॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
पंचम स्कन्ध – पहला अध्याय..(पोस्ट०५)
प्रियव्रत-चरित्र
एवमुपशमायनेषु स्वतनयेष्वथ जगतीपतिर्जगतीमर्बुदान्येकादश परिवत्सराणामव्याहताखिलपुरुषकारसारसम्भृतदोर्दण्डयुगलापीडितमौर्वीगुणस्तनितविरमित धर्मप्रतिपक्षो बर्हिष्मत्याश्चानुदिनमेधमानप्रमोदप्रसरणयौषिण्यव्रीडाप्रमुषित हासावलोकरुचिरक्ष्वेल्यादिभिः पराभूयमानविवेक इवानवबुध्यमान इव महामना बुभुजे ||२९||
यावदवभासयति सुरगिरिमनुपरिक्रामन् भगवानादित्यो वसुधातलमर्धेनैव प्रतपत्यर्धेनावच्छादयति तदा हि भगवदुपासनोपचितातिपुरुष प्रभावस्तदनभिनन्दन्समजवेन रथेन ज्योतिर्मयेन रजनीमपि दिनं करिष्यामीति सप्त कृत्वस्तरणिमनुपर्यक्रामद्द्वितीय इव पतङ्गः ||३०||
ये वा उ ह तद्रथचरणनेमिकृतपरिखातास्ते सप्त सिन्धव आसन्यत एव कृताः सप्त भुवो द्वीपाः ||३१||
जम्बूप्लक्षशाल्मलिकुशक्रौञ्चशाकपुष्करसंज्ञास्तेषां परिमाणं पूर्वस्मात्पूर्वस्मादुत्तर उत्तरो यथासङ्ख्यं द्विगुणमानेन बहिः समन्तत उपकॢप्ताः ||३२||
क्षारोदेक्षुरसोदसुरोदघृतोतोदक्षीरोदधिमंडोदशुद्धोदा:सप्तजलधय:सप्तद्वीपपरिखा इवाभ्यंतर-
द्वीपसमाना एकैकश्येन यथानुपूर्वं सप्तस्वपि बहिर्द्वीपेषु पृथक् परित उपकल्पितास्तेषु
जम्ब्वादिषु बर्हिष्मतीपतिरनुव्रतानात्मजानाग्नीध्रेध्मजिह्वयज्ञबाहु-हिरण्यरेतोघृतपृष्ठमेधातिथिवीतिहोत्रसंज्ञान्
यथासंख्येनैकैकस्मिन्नेकमेवाधिपतिं विदधे || ३३||
दुहितरं चोर्जस्वतीं नामोशनसे प्रायच्छद्यस्यामासीद्देवयानी नाम काव्यसुता ||३४||
इस प्रकार कवि आदि तीन पुत्रोंके निवृत्तिपरायण हो जानेपर राजा प्रियव्रतने ग्यारह अर्बुद वर्षोंतक पृथ्वीका शासन किया। जिस समय वे अपनी अखण्ड पुरुषार्थमयी और वीर्यशालिनी भुजाओंसे धनुषकी डोरी खींचकर टङ्कार करते थे, उस समय डर के मारे सभी धर्मद्रोही न जाने कहाँ छिप जाते थे। प्राणप्रिया बर्हिष्मती के दिन-दिन बढऩेवाले आमोद-प्रमोद और अभ्युत्थानादि क्रीडाओं के कारण तथा उसके स्त्रीजनोचित हाव-भाव, लज्जा से संकुचित मन्दहास्ययुक्त चितवन और मन को भाने वाले विनोद आदि से महामना प्रियव्रत विवेकहीन व्यक्ति की भाँति आत्मविस्मृत-से होकर सब भोगों को भोगने लगे। किन्तु वास्तव में ये उनमें आसक्त नहीं थे ॥ २९ ॥
एक बार इन्होंने जब यह देखा कि भगवान् सूर्य सुमेरु की परिक्रमा करते हुए लोकालोकपर्यन्त पृथ्वीके जितने भागको आलोकित करते हैं, उसमेंसे आधा ही प्रकाश में रहता है और आधे में अन्धकार छाया रहता है, तो उन्होंने इसे पसंद नहीं किया। तब उन्होंने यह संकल्प लेकर कि ‘मैं रातको भी दिन बना दूँगा;’ सूर्यके समान ही वेगवान् एक ज्योतिर्मय रथपर चढक़र द्वितीय सूर्यकी ही भाँति उनके पीछे-पीछे पृथ्वीकी सात परिक्रमाएँ कर डालीं। भगवान्की उपासनासे इनका अलौकिक प्रभाव बहुत बढ़ गया था ॥ ३० ॥ उस समय इनके रथके पहियोंसे जो लीकें बनीं, वे ही सात समुद्र हुए; उनसे पृथ्वीमें सात द्वीप हो गये ॥ ३१ ॥ उनके नाम क्रमश: जम्बू, प्लक्ष, शाल्मलि, कुश, क्रौञ्च, शाक और पुष्कर द्वीप हैं। इनमेंसे पहले-पहलेकी अपेक्षा आगे-आगेके द्वीपका परिमाण दूना है और ये समुद्रके बाहरी भागमें पृथ्वीके चारों ओर फैले हुए हैं ॥ ३२ ॥ सात समुद्र क्रमश: खारे जल, ईखके रस, मदिरा, घी, दूध, मट्ठे और मीठे जलसे भरे हुए हैं। ये सातों द्वीपोंकी खाइयोंके समान हैं और परिमाणमें अपने भीतरवाले द्वीपके बराबर हैं। इनमेंसे एक-एक क्रमश: अलग-अलग सातों द्वीपोंको बाहरसे घेरकर स्थित है।[*] बर्हिष्मतीपति महाराज प्रियव्रतने अपने अनुगत पुत्र आग्रीध्र, इध्मजिह्व, यज्ञबाहु, हिरण्यरेता, घृतपृष्ठ, मेधातिथि और वीतिहोत्र में से क्रमश: एक-एक को उक्त जम्बू आदि द्वीपोंमेंसे एक-एकका राजा बनाया ॥ ३३ ॥ उन्होंने अपनी कन्या ऊर्जस्वती का विवाह शुक्राचार्यजी से किया; उसी से शुक्रकन्या देवयानी का जन्म हुआ ॥ ३४ ॥
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[*] इनका क्रम इस प्रकार समझना चाहिये—पहले जम्बूद्वीप है, उसके चारों ओर क्षार समुद्र है। वह प्लक्षद्वीप से घिरा हुआ है, उसके चारों ओर ईख के रस का समुद्र है। उसे शाल्मलिद्वीप घेरे हुए है, उसके चारों ओर मदिराका समुद्र है। फिर कुशद्वीप है, वह घी के समुद्र से घिरा हुआ है। उसके बाहर क्रौञ्चद्वीप है, उसके चारों ओर दूधका समुद्र है। फिर शाकद्वीप है, उसे मट्ठे का समुद्र घेरे हुए है। उसके चारों ओर पुष्करद्वीप है, वह मीठे जलके समुद्रसे घिरा हुआ है।
शेष आगामी पोस्ट में --
🌹💟🥀ॐश्रीपरमात्मने नमः
जवाब देंहटाएंश्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव: !!
नारायण नारायण हरि: !! हरि: !!
ओम नमो भगवत वासुदेव
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