गुरुवार, 2 अक्टूबर 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण चतुर्थ स्कन्ध - दसवां अध्याय..(पोस्ट०१)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
चतुर्थ स्कन्ध – दसवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)

उत्तम का मारा जाना, ध्रुव का यक्षों के साथ युद्ध

मैत्रेय उवाच -

प्रजापतेर्दुहितरं शिशुमारस्य वै ध्रुवः ।
उपयेमे भ्रमिं नाम तत्सुतौ कल्पवत्सरौ ॥ १ ॥
इलायामपि भार्यायां वायोः पुत्र्यां महाबलः ।
पुत्रं उत्कलनामानं योषिद् रत्नममजीजनत् ॥ २ ॥
उत्तमस्त्वकृतोद्वाहो मृगयायां बलीयसा ।
हतः पुण्यजनेनाद्रौ तन्मातास्य गतिं गता ॥ ३ ॥
ध्रुवो भ्रातृवधं श्रुत्वा कोपामर्षशुचार्पितः ।
जैत्रं स्यन्दनमास्थाय गतः पुण्यजनालयम् ॥ ४ ॥
गत्वोदीचीं दिशं राजा रुद्रानुचरसेविताम् ।
ददर्श हिमवद्द्रोण्यां पुरीं गुह्यकसंकुलाम् ॥ ५ ॥
दध्मौ शङ्‌खं बृहद्बापहुः खं दिशश्चानुनादयन् ।
येनोद्विग्नदृशः क्षत्तः उपदेव्योऽत्रसन्भृशम् ॥ ॥ ६ ॥

श्रीमैत्रेयजी कहते हैं—विदुरजी ! ध्रुवने प्रजापति शिशुमारकी पुत्री भ्रमिके साथ विवाह किया, उससे उनके कल्प और वत्सर नामके दो पुत्र हुए ॥ १ ॥ महाबली ध्रुवकी दूसरी स्त्री वायुपुत्री इला थी। उससे उनके उत्कल नामके एक पुत्र और एक कन्यारत्न का जन्म हुआ ॥ २ ॥ उत्तमका अभी विवाह नहीं हुआ था कि एक दिन शिकार खेलते समय उसे हिमालय पर्वतपर एक बलवान् यक्षने मार डाला। उसके साथ उसकी माता भी परलोक सिधार गयी ॥ ३ ॥
ध्रुवने जब भाईके मारे जानेका समाचार सुना तो वे क्रोध, शोक और उद्वेगसे भरकर एक विजयप्रद रथपर सवार हो यक्षोंके देशमें जा पहुँचे ॥ ४ ॥ उन्होंने उत्तर दिशामें जाकर हिमालयकी घाटीमें यक्षोंसे भरी हुई अलकापुरी देखी, उसमें अनेकों भूत-प्रेत-पिशाचादि रुद्रानुचर रहते थे ॥ ५ ॥ विदुरजी ! वहाँ पहुँचकर महाबाहु ध्रुवने अपना शङ्ख बजाया तथा सम्पूर्ण आकाश और दिशाओंको गुँजा दिया। उस शङ्खध्वनिसे यक्ष-पत्नियाँ बहुत ही डर गयीं, उनकी आँखें भयसे कातर हो उठीं ॥ ६ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌹💟🥀 जय श्री हरि: !!🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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