शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण चतुर्थ स्कन्ध - सोलहवां अध्याय..(पोस्ट०१)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
चतुर्थ स्कन्ध – सोलहवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)

वन्दीजन द्वारा महाराज पृथुकी स्तुति

मैत्रेय उवाच -
इति ब्रुवाणं नृपतिं गायका मुनिचोदिताः ।
तुष्टुवुस्तुष्टमनसः तद् वाग् अमृतसेवया ॥ १ ॥
नालं वयं ते महिमानुवर्णने
     यो देववर्योऽवततार मायया ।
वेनाङ्‌गजातस्य च पौरुषाणि ते
     वाचस्पतीनामपि बभ्रमुर्धियः ॥ २ ॥
अथाप्युदारश्रवसः पृथोर्हरेः
     कलावतारस्य कथामृतादृताः ।
यथोपदेशं मुनिभिः प्रचोदिताः
     श्लाघ्यानि कर्माणि वयं वितन्महि ॥ ३ ॥
एष धर्मभृतां श्रेष्ठो लोकं धर्मेऽनुवर्तयन् ।
गोप्ता च धर्मसेतूनां शास्ता तत्परिपन्थिनाम् ॥ ४ ॥
एष वै लोकपालानां बिभर्त्येकस्तनौ तनूः ।
काले काले यथाभागं लोकयोः उभयोर्हितम् ॥ ५ ॥
वसु काल उपादत्ते काले चायं विमुञ्चति ।
समः सर्वेषु भूतेषु प्रतपन् सूर्यवद्विभुः ॥ ॥ ६ ॥
तितिक्षत्यक्रमं वैन्य उपर्याक्रमतामपि ।
भूतानां करुणः शश्वद् आर्तानां क्षितिवृत्तिमान् ॥ ७ ॥
देवेऽवर्षत्यसौ देवो नरदेववपुर्हरिः ।
कृच्छ्रप्राणाः प्रजा ह्येष रक्षिष्यति अञ्जसेन्द्रवत् ॥ ८ ॥
आप्याययत्यसौ लोकं वदनामृतमूर्तिना ।
सानुरागावलोकेन विशदस्मितचारुणा ॥ ९ ॥
अव्यक्तवर्त्मैष निगूढकार्यो
     गम्भीरवेधा उपगुप्तवित्तः ।
अनन्तमाहात्म्यगुणैकधामा
     पृथुः प्रचेता इव संवृतात्मा ॥ १० ॥

श्रीमैत्रेयजी कहते हैं—महाराज पृथुने जब इस प्रकार कहा, तब उनके वचनामृतका आस्वादन करके सूत आदि गायकलोग बड़े प्रसन्न हुए। फिर वे मुनियोंकी प्रेरणासे उनकी इस प्रकार स्तुति करने लगे ॥ १ ॥ ‘आप साक्षात् देवप्रवर श्रीनारायण ही हैं’ जो अपनी मायासे अवतीर्ण हुए हैं; हम आपकी महिमाका वर्णन करनेमें समर्थ नहीं हैं। आपने जन्म तो राजा वेनके मृतक शरीरसे लिया है, किन्तु आपके पौरुषोंका वर्णन करनेमें साक्षात् ब्रह्मादिकी बुद्धि भी चकरा जाती है ॥ २ ॥ तथापि आपके कथामृतके आस्वादनमें आदर-बुद्धि रखकर मुनियोंके उपदेशके अनुसार उन्हींकी प्रेरणासे हम आपके परम प्रशंसनीय कर्मोंका कुछ विस्तार करना चाहते हैं, आप साक्षात् श्रीहरिके कलावतार हैं और आपकी कीर्ति बड़ी उदार है ॥ ३ ॥
‘ये धर्मधारियोंमें श्रेष्ठ महाराज पृथु लोकको धर्ममें प्रवृत्त करके धर्ममर्यादाकी रक्षा करेंगे तथा उसके विरोधियोंको दण्ड देंगे ॥ ४ ॥ ये अकेले ही समय-समयपर प्रजाके पालन, पोषण और अनुरञ्जन आदि कार्यके अनुसार अपने शरीरमें भिन्न-भिन्न लोकपालोंकी मूर्तिको धारण करेंगे तथा यज्ञ आदिके प्रचारद्वारा स्वर्गलोक और वृष्टिकी व्यवस्थाद्वारा भूलोक—दोनोंका ही हित साधन करेंगे ॥ ५ ॥ ये सूर्यके समान अलौकिक महिमान्वित प्रतापवान् और समदर्शी होंगे। जिस प्रकार सूर्य देवता आठ महीने तपते रहकर जल खींचते हैं और वर्षा ऋतुमें उसे उड़ेल देते हैं, उसी प्रकार ये कर आदिके द्वारा कभी धन-सञ्चय करेंगे और कभी उसका प्रजाके हितके लिये व्यय कर डालेंगे ॥ ६ ॥ ये बड़े दयालु होंगे। यदि कभी कोई दीन पुरुष इनके मस्तकपर पैर भी रख देगा, तो भी ये पृथ्वीके समान उसके इस अनुचित व्यवहारको सदा सहन करेंगे ॥ ७ ॥ कभी वर्षा न होगी और प्रजाके प्राण सङ्कटमें पड़ जायँगे, तो ये राजवेषधारी श्रीहरि इन्द्रकी भाँति जल बरसाकर अनायास ही उसकी रक्षा कर लेंगे ॥ ८ ॥ ये अपने अमृतमय मुखचन्द्रकी मनोहर मुसकान और प्रेमभरी चितवनसे सम्पूर्ण लोकोंको आनन्दमग्र कर देंगे ॥ ९ ॥ इनकी गतिको कोई समझ न सकेगा, इनके कार्य भी गुप्त होंगे तथा उन्हें सम्पन्न करनेका ढंग भी बहुत गम्भीर होगा। इनका धन सदा सुरक्षित रहेगा। ये अनन्त माहात्म्य और गुणोंके एकमात्र आश्रय होंगे। इस प्रकार मनस्वी पृथु साक्षात् वरुणके ही समान होंगे ॥ १० ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌹💖🥀जय श्रीहरि: !!🙏🙏
    श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव: !!
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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