ॐ
श्रीमन्नारायणाय नम:
जीवसम्बन्धी प्रश्नोत्तर (पोस्ट 02)
(लेखक: श्री जयदयालजी गोयन्दका)
जीव अपनी पूर्वकी योनिसे, योनिके अनुसार साधनोंद्वारा प्रारब्ध कर्मका फल भोगनेके लिये पूर्वकृत शुभाशुभ कर्मराशि के अनन्त संस्कारोंको साथ लेकर सूक्ष्म शरीरसहित परवश नयी योनिमें आता है। गर्भसे पैदा होनेवाला जीव अपनी योनिका गर्भकाल पूरा होनेपर प्रसूतिरूप अपान वायुकी प्रेरणासे बाहर निकलता है और प्राण निकलनेपर सूक्ष्म शरीर और शुभाशुभ कर्मराशिके संस्कारोंसहित कर्मानुसार भिन्न भिन्न साधनों और मार्गों द्वारा मरणकाल की कर्मजन्य वासना के अनुसार परवशता से भिन्न भिन्न गतियोंको प्राप्त होता है। संक्षेपमें यही सिद्धान्त है। परन्तु इतने शब्दोंसे ही यह बात ठीक समझमें नहीं आती ।
शास्त्रोंके विविध प्रसंगोंमें भिन्न भिन्न वर्णन पढ़कर भ्रमसा हो जाता है, इसलिये कुछ विस्तार से विवेचन किया जाता है-
तीन प्रकारकी गति
भगवान्ने श्रीगीताजीमें मनुष्यकी तीन गतियां बतलायी हैं।---अधः, मध्य और ऊर्ध्व । तमोगुणसे नीची, रजोगुणसे बीचकी और सतोगुणसे ऊंची गति प्राप्त होती है। भगवान्ने कहा है-
ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः।
जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसाः॥
……………( गीता १४ । १८ )
‘सत्त्वगुणमें स्थित हुए पुरुष स्वर्गादि उच्च लोकोंको जाते हैं, रजोगुणमें स्थित राजस पुरुष मध्यमें अर्थात् मनुष्य लोकमें ही रहते हैं एवं तमोगुणके कार्यरूप निद्रा प्रमाद और आलस्यादिमें स्थित हुए तामस पुरुष, अधोगति अर्थात् कीट, पशु आदि नीच योनियोंको प्राप्त होते हैं।’ यह स्मरण रखना चाहिये कि, तीनों गुणोंमेंसे किसी एक या दोका सर्वथा नाश नहीं होता , संग और कर्मोंके अनुसार कोईसा एक गुण बढ़कर शेष दोनों गुणोंको दबा लेता है। तमोगुणी पुरुषोंकी संगति और तमोगुणी कार्योंसे तमोगुण बढ़कर रज और सत्त्वको दबाता है, रजोगुणी संगति और कार्यों से रजोगुण बढ़कर तम और सत्त्वको दबा लेता है तथा इसीप्रकार सतोगुणी संगति और कार्यों से सत्त्वगुण बढ़कर रज और तमको दबा लेता है ( गीता १४ । १० )। जिस समय जो गुण बढ़ा हुआ होता है, उसी में मनुष्य की स्थिति समझी जाती है और जिस स्थिति में मृत्यु होती है, उसी के अनुसार उसकी गति होती है। यह नियम है कि अन्तकालमें मनुष्य जिस भाव का स्मरण करता हुआ शरीरका त्याग करता है, उसीप्रकार के भाव को वह प्राप्त होता है। ( गीता ८ । ६ )। सतोगुण में स्थिति होनेसे ही अन्तकाल में शुभ भावना या वासना होती है। शुभ वासनामें सत्त्वगुणकी वृद्धि में मृत्यु होनेसे मनुष्य निर्मल ऊर्ध्व के लोकों को जाता है।
शेष आगामी पोस्ट में ..........
