जय सियाराम जय जय सियाराम ! विघ्न विनाशक जय हनुमान !!
शंकर सुवन केसरी नन्दन । तेज प्रताप महा जगवन्दन ।।
हनुमान् जी साक्षात् शंकर जी या उनके अंशरूप में !
पवननन्दन हनुमान जी का चरित भगवान श्रीराम चंद्र जी से इतना अनुस्यूत है कि श्रीराम चर्चा के प्रसंग में मारुति चर्चा अनिवार्य है | पौराणिक आख्यानों में हनुमान जी का यथार्थ परिचय मिलता है |
हनुमान जी कहीं शंकरजी के अंशरूप में और कहीं साक्षात् शंकर जी के रूप में वर्णित किये गए हैं | इसके प्रमाणस्वरूप शिवपुराण की “शतरुद्रसंहिता” के बीसवें अध्याय का अनुशीलन करना चाहिए | वहाँ हनुमान जी की जन्म-कथा का विशिष्ट उल्लेख है | श्रीराम कार्य की सिद्धि के लिए शिवजी ने स्वयं हनुमान जी का रूप धारण किया था | दानवों को मोह में डालने के लिए विष्णु ने जब मोहिनीरूप धारण किया, तब उस रूप के अलोकसामान्य सौंदर्य पर शिवजी विक्षुब्ध हो गए | उस अंत: क्षोभ से स्खलित शिववीर्य को सप्तॠषियों ने कानों के मार्ग से गौतम की पुत्री अञ्जना के गर्भ में संक्रान्त कर दिया और इस गर्भ से हनुमान जी का जन्म हुआ | इस प्रकार हनुमान जी शिवजी के वीर्योत्पन्न पुत्र हैं | हनुमान जी के ‘शंकरसुवन’ होने के प्रसिद्धि केवल भारतवर्ष तक ही सीमित नहीं है प्रत्युत् वह बृहत्तर भारत के ‘मलय एशिया’ देश में भी फ़ैली है | इसका पूर्ण विवरण वहाँ के प्रचलित रामायण में उपलब्ध होता है | सूर्य को फल मानकर खाना, सूर्य से सब विद्याएँ सीखना और सूर्य के आदेश पर सुग्रीव की सेवा में उपस्थित होना—ये समग्र घटनाएं “शतरुद्र संहिता” के बीसवें अध्याय में विस्तार से वर्णित हैं |
“बृहद्धर्म पुराण” में वर्णित रामायण कथा देवी-तंत्र के द्वारा प्रभावित हुआ है | इसके १८ वें अध्याय में वर्णन मिलता है कि शिव-पार्वती, रावण की रक्षा के लिए लंका में निवास करते थे | उनके पास देवगण रावण के अत्याचार की कथा सुनाने के लिए गए | तब सीता के अपमान से खुब्ध होकर, पार्वती ने लंका छोडने की बात कही | श्री राम-काज की सिद्धि के लिए शिवजी ने हनुमान बनना स्वीकार किया एवं ब्रह्मा ने जाम्बवान् तथा धर्म ने विभीषण रूप धारण किया | इस पुराण के २० वें अध्याय में हनुमान जी के शिव रूप होने का प्रमाण प्रस्तुत किया गया है | अशोक-वाटिका में जब हनुमान जी ने चण्डिका-मन्दिर को देखा, तब अपने को शिवजी का रूप बतलाकर, देवी से लंका को छोडने के लिए आग्रह किया | हनुमान जी ( शिव ) ने अपने विश्वरूप का दर्शन कराया, जिसमें देवी ने रावण की सेना को संकट में और श्रीराम की सेना को सफल रूप में देखा | इस प्रकार पौराणिक-साक्ष्य पर हनुमानजी शिवजी के साक्षात् अवतार सिद्ध होते हैं | यह “बृहद्धर्म पुराण” उपपुराणों के अंतर्गत माना जाता है |
स्कंदपुराण का अवन्तीखंड कहता है कि हनुमान जी से बढ़कर जगत में कोई भी प्राणी नहीं है | किसी भी दृष्टि से –चाहे पराक्रम,उत्साह,मति और प्रताप को देखें, चाहे सुशीलता, माधुर्य तथा नीति को परखें , चाहे गाम्भीर्य, चातुर्य, सुवीर्य और धैर्य पर दृष्टि डालें, हनुमान जी के सदृश इस विशाल ब्रह्माण्ड में कोई प्राणी है ही नहीं | विक्षुब्ध महासागर, सम्पूर्ण लोकों को दग्ध कर डालने के लिए उद्यत हुए संवर्तक अग्नि तथा प्रजाओं का संहार करने के लिए उठे हुए काल के समान प्रभावशाली इन हनुमान जी के सामने कौन ठहर सकेगा !
“पराक्रमोत्साहमतिप्रतापै:
सौशील्यमाधुर्यनयादिकैश्च |
गाम्भीर्यचातुर्यसुवीर्यधैर्यै-
र्हनुमत:कोऽप्यधिकोऽस्ति लोके ||
ममेव विक्षोभितसागरस्य
लोकान् दिधक्षोरिव पावकस्य |
प्रजां जिहीर्षोरिव चान्तकस्य
हनूमत: स्थास्यति क: पुरस्तात् ||” (७९/४२.४३)
सौशील्यमाधुर्यनयादिकैश्च |
गाम्भीर्यचातुर्यसुवीर्यधैर्यै-
र्हनुमत:कोऽप्यधिकोऽस्ति लोके ||
ममेव विक्षोभितसागरस्य
लोकान् दिधक्षोरिव पावकस्य |
प्रजां जिहीर्षोरिव चान्तकस्य
हनूमत: स्थास्यति क: पुरस्तात् ||” (७९/४२.४३)
(कल्याण- श्री हनुमान-अंक)
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