बुधवार, 13 मार्च 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण प्रथम स्कन्ध - आठवां अध्याय..(पोस्ट..०५)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ 

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
प्रथम स्कन्ध--आठवाँ अध्याय..(पोस्ट ०५)

गर्भ में परीक्षित्‌ की रक्षा, कुन्ती के द्वारा भगवान्‌ की स्तुति और युधिष्ठिर का शोक

यथा हृषीकेश खलेन देवकी
     कंसेन रुद्धातिचिरं शुचार्पिता ।
विमोचिताहं च सहात्मजा विभो
     त्वयैव नाथेन मुहुर्विपद्‍गणात् ॥ २३ ॥
विषान्महाग्नेः पुरुषाददर्शनाद्
     असत्सभाया वनवासकृच्छ्रतः ।
मृधे मृधेऽनेकमहारथास्त्रतो
     द्रौण्यस्त्रतश्चास्म हरेऽभिरक्षिताः ॥ २४ ॥
विपदः सन्तु ताः शश्वत् तत्र तत्र जगद्‍गुरो ।
भवतो दर्शनं यत्स्याद् अपुनर्भवदर्शनम् ॥ २५ ॥

(कुन्ती श्रीकृष्ण से कह रही हैं) हृषीकेश ! जैसे आपने दुष्ट कंसके द्वारा कैद की हुई और चिरकालसे शोकग्रस्त देवकीकी रक्षा की थी, वैसे ही पुत्रोंके साथ मेरी भी आपने बार-बार विपत्तियोंसे रक्षा की है। आप ही हमारे स्वामी हैं। आप सर्वशक्तिमान् हैं। श्रीकृष्ण ! कहाँ तक गिनाऊँ—विष से, लाक्षागृहकी भयानक आग से, हिडिम्ब आदि राक्षसों की दृष्टि से, दुष्टों की द्यूत-सभा से, वनवास की विपत्तियों से और अनेक बार के युद्धोंमें अनेक महारथियों के शस्त्रास्त्रों से और अभी-अभी इस अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र से भी आपने ही हमारी रक्षा की है ॥ २३-२४ ॥ जगद्गुरो ! हमारे जीवन में सर्वदा पद-पदपर विपत्तियाँ आती रहें; क्योंकि विपत्तियों में ही निश्चितरूप से आपके दर्शन हुआ करते हैं और आपके दर्शन हो जानेपर फिर जन्म-मृत्युके चक्कर में नहीं आना पड़ता ॥ २५ ॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्ट संस्करण)  पुस्तक कोड 1535 से


2 टिप्‍पणियां:

  1. 🌼🍂🌻🥀जय श्री हरि:🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    हरि:शरणम् हरि:शरणम् हरि: शरणम् 🥀🙏

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