनकी भी गति नहीं है, इसलिये मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा है। आपलोग कृपा करके मुझे इसका रहस्य बतलाइये ॥ २८ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌹💟🥀जय श्रीकृष्ण 🙏🙏
    ॐ श्रीपरमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    हे नाथ नारायण वासुदेव: !!

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