मंगलवार, 9 सितंबर 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण चतुर्थ स्कन्ध - चौथा अध्याय..(पोस्ट०२)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
चतुर्थ स्कन्ध – चौथा  अध्याय..(पोस्ट०२)

सती का अग्निप्रवेश

आब्रह्मघोषोर्जितयज्ञवैशसं
     विप्रर्षिजुष्टं विबुधैश्च सर्वशः ।
मृद्दार्वयःकाञ्चनदर्भचर्मभिः
     निसृष्टभाण्डं यजनं समाविशत् ॥ ॥ ६ ॥
तामागतां तत्र न कश्चनाद्रियद्
     विमानितां यज्ञकृतो भयाज्जनः ।
ऋते स्वसॄर्वै जननीं च सादराः
     प्रेमाश्रुकण्ठ्यः परिषस्वजुर्मुदा ॥ ७ ॥
सौदर्यसम्प्रश्नसमर्थवार्तया
     मात्रा च मातृष्वसृभिश्च सादरम् ।
दत्तां सपर्यां वरमासनं च सा
     नादत्त पित्राप्रतिनन्दिता सती ॥ ८ ॥
अरुद्रभागं तमवेक्ष्य चाध्वरं
     पित्रा च देवे कृतहेलनं विभौ ।
अनादृता यज्ञसदस्यधीश्वरी
     चुकोप लोकानिव धक्ष्यती रुषा ॥ ९ ॥
जगर्ह सामर्षविपन्नया गिरा
     शिवद्विषं धूमपथश्रमस्मयम् ।
स्वतेजसा भूतगणान् समुत्थितान्
     निगृह्य देवी जगतोऽभिशृण्वतः ॥ १० ॥

तदनन्तर सती अपने समस्त सेवकोंके साथ दक्षकी यज्ञशालामें पहुँचीं। वहाँ वेदध्वनि करते हुए ब्राह्मणोंमें परस्पर होड़ लग रही थी कि सबसे ऊँचे स्वरमें कौन बोले सब ओर ब्रहमर्षि और देवता विराजमान थे तथा जहाँ-तहाँ मिट्टी, काठ, लोहे, सोने, डाभ और चर्मके पात्र रखे हुए थे ॥ ६ ॥ वहाँ पहुँचनेपर पिताके द्वारा सतीकी अवहेलना हुई, यह देख यज्ञकर्ता दक्ष के भय से सती की माता और बहनोंके सिवा किसी भी मनुष्य ने उनका कुछ भी आदर-सत्कार नहीं किया। अवश्य ही उनकी माता और बहिनें बहुत प्रसन्न हुर्ईं और प्रेमसे गद्गद होकर उन्होंने सतीजीको आदरपूर्वक गले लगाया ॥ ७ ॥ किन्तु सतीजीने पितासे अपमानित होनेके कारण, बहिनों के कुशल-प्रश्नसहित प्रेमपूर्ण वार्तालाप तथा माता और मौसियों के सम्मानपूर्वक दिये हुए उपहार और सुन्दर आसनादिको स्वीकार नहीं किया ॥ ८ ॥
सर्वलोकेश्वरी देवी सतीका यज्ञमण्डपमें तो अनादर हुआ ही था, उन्होंने यह भी देखा कि उस यज्ञमें भगवान्‌ शङ्करके लिये कोई भाग नहीं दिया गया है और पिता दक्ष उनका बड़ा अपमान कर रहा है। इससे उन्हें बहुत क्रोध हुआ; ऐसा जान पड़ता था मानो वे अपने रोषसे सम्पूर्ण लोकोंको भस्म कर देंगी ॥ ९ ॥ दक्ष को कर्ममार्ग के अभ्यास से बहुत घमंड हो गया था। उसे शिवजीसे द्वेष करते देख जब सतीके साथ आये हुए भूत उसे मारनेको तैयार हुए, तो देवी सती ने उन्हें अपने तेजसे रोक दिया और सब लोगों को सुनाकर पिता की निन्दा करते हुए क्रोध से लडख़ड़ाती हुई वाणीमें कहा ॥ १० ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌼🌿🌺ॐश्रीपरमात्मने नमः
    श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव: !!
    सर्वलोकेश्वरी आदिशक्ति मां सती का सहस्त्रों कोटिश: वंदन🙏

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