॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
पंचम स्कन्ध – तीसरा अध्याय..(पोस्ट०३)
राजा नाभिका चरित्र
असङ्गनिशितज्ञानानलविधूताशेषमलानां भवत्स्वभावानामात्मारामाणां
मुनीनामनवरतपरिगुणितगुणगण परममङ्गलायनगुणगणकथनोऽसि ||११||
अथ कथञ्चित्स्खलनक्षुत्पतनजृम्भणदुरवस्थानादिषु विवशानां नः स्मरणाय ज्वरमरणदशायामपि सकलकश्मलनिरसनानि तव गुणकृतनामधेयानि वचनगोचराणि भवन्तु ||१२||
किञ्चायं राजर्षिरपत्यकामः प्रजां भवादृशीमाशासान ईश्वरमाशिषां स्वर्गापवर्गयोरपि भवन्तमुपधावति प्रजायामर्थप्रत्ययो धनदमिवाधनः फलीकरणम् ||१३||
को वा इह तेऽपराजितोऽपराजितया माययानवसितपदव्यानावृतमतिर्विषयविषरयानावृतप्रकृतिरनुपासितमहच्चरणः ||१४||
यदु ह वाव तव पुनरदभ्रकर्तरिह समाहूतस्तत्रार्थधियां मन्दानां
नस्तद्यद्देवहेलनं देवदेवार्हसि साम्येन सर्वान्प्रतिवोढुमविदुषाम् ||१५||
प्रभो ! आपके गुणगणोंका गान परम मङ्गलमय है। जिन्होंने वैराग्यसे प्रज्वलित हुई ज्ञानाग्नि के द्वारा अपने अन्त:करणके राग-द्वेषादि सम्पूर्ण मलोंको जला डाला है, अतएव जिनका स्वभाव आपके ही समान शान्त है, वे आत्माराम मुनिगण भी निरन्तर आपके गुणोंका गान ही किया करते हैं ॥ ११ ॥ अत: हम आपसे यही वर माँगते हैं कि गिरने, ठोकर खाने, छींकने अथवा जँभाई लेने और सङ्कटादिके समय एवं ज्वर और मरणादिकी अवस्थाओंमें आपका स्मरण न हो सकनेपर भी किसी प्रकार आपके सकलकलिमलविनाशक ‘भक्तवत्सल’, ‘दीनबन्धु’ आदि गुणद्योतक नामोंका हम उच्चारण कर सकें ॥ १२ ॥ इसके सिवा, कहनेयोग्य न होनेपर भी एक प्रार्थना और है। आप साक्षात् परमेश्वर हैं; स्वर्ग- अपवर्ग आदि ऐसी कोई वस्तु नहीं है, जिसे आप न दे सकें। तथापि जैसे कोई कंगाल किसी धन लुटानेवाले परम उदार पुरुषके पास पहुँचकर भी उससे भूसा ही माँगे, उसी प्रकार हमारे यजमान ये राजर्षि नाभि सन्तानको ही परम पुरुषार्थ मानकर आपके ही समान पुत्र पानेके लिये आपकी आराधना कर रहे हैं ॥ १३ ॥ यह कोई आश्चर्यकी बात नहीं है। आपकी मायाका पार कोई नहीं पा सकता और न वह किसीके वशमें ही आ सकती है। जिन लोगोंने महापुरुषोंके चरणोंका आश्रय नहीं लिया, उनमें ऐसा कौन है जो उसके वश में नहीं होता, उसकी बुद्धि पर उसका परदा नहीं पड़ जाता और विषयरूप विष का वेग उसके स्वभाव को दूषित नहीं कर देता ? ॥ १४ ॥ देवदेव ! आप भक्तों के बड़े-बड़े काम कर देते हैं। हम मन्दमतियों ने कामनावश इस तुच्छ कार्य के लिये आपका आवाहन किया, यह आपका अनादर ही है । किन्तु आप समदर्शी हैं, अत: हम अज्ञानियों की इस धृष्टता को आप क्षमा करें ॥ १५ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
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