गुरुवार, 16 अक्टूबर 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण चतुर्थ स्कन्ध - पंद्रहवां अध्याय..(पोस्ट०२)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
चतुर्थ स्कन्ध – पंद्रहवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)

महाराज पृथुका आविर्भाव और राज्याभिषेक

तस्याभिषेक आरब्धो ब्राह्मणैर्ब्रह्मवादिभिः ।
आभिषेचनिकान्यस्मै आजह्रुः सर्वतो जनाः ॥ ११ ॥
सरित्समुद्रा गिरयो नागा गावः खगा मृगाः ।
द्यौः क्षितिः सर्वभूतानि समाजह्रुरुपायनम् ॥ १२ ॥
सोऽभिषिक्तो महाराजः सुवासाः साध्वलङ्‌कृतः ।
पत्न्याकर्चिषालङ्‌कृतया विरेजेऽग्निरिवापरः ॥ १३ ॥
तस्मै जहार धनदो हैमं वीर वरासनम् ।
वरुणः सलिलस्रावं आतपत्रं शशिप्रभम् ॥ १४ ॥
वायुश्च वालव्यजने धर्मः कीर्तिमयीं स्रजम् ।
इन्द्रः किरीटमुत्कृष्टं दण्डं संयमनं यमः ॥ १५ ॥
ब्रह्मा ब्रह्ममयं वर्म भारती हारमुत्तमम् ।
हरिः सुदर्शनं चक्रं तत् पत्न्याव्याहतां श्रियम् ॥ १६ ॥
दशचन्द्रमसिं रुद्रः शतचन्द्रं तथाम्बिका ।
सोमोऽमृतमयानश्वान् त्वष्टा रूपाश्रयं रथम् ॥ १७ ॥
अग्निराजगवं चापं सूर्यो रश्मिमयानिषून् ।
भूः पादुके योगमय्यौ द्यौः पुष्पावलिमन्वहम् ॥ १८ ॥
नाट्यं सुगीतं वादित्रं अन्तर्धानं च खेचराः ।
ऋषयश्चाशिषः सत्याः समुद्रः शङ्‌खमात्मजम् ॥ १९ ॥
सिन्धवः पर्वता नद्यो रथवीथीर्महात्मनः ।
सूतोऽथ मागधो वन्दी तं स्तोतुमुपतस्थिरे ॥ २० ॥
स्तावकान् तानभिप्रेत्य पृथुर्वैन्यः प्रतापवान् ।
मेघनिर्ह्रादया वाचा प्रहसन् इदमब्रवीत् ॥ २१ ॥

वेदवादी ब्राह्मणोंने महाराज पृथुके अभिषेकका आयोजन किया। सब लोग उसकी सामग्री जुटानेमें लग गये ॥ ११ ॥ उस समय नदी, समुद्र, पर्वत, सर्प, गौ, पक्षी, मृग, स्वर्ग, पृथ्वी तथा अन्य सब प्राणियोंने भी उन्हें तरह-तरहके उपहार भेंट किये ॥ १२ ॥ सुन्दर वस्त्र और आभूषणोंसे अलंकृत महाराज पृथुका विधिवत् राज्याभिषेक हुआ। उस समय अनेकों अलंकारोंसे सजी हुई महारानी अर्चि के साथ वे दूसरे अग्निदेव के सदृश जान पड़ते थे ॥ १३ ॥
वीर विदुरजी ! उन्हें कुबेरने बड़ा ही सुन्दर सोनेका सिंहासन दिया तथा वरुणने चन्द्रमाके समान श्वेत और प्रकाशमय छत्र दिया, जिससे निरन्तर जलकी फुहियाँ झरती रहती थीं ॥ १४ ॥ वायुने दो चँवर, धर्मने कीर्तिमयी माला, इन्द्रने मनोहर मुकुट, यमने दमन करनेवाला दण्ड, ब्रह्माने वेदमय कवच, सरस्वतीने सुन्दर हार, विष्णुभगवान्‌ने सुदर्शनचक्र, विष्णुप्रिया लक्ष्मीजीने अविचल सम्पत्ति, रुद्रने दस चन्द्राकार चिह्नोंसे युक्त कोषवाली तलवार, अम्बिकाजीने सौ चन्द्राकार चिह्नोंवाली ढाल, चन्द्रमाने अमृतमय अश्व, त्वष्टा (विश्वकर्मा) ने सुन्दर रथ, अग्रिने बकरे और गौके सींगोंका बना हुआ सुदृढ़ धनुष, सूर्यने तेजोमय बाण, पृथ्वीने चरणस्पर्श-मात्रसे अभीष्ट स्थानपर पहुँचा देनेवाली योगमयी पादुकाएँ, आकाशके अभिमानी द्यौदेवताने नित्य नूतन पुष्पोंकी माला, आकाशविहारी सिद्ध-गन्धर्वादिने नाचने-गाने, बजाने और अन्तर्धान हो जानेकी शक्तियाँ, ऋषियोंने अमोघ आशीर्वाद, समुद्रने अपनेसे उत्पन्न हुआ शङ्ख, तथा सातों समुद्र, पर्वत और नदियोंने उनके रथके लिये बेरोक-टोक मार्ग उपहारमें दिये। इसके पश्चात् सूत, मागध और वन्दीजन उनकी स्तुति करनेके लिये उपस्थित हुए ॥ १५—२० ॥ तब उन स्तुति करनेवालोंका अभिप्राय समझकर वेनपुत्र परम प्रतापी महाराज पृथुने हँसते हुए मेघके समान गम्भीर वाणीमें कहा ॥ २१ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 💐💖🥀जय हो मेरे नारायण
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    कृष्ण दामोदरम् वासुदेवम् हरि:
    नारायण नारायण नारायण नारायण

    जवाब देंहटाएं

श्रीमद्भागवतमहापुराण चतुर्थ स्कन्ध - सोलहवां अध्याय..(पोस्ट०२)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  चतुर्थ स्कन्ध – सोलहवाँ अध्याय..(पोस्ट०२) वन्दीजन द्वारा महाराज पृथुकी स्तुति दुरासदो दुर्वि...