जय सियाराम जय सियाराम जय सियाराम जय जय सियाराम
“कलि मल मथन नाम ममताहन। तुलसिदास प्रभु पाहि प्रनत जन।।“
(आपका नाम कलियुग के पापों को मथ डालनेवाला और ममता को मारनेवाला है। हे तुलसीदासके प्रभु ! शरणागतकी रक्षा कीजिये)
कलियुग में न वर्ण धर्म रहता है, न चारों आश्रम रहते हैं। सब स्त्री पुरुष वेद के विरोध में लगे रहते हैं। ब्राह्मण वेदों के बेचने वाले और राजा प्रजा को खा डालने वाले होते हैं। वेद की आज्ञा कोई नहीं मानता।। जो आचारहीन है और वेदमार्ग के छोड़े हुए है, कलियुग में वही ज्ञानी और वही वैराग्यवान् है। जिसके बड़े-बड़े नख और लम्बी-लम्बी जटाएँ हैं, वही कलियुग में प्रसिद्ध तपस्वी है।। जो अमंगल वेष और अमंगल भूषण धारण करते हैं और खाने योग्य और न खाने योग्य, सब कुछ खा लेते हैं, वे ही सिद्ध हैं और वे ही मनुष्य कलियुग में पूज्य हैं।। जिनके आचरण दूसरों का अहित करनेवाले हैं, उन्हें ही बड़ा गौरव होता है। और वे ही सम्मान के योग्य होते हैं। जो मन, वचन और कर्म से झूठ बकनेवाले है, वे ही कलियुग में वक्ता माने जाते हैं।।
कोई बहिन-बेटी का भी विचार नहीं करता। लोगों में न सन्तोष है, न विवेक है और न शीतलता है। सभी मनुष्य स्त्रियों के विशेष वश में हैं और मदारी के बंदर की तरह उनके नचाये नाचते हैं। सभी पुरुष काम और लोभ में तत्पर और क्रोधी होते हैं। देवता, ब्राह्मण, वेद और संतों के विरोधी होते हैं। अभागिनी स्त्रियाँ गुणों के धाम सुन्दर पति को छोड़कर परपुरुष का सेवन करती हैं।। कोई बहिन-बेटी का भी विचार नहीं करता। लोगों में न सन्तोष है, न विवेक है और न शीतलता है।
शिष्य और गुरु में बहरे और अंधे का-सा हिसाब होता है। एक शिष्य गुरुके उपदेश को सुनता नहीं, एक गुरु देखता नहीं अर्थात उसे ज्ञानदृष्टि प्राप्त नहीं है।।
जो परायी स्त्री में आसक्त, कपट करने में चतुर और मोह, द्रोह और ममता में लिपटे हुए हैं, वे ही मनुष्य अभेद वादी अर्थात् ब्रह्म और जीवको एक बतानेवाले ज्ञानी हैं।
कलिकाल ने मनुष्य को बेहाल कर डाला !!
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