ॐ श्रीमन्नारायणाय नम:
अधःगतिको प्राप्त होनेवाले वे जीव हैं, जो अनेक प्रकारके पापोंद्वारा अपना समस्त जीवन कलङ्कित किये हुए होते हैं, उनके अन्तकालकी वासना कर्मानुसार तमोमयी ही होती है, इससे वे नीच गतिको प्राप्त होते हैं।
जो लोग अहंकार, बल, घमण्ड, काम और क्रोधादिके परायण रहते हैं, परनिन्दा करते हैं, अपने तथा पराये सभीके शरीरमें स्थित अन्तर्यामी परमात्मासे द्वेष करते हैं। ऐसे द्वेषी, पापाचारी, क्रूरकर्मी नराधम मनुष्य सृष्टिके नियन्त्रणकर्ता भगवान्के विधानसे बारम्बार आसुरी योनियोंमें उत्पन्न होते हैं और आगे चलकर वे उससे भी अति नीच गतिको प्राप्त होते हैं ( गीता १६ । १८ से २० )।
इस नीच गतिमें प्रधान हेतु काम, क्रोध और लोभ है। इन्हीं तीनोंसे आसुरी सम्पत्तिका संग्रह होता है। भगवान्ने इसीलिये इनका त्याग करनेकी आज्ञा दी है-
त्रिविधं - नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः।
कामः क्रोधस्त्था लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्॥
...............( गीता १६ । २१ )
काम-क्रोध तथा लोभ यह तीन प्रकारके नरकके द्वार अर्थात् सब अनर्थोंके मूल और नरककी प्राप्तिमें हेतु हैं, यह आत्माका नाश करनेवाले यानी उसे अधोगतिमें ले जानेवाले हैं, इससे इन तीनोंको त्याग देना चाहिये।
शेष आगामी पोस्ट में ..........
................००३. ०८. फाल्गुन कृ०११ सं०१९८५. कल्याण (पृ०७९३)