गुरुवार, 9 अक्टूबर 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण चतुर्थ स्कन्ध - बारहवां अध्याय..(पोस्ट ०६)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
चतुर्थ स्कन्ध – बारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)

ध्रुवजी को कुबेर का वरदान और विष्णुलोक की प्राप्ति

यद्‌भ्राजमानं स्वरुचैव सर्वतो
     लोकास्त्रयो ह्यनु विभ्राजन्त एते ।
यन्नाव्रजन्जन्तुषु येऽननुग्रहा
     व्रजन्ति भद्राणि चरन्ति येऽनिशम् ॥ ३६ ॥
शान्ताः समदृशः शुद्धाः सर्वभूतानुरञ्जनाः ।
यान्त्यञ्जसाच्युतपदं अच्युतप्रियबान्धवाः ॥ ३७ ॥
इत्युत्तानपदः पुत्रो ध्रुवः कृष्णपरायणः ।
अभूत्त्रयाणां लोकानां चूडामणिरिवामलः ॥ ३८ ॥
गम्भीरवेगोऽनिमिषं ज्योतिषां चक्रमाहितम् ।
यस्मिन् भ्रमति कौरव्य मेढ्यामिव गवां गणः ॥ ३९ ॥
महिमानं विलोक्यास्य नारदो भगवान् ऋषिः ।
आतोद्यं वितुदन् श्लोकान् सत्रेऽगायत् प्रचेतसाम् ॥ ४० ॥

नारद उवाच -
नूनं सुनीतेः पतिदेवतायाः
     तपःप्रभावस्य सुतस्य तां गतिम् ।
दृष्ट्वाभ्युपायानपि वेदवादिनो
     नैवाधिगन्तुं प्रभवन्ति किं नृपाः ॥ ४१ ॥
यः पञ्चवर्षो गुरुदारवाक्शरैः
     भिन्नेन यातो हृदयेन दूयता ।
वनं मदादेशकरोऽजितं प्रभुं
     जिगाय तद्‌भक्तगुणैः पराजितम् ॥ ४२ ॥
यः क्षत्रबन्धुर्भुवि तस्याधिरूढं
     अन्वारुरुक्षेदपि वर्षपूगैः ।
षट्पञ्चवर्षो यदहोभिरल्पैः
     प्रसाद्य वैकुण्ठमवाप तत्पदम् ॥ ४३ ॥

यह दिव्य धाम अपने ही प्रकाशसे प्रकाशित है, इसीके प्रकाशसे तीनों लोक प्रकाशित हैं। इसमें जीवोंपर निर्दयता करनेवाले पुरुष नहीं जा सकते। यहाँ तो उन्हींकी पहुँच होती है, जो दिन-रात प्राणियोंके कल्याणके लिये शुभ कर्म ही करते रहते हैं ॥ ३६ ॥ जो शान्त, समदर्शी, शुद्ध और सब प्राणियोंको प्रसन्न रखनेवाले हैं तथा भगवद्भक्तोंको ही अपना एकमात्र सच्चा सुहृद् मानते हैं—ऐसे लोग सुगमतासे ही इस भगवद्धामको प्राप्त कर लेते हैं ॥ ३७ ॥
इस प्रकार उत्तानपादके पुत्र भगवत्परायण श्रीध्रुवजी तीनों लोकोंके ऊपर उसकी निर्मल चूडामणिके समान विराजमान हुए ॥ ३८ ॥ कुरुनन्दन ! जिस प्रकार दायँ चलानेके समय खम्भेके चारों ओर बैल घूमते हैं, उसी प्रकार यह गम्भीर वेगवाला ज्योतिश्चक्र उस अविनाशी लोकके आश्रय ही निरन्तर घूमता रहता है ॥ ३९ ॥ उसकी महिमा देखकर देवर्षि नारदने प्रचेताओंकी यज्ञशालामें वीणा बजाकर ये तीन श्लोक गाये थे ॥ ४० ॥
नारदजीने कहा था—इसमें सन्देह नहीं, पतिपरायणा सुनीतिके पुत्र ध्रुवने तपस्याद्वारा अद्भुत शक्ति संचित करके जो गति पायी है, उसे भागवतधर्मोंकी आलोचना करके वेदवादी मुनिगण भी नहीं पा सकते; फिर राजाओंकी तो बात ही क्या है ॥ ४१ ॥ अहो ! वे पाँच वर्षकी अवस्थामें ही सौतेली माताके वाग्बाणोंसे मर्माहत होकर दुखी हृदयसे वनमें चले गये और मेरे उपदेशके अनुसार आचरण करके ही उन अजेय प्रभुको जीत लिया, जो केवल अपने भक्तोंके गुणोंसे ही वशमें होते हैं ॥ ४२ ॥ ध्रुवजीने तो पाँच-छ: वर्षकी अवस्थामें कुछ दिनोंकी तपस्यासे ही भगवान्‌को प्रसन्न करके उनका परमपद प्राप्त कर लिया; किन्तु उनके अधिकृत किये हुए इस पदको भूमण्डलमें कोई दूसरा क्षत्रिय क्या वर्षोंतक तपस्या करके भी पा सकता है ? ॥ ४३ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌹💟🥀ॐ श्रीपरमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण हरि: !!हरि: !!

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