॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
चतुर्थ स्कन्ध – चौथा अध्याय..(पोस्ट०१)
सती का अग्निप्रवेश
मैत्रेय उवाच -
एतावदुक्त्वा विरराम शङ्करः
पत्न्यिङ्गनाशं ह्युभयत्र चिन्तयन् ।
सुहृद् दिदृक्षुः परिशङ्किता भवान्
निष्क्रामती निर्विशती द्विधाऽऽस सा ॥ १ ॥
सुहृद् दिदृक्षाप्रतिघातदुर्मनाः
स्नेहाद्रुदत्यश्रुकलातिविह्वला ।
भवं भवान्यप्रतिपूरुषं रुषा
प्रधक्ष्यतीवैक्षत जातवेपथुः ॥ २ ॥
ततो विनिःश्वस्य सती विहाय तं
शोकेन रोषेण च दूयता हृदा ।
पित्रोरगात् स्त्रैणविमूढधीर्गृहान्
प्रेम्णात्मनो योऽर्धमदात्सतां प्रियः ॥ ३ ॥
तामन्वगच्छन् द्रुतविक्रमां सतीं
एकां त्रिनेत्रानुचराः सहस्रशः ।
सपार्षदयक्षा मणिमन्मदादयः
पुरोवृषेन्द्रास्तरसा गतव्यथाः ॥ ४ ॥
तां सारिका कन्दुकदर्पणाम्बुज
श्वेतातपत्र व्यजनस्रगादिभिः ।
गीतायनैः दुन्दुभिशङ्खवेणुभिः
वृषेन्द्रमारोप्य विटङ्किता ययुः ॥ ५ ॥
श्रीमैत्रेयजी कहते हैं—विदुरजी ! इतना कहकर भगवान् शङ्कर मौन हो गये। उन्होंने देखा कि दक्षके यहाँ जाने देने अथवा जाने देनेसे रोकने—दोनों ही अवस्थाओंमें सतीके प्राणत्यागकी सम्भावना है। इधर, सतीजी भी कभी बन्धुजनोंको देखने जानेकी इच्छासे बाहर आतीं और कभी ‘भगवान् शङ्कर रुष्ट न हो जायँ’ इस शङ्कासे फिर लौट जातीं। इस प्रकार कोई एक बात निश्चित न कर सकनेके कारण वे दुविधामें पड़ गयीं—चञ्चल हो गयीं ॥ १ ॥ बन्धुजनोंसे मिलनेकी इच्छामें बाधा पडऩेसे वे बड़ी अनमनी हो गयीं। स्वजनोंके स्नेहवश उनका हृदय भर आया और वे आँखोंमें आँसू भरकर अत्यन्त व्याकुल हो रोने लगीं। उनका शरीर थरथर काँपने लगा और वे अप्रतिम पुरुष भगवान् शङ्करकी ओर इस प्रकार रोषपूर्ण दृष्टिसे देखने लगीं मानो उन्हें भस्म कर देंगी ॥ २ ॥ शोक और क्रोधने उनके चित्तको बिलकुल बेचैन कर दिया तथा स्त्रीस्वभावके कारण उनकी बुद्धि मूढ़ हो गयी। जिन्होंने प्रीतिवश उन्हें अपना आधा अङ्गतक दे दिया था, उन सत्पुरुषोंके प्रिय भगवान् शङ्कर को भी छोडक़र वे लंबी-लंबी साँस लेती हुई अपने माता-पिताके घर चल दीं ॥ ३ ॥ सतीको बड़ी फुर्तीसे अकेली जाते देख श्रीमहादेवजीके मणिमान् एवं मद आदि हजारों सेवक भगवान् के वाहन वृषभराजको आगे कर तथा और भी अनेकों पार्षद और यक्षोंको साथ ले बड़ी तेजीसे निर्भयतापूर्वक उनके पीछे हो लिये ॥ ४ ॥ उन्होंने सतीको बैलपर सवार करा दिया तथा मैनापक्षी, गेंद, दर्पण और कमल आदि खेलकी सामग्री, श्वेत छत्र, चँवर और माला आदि राजचिह्न तथा दुन्दुभि, शङ्ख और बाँसुरी आदि गाने-बजाने के सामानों से सुसज्जित हो वे उनके साथ चल दिये ॥ ५ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
नमः पार्वती पतये हर हर महादेव
जवाब देंहटाएंश्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव: !!
नारायण नारायण नारायण नारायण 🙏🌹🙏🌹🙏