शुक्रवार, 14 नवंबर 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण चतुर्थ स्कन्ध - छब्बीसवां अध्याय..(पोस्ट०१)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
चतुर्थ स्कन्ध – छब्बीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)

राजा पुरञ्जनका शिकार खेलने वनमें जाना और रानीका कुपित होना

नारद उवाच –

स एकदा महेष्वासो रथं पञ्चाश्वमाशुगम् ।
द्वीषं द्विचक्रमेकाक्षं त्रिवेणुं पञ्चबन्धुरम् ॥ १ ॥ 
एकरश्म्येकदमनम् एकनीडं द्विकूबरम् ।
पञ्चप्रहरणं सप्त वरूथं पञ्चविक्रमम् ॥ २ ॥
हैमोपस्करमारुह्य स्वर्णवर्माक्षयेषुधिः ।
एकादशचमूनाथः पञ्चप्रस्थमगाद्वनम् ॥ ३ ॥
चचार मृगयां तत्र दृप्त आत्तेषुकार्मुकः ।
विहाय जायामतदर्हां मृगव्यसनलालसः ॥ ४ ॥
आसुरीं वृत्तिमाश्रित्य घोरात्मा निरनुग्रहः ।
न्यहनन् निशितैर्बाणैः वनेषु वनगोचरान् ॥ ५ ॥
तीर्थेषु प्रतिदृष्टेषु राजा मेध्यान् पशून् वने ।
यावदर्थमलं लुब्धो हन्यादिति नियम्यते ॥ ६ ॥
य एवं कर्म नियतं विद्वान्कुर्वीत मानवः ।
कर्मणा तेन राजेन्द्र ज्ञानेन न स लिप्यते ॥ ७ ॥
अन्यथा कर्म कुर्वाणो मानारूढो निबध्यते ।
गुणप्रवाहपतितो नष्टप्रज्ञो व्रजत्यधः ॥ ८ ॥

श्रीनारदजी कहते हैं—राजन् ! एक दिन राजा पुरञ्जन अपना विशाल धनुष, सोनेका कवच और अक्षय तरकस धारणकर अपने ग्यारहवें सेनापतिके साथ पाँच घोड़ोंके शीघ्रगामी रथमें बैठकर पञ्चप्रस्थ नामके वनमें गया। उस रथमें दो ईषादण्ड (बंब), दो पहिये, एक धुरी, तीन ध्वजदण्ड, पाँच डोरियाँ, एक लगाम, एक सारथि, एक बैठनेका स्थान, दो जुए, पाँच आयुध और सात आवरण थे। वह पाँच प्रकारकी चालोंसे चलता था तथा उसका साज-बाज सब सुनहरा था ॥ १—३ ॥ यद्यपि राजाके लिये अपनी प्रियाको क्षणभर भी छोडऩा कठिन था, किन्तु उस दिन उसे शिकारका ऐसा शौक लगा कि उसकी भी परवा न कर वह बड़े गर्वसे धनुष-बाण चढ़ाकर आखेट करने लगा ॥ ४ ॥ इस समय आसुरीवृत्ति बढ़ जानेसे उसका चित्त बड़ा कठोर और दयाशून्य हो गया था, इससे उसने अपने तीखे बाणोंसे बहुत-से निर्दोष जंगली जानवरोंका वध कर डाला ॥ ५ ॥ जिसकी मांस में अत्यन्त आसक्ति हो, वह राजा केवल शास्त्रप्रदर्शित कर्मोंके लिये वनमें जाकर आवश्यकतानुसार अनिषिद्ध पशुओंका वध करे; व्यर्थ पशुहिंसा न करे। शास्त्र इस प्रकार उच्छृङ्खल प्रवृत्तिको नियन्त्रित करता है ॥ ६ ॥ राजन् ! जो विद्वान् इस प्रकार शास्त्रनियत कर्मोंका आचरण करता है, वह उस कर्मानुष्ठानसे प्राप्त हुए ज्ञानके कारणभूत कर्मोंसे लिप्त नहीं होता ॥ ७ ॥ नहीं तो, मनमाना कर्म करनेसे मनुष्य अभिमानके वशीभूत होकर कर्मोंमें बँध जाता है तथा गुण-प्रवाहरूप संसारचक्रमें पडक़र विवेकबुद्धिके नष्ट हो जानेसे अधम योनियोंमें जन्म लेता है ॥ ८ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌹🍂💟जय श्री हरि: !!🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

    जवाब देंहटाएं

श्रीमद्भागवतमहापुराण चतुर्थ स्कन्ध - छब्बीसवां अध्याय..(पोस्ट०३)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  चतुर्थ स्कन्ध – छब्बीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०३) राजा पुरञ्जनका शिकार खेलने वनमें जाना और रानीका ...