................००३. ०८. फाल्गुन कृ०११ सं०१९८५. कल्याण (पृ०७९३)
जीवसम्बन्धी प्रश्नोत्तर (पोस्ट 02)
(लेखक: श्री जयदयालजी गोयन्दका)
जीव अपनी पूर्वकी योनिसे, योनिके अनुसार साधनोंद्वारा प्रारब्ध कर्मका फल भोगनेके लिये पूर्वकृत शुभाशुभ कर्मराशि के अनन्त संस्कारोंको साथ लेकर सूक्ष्म शरीरसहित परवश नयी योनिमें आता है। गर्भसे पैदा होनेवाला जीव अपनी योनिका गर्भकाल पूरा होनेपर प्रसूतिरूप अपान वायुकी प्रेरणासे बाहर निकलता है और प्राण निकलनेपर सूक्ष्म शरीर और शुभाशुभ कर्मराशिके संस्कारोंसहित कर्मानुसार भिन्न भिन्न साधनों और मार्गों द्वारा मरणकाल की कर्मजन्य वासना के अनुसार परवशता से भिन्न भिन्न गतियोंको प्राप्त होता है। संक्षेपमें यही सिद्धान्त है। परन्तु इतने शब्दोंसे ही यह बात ठीक समझमें नहीं आती ।
शास्त्रोंके विविध प्रसंगोंमें भिन्न भिन्न वर्णन पढ़कर भ्रमसा हो जाता है, इसलिये कुछ विस्तार से विवेचन किया जाता है-
तीन प्रकारकी गति
भगवान्ने श्रीगीताजीमें मनुष्यकी तीन गतियां बतलायी हैं।---अधः, मध्य और ऊर्ध्व । तमोगुणसे नीची, रजोगुणसे बीचकी और सतोगुणसे ऊंची गति प्राप्त होती है। भगवान्ने कहा है-
ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः।
जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसाः॥
……………( गीता १४ । १८ )
‘सत्त्वगुणमें स्थित हुए पुरुष स्वर्गादि उच्च लोकोंको जाते हैं, रजोगुणमें स्थित राजस पुरुष मध्यमें अर्थात् मनुष्य लोकमें ही रहते हैं एवं तमोगुणके कार्यरूप निद्रा प्रमाद और आलस्यादिमें स्थित हुए तामस पुरुष, अधोगति अर्थात् कीट, पशु आदि नीच योनियोंको प्राप्त होते हैं।’ यह स्मरण रखना चाहिये कि, तीनों गुणोंमेंसे किसी एक या दोका सर्वथा नाश नहीं होता , संग और कर्मोंके अनुसार कोईसा एक गुण बढ़कर शेष दोनों गुणोंको दबा लेता है। तमोगुणी पुरुषोंकी संगति और तमोगुणी कार्योंसे तमोगुण बढ़कर रज और सत्त्वको दबाता है, रजोगुणी संगति और कार्यों से रजोगुण बढ़कर तम और सत्त्वको दबा लेता है तथा इसीप्रकार सतोगुणी संगति और कार्यों से सत्त्वगुण बढ़कर रज और तमको दबा लेता है ( गीता १४ । १० )। जिस समय जो गुण बढ़ा हुआ होता है, उसी में मनुष्य की स्थिति समझी जाती है और जिस स्थिति में मृत्यु होती है, उसी के अनुसार उसकी गति होती है। यह नियम है कि अन्तकालमें मनुष्य जिस भाव का स्मरण करता हुआ शरीरका त्याग करता है, उसीप्रकार के भाव को वह प्राप्त होता है। ( गीता ८ । ६ )। सतोगुण में स्थिति होनेसे ही अन्तकाल में शुभ भावना या वासना होती है। शुभ वासनामें सत्त्वगुणकी वृद्धि में मृत्यु होनेसे मनुष्य निर्मल ऊर्ध्व के लोकों को जाता है।
शेष आगामी पोस्ट में ..........
................००३. ०८. फाल्गुन कृ०११ सं०१९८५. कल्याण (पृ०७९३)
जय श्रीहरि
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