|| ॐ श्री परमात्मने नम: ||
भजन में दिखावा..(01)
भगवान् का नाम प्रेमपूर्वक लेता रहे, नेत्रोंसे जल झरता रहे, हृदय में स्नेह उमड़ता रहे, रोमांच होता रहे तो देखो, उनमें कितनी विलक्षणता आ जाती है, पर वही दूसरों को दिखाने के लिये, दूसरों को सुनाने के लिये करेंगे तो उसका मूल्य घट जायगा । यह चीज औरों को दिखाने की नहीं है । धन तिजोरी में रखने का होता है । किसी ने एक सेठ से पूछा‒‘तुम घरमें रहते हो या दूकान में ? कहाँ सोते हो ? ’ तो सेठने कहा‒ ‘हम हाट में सो वें, बाट में सोवें, घर में सोवें, सोवें और न भी सोवें ।’
अगर हम कहें कि दूकान में सोते हैं तो घर में चोरी कर लेगा ! घर में सोने की कहें तो दूकान में चोरी कर लेगा । अर्थ यह हुआ कि तुम चोरी करने मत आना । लौकिक धनके लिये इतनी सावधानी है कि साफ नहीं कह सकते हो कि कहाँ सोते हैं ? और नाम के लिये इतनी उदारता कि लोगों को दिखावें ! राम, राम, राम ! कितनी बेसमझी है ! यह क्या बात है ? नाम को धन नहीं समझा है । इसको धन समझते तो गुप्त रखते ।
अगर हम कहें कि दूकान में सोते हैं तो घर में चोरी कर लेगा ! घर में सोने की कहें तो दूकान में चोरी कर लेगा । अर्थ यह हुआ कि तुम चोरी करने मत आना । लौकिक धनके लिये इतनी सावधानी है कि साफ नहीं कह सकते हो कि कहाँ सोते हैं ? और नाम के लिये इतनी उदारता कि लोगों को दिखावें ! राम, राम, राम ! कितनी बेसमझी है ! यह क्या बात है ? नाम को धन नहीं समझा है । इसको धन समझते तो गुप्त रखते ।
एक राजा भगवान्के बड़े भक्त थे, वे गुप्त रीति से भगवान् का भजन करते थे । उनकी रानी भी बड़ी भक्त थी । बचपन से ही वह भजन में लगी हुई थी । इस राजा के यहाँ ब्याहकर आयी तो यहाँ भी ठाकुरजी का खूब उत्सव मनाती,ब्राह्मणों की सेवा, दीन-दुःखियों की सेवा करती; भजन-ध्यानमें, उत्सवमें लगी रहती । राजा साहब उसे मना नहीं करते । वह रानी कभी-कभी कहती कि ‘महाराज ! आप भी कभी-कभी राम-राम‒ऐसे भगवान् का नाम तो लिया करो ।’ वे हँस दिया करते । रानी के मनमें इस बात का बड़ा दुःख रहता कि क्या करें, और सब बड़ा अच्छा है । मेरे को सत्संग, भजन, ध्यान करते हुए मना नहीं करते; परन्तु राजा साहब स्वयं भजन नहीं करते ।
ऐसे होते-होते एक बार रानीने देखा कि राजा साहब गहरी नींद में सोये हैं । करवट बदली तो नींद में ही ‘राम’ नाम कह दिया । अब सुबह होते ही रानी ने उत्सव मनाया । बहुत ब्राह्मणों को निमन्त्रण दिया; बच्चों को, कन्याओं को भोजन कराया, उत्सव मनाया । राजासाहब ने पूछा‒‘आज उत्सव किस का मना रही हो ?आज तो ठाकुरजीका भी कोई दिन विशेष नहीं है ।’ रानी ने कहा‒‘आज हमारे बहुत ही खुशी की बात है ।’ क्या खुशीकी बात है ? ‘महाराज ! बरसोंसे मेरे मन में था कि आप भगवान् का नाम उच्चारण करें । रात में आपके मुख से नींद में भगवान् का नाम निकला ।’ निकल गया ? ‘हाँ’ इतना कहते ही राजा के प्राण निकल गये । ‘अरे मैंने उमर भर जिसे छिपा कर रखा था, आज निकल गया तो अब क्या जीना ?’
राम ! राम !! राम !!!
(शेष आगामी पोस्ट में )
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित, श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी की “मानस में नाम-वन्दना” पुस्तकसे
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित, श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी की “मानस में नाम-वन्दना” पुस्तकसे
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें