॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
चतुर्थ स्कन्ध – बारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०७)
ध्रुवजी को कुबेर का वरदान और विष्णुलोक की प्राप्ति
मैत्रेय उवाच -
एतत्तेऽभिहितं सर्वं यत्पृष्टोऽहमिह त्वया ।
ध्रुवस्योद्दामयशसः चरितं सम्मतं सताम् ॥ ४४ ॥
धन्यं यशस्यमायुष्यं पुण्यं स्वस्त्ययनं महत् ।
स्वर्ग्यं ध्रौव्यं सौमनस्यं प्रशस्यमघमर्षणम् ॥ ४५ ॥
श्रुत्वैतत् श्रद्धयाभीक्ष्णं अच्युतप्रियचेष्टितम् ।
भवेद्भक्तिर्भगवति यया स्यात् क्लेशसङ्क्षयः ॥ ४६ ॥
महत्त्वमिच्छतां तीर्थं श्रोतुः शीलादयो गुणाः ।
यत्र तेजस्तदिच्छूनां मानो यत्र मनस्विनाम् ॥ ४७ ॥
प्रयतः कीर्तयेत्प्रातः समवाये द्विजन्मनाम् ।
सायं च पुण्यश्लोकस्य ध्रुवस्य चरितं महत् ॥ ४८ ॥
पौर्णमास्यां सिनीवाल्यां द्वादश्यां श्रवणेऽथवा ।
दिनक्षये व्यतीपाते सङ्क्रमेऽर्कदिनेऽपि वा ॥ ४९ ॥
श्रावयेत् श्रद्दधानानां तीर्थपादपदाश्रयः ।
नेच्छन् तत्रात्मनात्मानं सन्तुष्ट इति सिध्यति ॥ ५० ॥
ज्ञानमज्ञाततत्त्वाय यो दद्यात्सत्पथेऽमृतम् ।
कृपालोर्दीननाथस्य देवास्तस्यानुगृह्णते ॥ ५१ ॥
इदं मया तेऽभिहितं कुरूद्वह
ध्रुवस्य विख्यातविशुद्धकर्मणः ।
हित्वार्भकः क्रीडनकानि मातुः
गृहं च विष्णुं शरणं यो जगाम ॥ ५२ ॥
श्रीमैत्रेयजी कहते हैं—विदुरजी ! तुमने मुझसे उदारकीर्ति ध्रुवजीके चरित्रके विषयमें पूछा था, सो मैंने तुम्हें वह पूरा-का-पूरा सुना दिया। साधुजन इस चरित्रकी बड़ी प्रशंसा करते हैं ॥ ४४ ॥ यह धन, यश और आयुकी वृद्धि करनेवाला, परम पवित्र और अत्यन्त मङ्गलमय है। इससे स्वर्ग और अविनाशी पद भी प्राप्त हो सकता है। यह देवत्वकी प्राप्ति करानेवाला, बड़ा ही प्रशंसनीय और समस्त पापोंका नाश करनेवाला है ॥ ४५ ॥ भगवद्भक्त ध्रुवके इस पवित्र चरित्रको जो श्रद्धापूर्वक बार-बार सुनते हैं, उन्हें भगवान्की भक्ति प्राप्त होती है, जिससे उनके सभी दु:खोंका नाश हो जाता है ॥ ४६ ॥ इसे श्रवण करनेवालेको शीलादि गुणोंकी प्राप्ति होती है जो महत्त्व चाहते हैं, उन्हें महत्त्वकी प्राप्ति करानेवाला स्थान मिलता है, जो तेज चाहते हैं, उन्हें तेज प्राप्त होता है और मनस्वियोंका मान बढ़ता है ॥ ४७ ॥ पवित्रकीर्ति ध्रुवजीके इस महान् चरित्रका प्रात: और सायंकाल ब्राह्मणादि द्विजातियोंके समाजमें एकाग्र चित्तसे कीर्तन करना चाहिये ॥ ४८ ॥ भगवान्के परम पवित्र चरणोंकी शरणमें रहनेवाला जो पुरुष इसे निष्कामभावसे पूर्णिमा, अमावस्या, द्वादशी, श्रवण नक्षत्र, तिथिक्षय, व्यतीपात, संक्रान्ति अथवा रविवार के दिन श्रद्धालु पुरुषों को सुनाता है, वह स्वयं अपने आत्मा में ही सन्तुष्ट रहने लगता है और सिद्ध हो जाता है ॥ ४९-५० ॥ यह साक्षात् भगवद्विषयक अमृतमय ज्ञान है; जो लोग भगवन्मार्ग के मर्म से अनभिज्ञ हैं—उन्हें जो कोई इसे प्रदान करता है, उस दीनवत्सल कृपालु पुरुषपर देवता अनुग्रह करते हैं ॥ ५१ ॥ ध्रुवजी के कर्म सर्वत्र प्रसिद्ध और परम पवित्र हैं, वे अपनी बाल्यावस्था में ही माताके घर और खिलौनों का मोह छोडक़र श्रीविष्णुभगवान् की शरण में चले गये थे। कुरुनन्दन ! उनका यह पवित्र चरित्र मैंने तुम्हें सुना दिया ॥ ५२ ॥
इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां चतुर्थस्कन्धे ध्रुवचरित नाम द्वादशोऽध्यायः ॥ १२ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🌹💖🥀जय श्री हरि: !!🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
हरि:शरणम् हरि:शरणम् हरि: शरणम् 🙏नारायण नारायण नारायण नारायण