।। जय श्रीहरिः ।।
भगवान् विष्णु .....(पोस्ट.०२)
वे परमात्मा स्वयं विभाग-रहित होने पर भी अलग-अलग प्राणियों में विभक्त की तरह प्रतीत होते हैं । वे सम्पूर्ण जगत्को प्रकाशित करते हैं, पर उनको कोई प्रकाशित नहीं कर सकता । वे ज्ञानस्वरूप, प्रकाशस्वरूप परमात्मा सब के हृदय में नित्य-निरन्तर विद्यमान हैं ।
ऐसे वे जानने योग्य एक परमात्मा ही रजोगुण की प्रधानता स्वीकार करके ब्रह्मारूप से सबको उत्पन्न करते हैं, सत्त्वगुण की प्रधानता स्वीकार करके विष्णुरूप से सब का भरण-पोषण करते हैं और तमोगुण की प्रधानता स्वीकार करके शिवरूप से सब का संहार करते हैं‒
‘भूतभर्तृ च तज्ज्ञेयं ग्रसिष्णु प्रभविष्णु च’ (गीता १३ । १६) [†] ।
ऐसा करनेपर भी वे सम्पूर्ण गुणोंसे रहित और निर्लिप्त रहते हैं । वे परब्रह्म परमात्मा ही सगुणरूप में ‘महाविष्णु’ नाम से कहे जाते हैं । अनन्त ब्रह्माण्डों की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय करने वाले ब्रह्मा, विष्णु और महेश अनन्त हैं, पर महाविष्णु एक ही है । उस महाविष्णु से ही अलग-अलग ब्रह्माण्डों के अलग-अलग ब्रह्मा, विष्णु और महेश प्रकट होते हैं‒
‘संभु बिरंचि बिष्नु भगवाना ।
उपजहिं जासु अंस तें नाना ॥‘
.....................(मानस १ । १४४ । ३)
उपजहिं जासु अंस तें नाना ॥‘
.....................(मानस १ । १४४ । ३)
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[†] ‘सृष्टिस्थित्यन्तकरणाद् ब्रह्माविष्णुशिवात्मक:| ससंज्ञां याति भगवानेक एव जनार्दन:||’...................(पद्मपुराण सृष्टि ० २.११४)
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....अर्थात् एक ही भगवान् जनार्दन सृष्टि, पालन और संहार करने के कारण ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव का नाम धारण करते हैं |
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....अर्थात् एक ही भगवान् जनार्दन सृष्टि, पालन और संहार करने के कारण ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव का नाम धारण करते हैं |
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
(शेष आगामी पोस्ट में)
‒---- गीता प्रेस,गोरखपुर से प्रकाशित ‘कल्याण-पथ’ पुस्तक से
‒---- गीता प्रेस,गोरखपुर से प्रकाशित ‘कल्याण-पथ’ पुस्तक से
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