मंगलवार, 5 दिसंबर 2017

भजनमें दिखावा..(02)



|| ॐ श्री परमात्मने नम: ||
भजनमें दिखावा..(02)
“गुप्त अकाम निरन्तर ध्यान सहित सानन्द ।
आदर जुत जपसे तुरत पावत परमानन्द ॥“
ये छः बातें जिस जप में होती हैं, उस जप का तुरन्त और विशेष माहात्म्य होता है । भगवान्‌ का नाम गुप्त रीति से लिया जाय, वह बढ़िया है । लोग देखें ही नहीं, पता ही न लगे‒यह बढ़िया बात है परंतु कम-से-कम दिखावटीपन तो होना ही नहीं चाहिये । इससे असली नाम-जप नहीं होता । नाम का निरादर होता है ।नामके बदले मान-बड़ाई खरीदते हैं, आदर खरीदते हैं, लोगों को अपनी तरफ खींचते हैं‒यह नाम महाराज की बिक्री करना है । यह बिक्री की चीज थोड़े ही है ! नाम जैसा धन, बताने के लिये है क्या ? लौकिक धन भी लोग नहीं बताते, खूब छिपाकर रखते हैं । यह तो भीतर रखनेका है, असली धन है ।
“माई मेरे निरधनको धन राम ।
रामनाम मेरे हृदयमें राखूं ज्यूं लोभी राखे दाम ॥
दिन दिन सूरज सवायो उगे, घटत न एक छदाम ।
सूरदास के इतनी पूँजी, रतन मणि से नहीं काम ॥“
यह अपने हृदय की बात है । मेरे निर्धन का धन यही है । कैसा बढ़िया धन है यह ! अन्त में कहते हैं यह जो रत्न-मणि, सोना आदि है, इनसे मेरे मतलब नहीं है । ये पत्थर के टुकड़े हैं । इनसे क्या काम ! निर्धन का असली धन तो ‘राम’ नाम है ।
“धनवन्ता सोइ जानिये जाके ‘राम’ नाम धन होय ।“
यह धन जिसके पास है, वही धनी है । उसके बिना कंगले हैं सभी ।
“सम्मीलने नयनयोर्न हि किञ्चिदस्ति ।
करोड़ों रुपये आज पास में हैं, पर ये दोनों आँखें सदा के लिये जिस दिन बन्द हो गयीं, उस दिन कुछ नहीं है । सब यहाँ का यहीं रह जायगा ।
“सुपना सो हो जावसी सुत कुटुम्ब धन धाम ।“
यह स्वप्न की तरह हो जायगा । आँख खुलते ही स्वप्न कुछ नहीं और आँख मिचते ही यहाँ का धन कुछ नहीं ।
स्थूल बुद्धिवाले बिना समझे कह देते हैं कि ‘राम’ नामसे क्या होता है ? वे बेचारे इस बात को जानते नहीं, उन्हें पता ही नहीं है । इस विद्या को जानने वाले ही जानते हैं भाई ! सच्ची लगन जिसके लगी है वह जानता है । दूसरों को क्या पता ?
‘जिसके लागी है सोई जाने दूजा क्या जाने रे भाई’
…भगवान्‌ का नाम लेनेवालों का बड़े-बड़े लोकों में जहाँ जाते हैं, वहाँ आदर होता है कि भगवान्‌ के भक्त पधारे हैं । हमारा लोक पवित्र हो जाय । भगवन्नाम से रोम-रोम, कण-कण पवित्र हो जाता है, महान् पवित्रता छा जाती है । ऐसा भगवान्‌ का नाम है । जिसके हृदयमें नामके प्रति प्रेम जाग्रत् हो गया, वह असली धनी है । इससे भगवान् प्रकट हो जाते हैं । वह खुद ऐसा विलक्षण हो जाता है कि उसके दर्शन, स्पर्श, भाषण से दूसरों पर असर पड़ता है । नाम लेनेवाले सन्त-महात्माओं के दर्शनसे शान्ति मिलती है । अशान्ति दूर हो जाती है, शोक-चिन्ता दूर हो जाते हैं और पापोंका नाश हो जाता है । जहाँ वे रहते हैं, वे धाम पवित्र हो जाते हैं और जहाँ वे चलते हैं वहाँ का वायुमण्डल पवित्र हो जाता है ।
राम ! राम !! राम !!!
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित, श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी की “मानस में नाम-वन्दना” पुस्तकसे


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