सोमवार, 1 सितंबर 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण चतुर्थ स्कन्ध - पहला अध्याय..(पोस्ट१०)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
चतुर्थ स्कन्ध -पहला अध्याय..(पोस्ट१०)

स्वायम्भुव मनु की कन्याओं के वंश का वर्णन

देवा ऊचुः –

यो मायया विरचितं निजयात्मनीदं
     खे रूपभेदमिव तत्प्रतिचक्षणाय ।
एतेन धर्मसदने ऋषिमूर्तिनाद्य
     प्रादुश्चकार पुरुषाय नमः परस्मै ॥ ५६ ॥
सोऽयं स्थितिव्यतिकरोपशमाय सृष्टान्
     सत्त्वेन नः सुरगणान् अनुमेयतत्त्वः ।
दृश्याददभ्रकरुणेन विलोकनेन
     यच्छ्रीनिकेतममलं क्षिपतारविन्दम् ॥ ५७ ॥
एवं सुरगणैस्तात भगवन्तावभिष्टुतौ ।
लब्धावलोकैर्ययतुः अर्चितौ गन्धमादनम् ॥ ५८ ॥
तौ इमौ वै भगवतो हरेरंशाविहागतौ ।
भारव्ययाय च भुवः कृष्णौ यदुकुरूद्वहौ ॥ ५९ ॥

देवताओंने कहा—जिस प्रकार आकाशमें तरह-तरहके रूपोंकी कल्पना कर ली जाती है—उसी प्रकार जिन्होंने अपनी मायाके द्वारा अपने ही स्वरूपके अंदर इस संसारकी रचना की है और अपने उस स्वरूपको प्रकाशित करनेके लिये इस समय इस ऋषि-विग्रहके साथ धर्मके घरमें अपने- आपको प्रकट किया है, उन परम पुरुषको हमारा नमस्कार है ॥ ५६ ॥ जिनके तत्त्वका शास्त्रके आधारपर हमलोग केवल अनुमान ही करते हैं, प्रत्यक्ष नहीं कर पाते—उन्हीं भगवान्‌ने देवताओंको संसारकी मार्यादामें किसी प्रकारकी गड़बड़ी न हो, इसीलिये सत्त्वगुणसे उत्पन्न किया है। अब वे अपने करुणामय नेत्रोंसे—जो समस्त शोभा और सौन्दर्यके निवासस्थान निर्मल दिव्य कमलको भी नीचा दिखानेवाले हैं—हमारी ओर निहारें ॥ ५७ ॥
प्यारे विदुरजी ! प्रभुका साक्षात् दर्शन पाकर देवताओं ने उनकी इस प्रकार स्तुति और पूजा की । तदनन्तर भगवान्‌ नर-नारायण दोनों गन्धमादन पर्वतपर चले गये ॥ ५८ ॥ भगवान्‌ श्रीहरिके अंशभूत वे नर-नारायण ही इस समय पृथ्वीका भार उतारनेके लिये यदुकुल भूषण श्रीकृष्ण और उन्हींके सरीखे श्यामवर्ण, कुरुकुलतिलक अर्जुनके रूपमें अवतीर्ण हुए हैं ॥ ५९ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌸💖🥀🌸 जय श्री हरि: !!
    ॐ श्रीपरमात्मने नमः
    श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव: !!
    श्रीमन् नारायण नारायण हरि: !! हरि: !!

    जवाब देंहटाएं

श्रीमद्भागवतमहापुराण चतुर्थ स्कन्ध - छठा अध्याय..(पोस्ट०३)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  चतुर्थ स्कन्ध – छठा अध्याय..(पोस्ट०३) ब्रह्मादि देवताओंका कैलास जाकर श्रीमहादेवजीको मनाना कु...