||श्री परमात्मने नम: ||
विवेक चूडामणि (पोस्ट.०५)
ज्ञानोपलब्धि का उपाय
संन्यस्य सर्वकर्माणि भवबन्धविमुक्तये |
यत्यतां पण्डितैर्धीरैरात्माभ्यास उपस्थितै : ||१०||
(आत्माभ्यास में तत्पर हुए धीर विद्वानों को सम्पूर्ण कर्मों को त्याग कर भवबंधन की निवृत्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए)
चित्तस्य शुद्धये कर्म न तु वस्तूपलब्धये |
वस्तुसिद्धिविचारेण न किंचित् कर्मकोटिभि: ||११||
(कर्म चित्त की शुद्धि के लिए ही है, वस्तूपलब्धि (तत्त्वदृष्टि)- के लिए नहीं | वस्तु-सिद्धि तो विचार से ही होती है, करोड़ों कर्मों से कुछ भी नहीं हो सकता)
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे
विवेक चूडामणि (पोस्ट.०५)
ज्ञानोपलब्धि का उपाय
संन्यस्य सर्वकर्माणि भवबन्धविमुक्तये |
यत्यतां पण्डितैर्धीरैरात्माभ्यास उपस्थितै : ||१०||
(आत्माभ्यास में तत्पर हुए धीर विद्वानों को सम्पूर्ण कर्मों को त्याग कर भवबंधन की निवृत्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए)
चित्तस्य शुद्धये कर्म न तु वस्तूपलब्धये |
वस्तुसिद्धिविचारेण न किंचित् कर्मकोटिभि: ||११||
(कर्म चित्त की शुद्धि के लिए ही है, वस्तूपलब्धि (तत्त्वदृष्टि)- के लिए नहीं | वस्तु-सिद्धि तो विचार से ही होती है, करोड़ों कर्मों से कुछ भी नहीं हो सकता)
नारायण ! नारायण !!
शेष आगामी पोस्ट में
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “विवेक चूडामणि”..हिन्दी अनुवाद सहित(कोड-133) पुस्तकसे
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