सोमवार, 8 दिसंबर 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण पंचम स्कन्ध - तीसरा अध्याय..(पोस्ट०२)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
पंचम स्कन्ध – तीसरा अध्याय..(पोस्ट०२)

राजा नाभिका चरित्र

ऋत्विज ऊचुः
अर्हसि मुहुरर्हत्तमार्हणमस्माकमनुपथानां नमो नम इत्येतावत्सदुपशिक्षितं कोऽर्हति पुमान्प्रकृतिगुणव्यतिकरमतिरनीश ईश्वरस्य परस्य प्रकृतिपुरुषयोरर्वाक्तनाभिर्नामरूपाकृतिभीरूपनिरूपणम् ||४||
सकलजननिकायवृजिननिरसनशिवतमप्रवरगुणगणैकदेशकथनादृते ||५||
परिजनानुरागविरचितशबलसंशब्दसलिलसितकिसलतुलसिका दूर्वाङ्कुरैरपि सम्भृतया सपर्यया किल परम परितुष्यसि ||६||
अथानयापि न भवत इज्ययोरुभारभरया समुचितमर्थमिहोपलभामहे ||७||
आत्मन एवानुसवनमञ्जसाव्यतिरेकेण बोभूयमानाशेषपुरुषार्थस्वरूपस्य किन्तु नाथाशिष
आशासानानामेतदभिसंराधनमात्रं भवितुमर्हति ||८||
तद्यथा बालिशानां स्वयमात्मनः श्रेयः परमविदुषां परमपरमपुरुष प्रकर्षकरुणया स्वमहिमानं चापवर्गाख्यमुपकल्पयिष्यन्स्वयं नापचित एवेतरवदिहोपलक्षितः ||९||
अथायमेव वरो ह्यर्हत्तम यर्हि बर्हिषि राजर्षेर्वरदर्षभो भवान्निजपुरुषेक्षणविषय आसीत् ||१०||

ऋत्विजोंने कहा—पूज्यतम ! हम आपके अनुगत भक्त हैं, आप हमारे पुन:-पुन: पूजनीय हैं। किन्तु हम आपकी पूजा करना क्या जानें ? हम तो बार-बार आपको नमस्कार करते हैं—इतना ही हमें महापुरुषोंने सिखाया है। आप प्रकृति और पुरुषसे भी परे हैं। फिर प्राकृत गुणोंके कार्यभूत इस प्रपञ्च में बुद्धि फँस जानेसे आपके गुण-गानमें सर्वथा असमर्थ ऐसा कौन पुरुष है जो प्राकृत नाम, रूप एवं आकृतिके द्वारा आपके स्वरूपका निरूपण कर सके ? आप साक्षात् परमेश्वर हैं ॥ ४ ॥ आपके परम मङ्गलमय गुण सम्पूर्ण जनताके दु:खोंका दमन करनेवाले हैं। यदि कोई उन्हें वर्णन करनेका साहस भी करेगा तो केवल उनके एकदेशका ही वर्णन कर सकेगा ॥ ५ ॥ किन्तु प्रभो ! यदि आपके भक्त प्रेम-गद्गद वाणीसे स्तुति करते हुए सामान्य जल, विशुद्ध पल्लव, तुलसी और दूब के अङ्कुर आदि सामग्रीसे ही आपकी पूजा करते हैं, तो भी आप सब प्रकार सन्तुष्ट हो जाते हैं ॥ ६ ॥ हमें तो अनुरागके सिवा इस द्रव्य-कालादि अनेकों अङ्गोंवाले यज्ञसे भी आपका कोई प्रयोजन नहीं दिखलायी देता; ॥ ७ ॥ क्योंकि आपसे स्वत: ही क्षण-क्षणमें जो सम्पूर्ण पुरुषार्थोंका फलस्वरूप परमानन्द स्वभावत: ही निरन्तर प्रादुर्भूत होता रहता है, आप साक्षात् उसके स्वरूप ही हैं। इस प्रकार यद्यपि आपको इन यज्ञादिसे कोई प्रयोजन नहीं है, तथापि अनेक प्रकारकी कामनाओंकी सिद्धि चाहनेवाले हमलोगोंके लिये तो मनोरथसिद्धिका पर्याप्त साधन यही होना चाहिये ॥ ८ ॥ आप ब्रह्मादि परम पुरुषोंकी अपेक्षा भी परम श्रेष्ठ हैं। हम तो यह भी नहीं जानते कि हमारा परम कल्याण किसमें है, और न हमसे आपकी यथोचित पूजा ही बनी है; तथापि जिस प्रकार तत्त्वज्ञ पुरुष बिना बुलाये भी केवल करुणावश अज्ञानी पुरुषोंके पास चले जाते हैं उसी प्रकार आप भी हमें मोक्षसंज्ञक अपना परमपद और हमारी अभीष्ट वस्तुएँ प्रदान करनेके लिये अन्य साधारण यज्ञदर्शकोंके समान यहाँ प्रकट हुए हैं ॥ ९ ॥ पूज्यतम ! हमें सबसे बड़ा वर तो आपने यही दे दिया कि ब्रह्मादि समस्त वरदायकोंमें श्रेष्ठ होकर भी आप राजर्षि नाभिकी इस यज्ञशालामें साक्षात् हमारे नेत्रोंके सामने प्रकट हो गये ! अब हम और वर क्या माँगें ? ॥ १० ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🍁🥀🍁ॐश्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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