॥ श्रीराधाकृष्णाभ्यां
नमः ॥
गर्गसंहिता-माहात्म्य
पहला अध्याय
गर्गसंहिता के प्राकट्य का उपक्रम
जो श्रीकृष्णको ही देवता ( आराध्य) मानने- वाले वृष्णिवंशियोंके
आचार्य तथा कवियोंमें सर्वश्रेष्ठ हैं, उन महात्मा श्रीमान् गर्गजीको नित्य बारंबार
नमस्कार है ।। १ ।।
शौनकजी बोले- ब्रह्मन् ! मैंने आपके मुखसे पुराणोंका
उत्तम से उत्तम माहात्म्य विस्तारपूर्वक सुना है, वह श्रोत्रेन्द्रियके सुखकी वृद्धि
करनेवाला है। अब गर्गमुनिकी संहिताका जो साररूप माहात्म्य है, उसका प्रयत्नपूर्वक विचार
करके मुझसे वर्णन कीजिये। अहो! जिसमें श्रीराधा-माधवकी महिमाका विविध प्रकारसे वर्णन
किया गया है, वह गर्गमुनिकी भगवल्लीला सम्बन्धिनी संहिता धन्य है । २-४ ॥ सूतजी कहते
हैं- अहो शौनक ! इस माहात्म्य को मैंने नारदजीसे सुना है। इसे सम्मोहन - तन्त्रमें
शिवजीने पार्वतीसे वर्णन किया था। कैलास पर्वतके निर्मल शिखरपर, जहाँ अलकनन्दाके तटपर
अक्षयवट विद्यमान है, उसकी छायामें शंकरजी नित्य विराजते हैं। एक समयकी बात है, सम्पूर्ण
मङ्गलोंकी अधिष्ठात्री देवी गिरिजाने प्रसन्नतापूर्वक भगवान् शंकरसे अपनी मनभावनी बात
पूछी, जिसे वहाँ उपस्थित सिद्धगण भी सुन रहे थे ।। ५- ७ ॥
पार्वतीने पूछा - नाथ! जिसका आप इस प्रकार ध्यान करते
रहते हैं, उसके उत्कृष्ट चरित्र तथा जन्म कर्मके रहस्यका मेरे समक्ष वर्णन कीजिये ।
कष्टहारी शंकर ! पूर्वकालमें मैंने साक्षात् आपके मुखसे श्रीमान् गोपालदेवके सहस्रनामको
सुना है। अब मुझे उनकी कथा सुनाइये ।। ८-९ ॥
महादेवजी बोले- सर्वमङ्गले राधापति परमात्मा गोपालकृष्णकी
कथा गर्ग संहितामें सुनी जाती है ॥ १० ॥
पार्वतीने पूछा - शंकर पुराण और संहिताएँ तो अनेक हैं,
परंतु आप उन सबका परित्याग करके गर्ग- संहिताकी ही प्रशंसा करते हैं, उसमें भगवान् की किस लीलाका वर्णन है, उसे विस्तारपूर्वक बतलाइये । पूर्वकालमें किसके द्वारा प्रेरित
होकर गर्गमुनिने इस संहिताकी रचना की थी ? देव ! इसके श्रवणसे कौन- सा पुण्य होता है
तथा किस फलकी प्राप्ति होती है ? प्राचीनकालमें किन-किन लोगोंने इसका श्रवण किया है?
प्रभो ! यह सब मुझे बताइये ॥। ११ - १३ ॥
सूतजी कहते हैं- अपनी प्रिया पार्वतीका ऐसा कथन सुनकर
भगवान् महेश्वरका चित्त प्रसन्न हो गया। उस समय वे सभामें विराजमान थे। वहीं उन्होंने
गर्गद्वारा रचित कथाका स्मरण करके उत्तर देना आरम्भ किया ॥ १४ ॥
महादेवजी बोले- देवि ! राधा-माधवका तथा गर्ग संहिताका
भी विस्तृत माहात्म्य प्रयत्नपूर्वक श्रवण करो। यह पापका नाश करनेवाला है। जिस समय
भगवान् श्रीकृष्ण भूतलपर अवतीर्ण होनेका विचार कर रहे थे, उसी अवसरपर ब्रह्माके प्रार्थना
करनेपर उन्होंने पहले पहल राधासे अपने चरित्रका वर्णन किया था । तदनन्तर गोलोकमें शेषजीने
(कथा- श्रवणके लिये) प्रार्थना की। तब भगवान् ने प्रसन्नता- पूर्वक पुनः अपनी सम्पूर्ण
कथा उनके सम्मुख कह सुनायी। तत्पश्चात् शेषजीने ब्रह्माको और ब्रह्माने धर्मको यह संहिता
प्रदान की। सर्वमङ्गले ! फिर अपने पुत्र नर-नारायणद्वारा आग्रहपूर्ण प्रार्थना किये
जानेपर धर्मने एकान्तमें उनको इस अमृतस्वरूपिणी कथाका पान कराया था। पुनः नारायणने
धर्मके मुखसे जिस कृष्ण चरित्रका श्रवण किया था, उसे सेवापरायण नारदसे कहा । तदनन्तर
प्रार्थना किये जानेपर नारदने नारायणके मुखसे प्राप्त हुई सारी-की- सारी श्रीकृष्णसंहिता
गर्गाचार्यको कह सुनायी । यों श्रीहरिकी भक्तिसे सराबोर परम ज्ञानको सुनकर गर्गजीने
महात्मा नारदका पूजन किया। पर्वतनन्दिनि । ! तब नारदने भूत-भविष्य वर्तमान- तीनों कालोंके
ज्ञाता गर्गसे यों कहा ।। १५ – २२ ।।
नारदजी बोले - गर्गजी ! मैंने तुम्हें संक्षेपसे श्रीहरिकी
यशोगाथा सुनायी है। यह वैष्णवोंके लिये परम प्रिय है। अब तुम इसका विस्तारपूर्वक वर्णन
करो। विभो ! तुम ऐसे परम अद्भुत शास्त्रकी रचना करो, जो सबकी कामनाओंको पूर्ण करनेवाला,
निरन्तर कृष्णभक्तिकी वृद्धि करनेवाला तथा मुझे परम प्रिय लगे। विप्रेन्द्र ! मेरी
आज्ञा मानकर कृष्णद्वैपायन व्यासने श्रीमद्भागवतकी रचना की, जो समस्त शास्त्रों में
परम श्रेष्ठ है। ब्रह्मन् ! जिस प्रकार मैं भागवतकी रक्षा करता हूँ, उसी तरह तुम्हारे
द्वारा रचित शास्त्रको राजा बहुलाश्वको सुनाऊँगा । २३ - २६ ॥
इस प्रकार श्रीसम्मोहन-तन्त्र में पार्वती-शंकर-संवाद में 'श्रीगर्गसंहिता का माहात्म्य' विषयक प्रथम अध्याय पूरा हुआ ॥ १ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता पुस्तक कोड 2260 से