ॐ श्रीमन्नारायणाय नम:
जीवसम्बन्धी प्रश्नोत्तर (पोस्ट 01)
(लेखक: श्री जयदयालजी गोयन्दका)
एक सज्जन का प्रश्न है कि ‘इस देहमें जीव कहाँ से, कैसे और क्यों आता है, क्या क्या वस्तुएँ साथ लाता है । गर्भ से बाहर कैसे निकलता है और प्राण निकलने पर कहां कैसे और क्यों जाता है तथा क्या क्या वस्तुएँ साथ ले जाता है ?’ प्रश्नकर्त्ता ने शास्त्रप्रमाण और युक्तियोंसहित उत्तर लिखने का अनुरोध किया है।
प्रश्न वास्तव में बड़ा गहन है, इसका वास्तविक उत्तर तो सर्वज्ञ योगी महात्मागण ही दे सकते हैं, मेरा तो इस विषय पर कुछ लिखना एक विनोद के सदृश है । मैं किसी को यह माननेके लिये आग्रह नहीं करता कि इस प्रश्न पर मैं जो कुछ लिख रहा हूं, सो सर्वथा निर्भ्रान्त और यथार्थ है, क्योंकि ऐसा कहने का मैं कोई अधिकार नहीं रखता । अवश्य ही शास्त्र सन्त महात्माओं के प्रसाद से मैंने अपनी साधारण बुद्धि के अनुसार जो कुछ समझा है, उस में मुझे तत्त्वतः कोई शङ्का नहीं है।
इस विषय में मनस्वियों में बड़ा मतभेद है, जो लोग जीव की सत्ता केवल मृत्यु तक ही समझते हैं और पुनर्जन्म आदि बिल्कुल नहीं मानते, उनकी तो कोई बात ही नहीं है, परन्तु पुनर्जन्म मानने वालों में भी मतभेद की कमी नहीं है। इस अवस्था में अमुक मत ही सर्वथा सत्य है, यह कहने का मैं अपना कोई अधिकार नहीं समझता, तथापि अपने विचारों को नम्रता के साथ पाठकों के सन्मुख इसीलिये रखता हूं, वे इस विषय का मनन अवश्य करें।
वेदान्त के मत से तो संसार माया का कार्य होने से वास्तव में गमनागमन का कोई प्रश्न ही नहीं रह जाता, परन्तु यह सिद्धान्त समझाने की वस्तु नहीं है, यह तो वास्तविक स्थिति है । इस स्थिति में स्थित पुरुष ही इसका यथार्थ रहस्य जानते हैं । जिस यथार्थता में एक शुद्ध सत् चित् आनन्दघन ब्रह्म के सिवा अन्य का सर्वथा अभाव है । उसमें तो कुछ भी कहना सुनना संभव नहीं होता, जहां व्यवहार है, वहां इस स्थिति का सिद्धान्त सामने रखनेमात्र से काम नहीं चलता । वहां सृष्टि, जीव, जीव के कर्म, कर्मानुसार गमनागमन और भोग आदि सभी सत्य हैं। अतएव यही समझकर यहां इस विषयपर कुछ विचार किया जाता है।
शेष आगामी पोस्ट में ..........
................००३. ०८. फाल्गुन कृ०११ सं०१९८५. कल्याण (पृ०७९३)
जीवसम्बन्धी प्रश्नोत्तर (पोस्ट 01)
(लेखक: श्री जयदयालजी गोयन्दका)
एक सज्जन का प्रश्न है कि ‘इस देहमें जीव कहाँ से, कैसे और क्यों आता है, क्या क्या वस्तुएँ साथ लाता है । गर्भ से बाहर कैसे निकलता है और प्राण निकलने पर कहां कैसे और क्यों जाता है तथा क्या क्या वस्तुएँ साथ ले जाता है ?’ प्रश्नकर्त्ता ने शास्त्रप्रमाण और युक्तियोंसहित उत्तर लिखने का अनुरोध किया है।
प्रश्न वास्तव में बड़ा गहन है, इसका वास्तविक उत्तर तो सर्वज्ञ योगी महात्मागण ही दे सकते हैं, मेरा तो इस विषय पर कुछ लिखना एक विनोद के सदृश है । मैं किसी को यह माननेके लिये आग्रह नहीं करता कि इस प्रश्न पर मैं जो कुछ लिख रहा हूं, सो सर्वथा निर्भ्रान्त और यथार्थ है, क्योंकि ऐसा कहने का मैं कोई अधिकार नहीं रखता । अवश्य ही शास्त्र सन्त महात्माओं के प्रसाद से मैंने अपनी साधारण बुद्धि के अनुसार जो कुछ समझा है, उस में मुझे तत्त्वतः कोई शङ्का नहीं है।
इस विषय में मनस्वियों में बड़ा मतभेद है, जो लोग जीव की सत्ता केवल मृत्यु तक ही समझते हैं और पुनर्जन्म आदि बिल्कुल नहीं मानते, उनकी तो कोई बात ही नहीं है, परन्तु पुनर्जन्म मानने वालों में भी मतभेद की कमी नहीं है। इस अवस्था में अमुक मत ही सर्वथा सत्य है, यह कहने का मैं अपना कोई अधिकार नहीं समझता, तथापि अपने विचारों को नम्रता के साथ पाठकों के सन्मुख इसीलिये रखता हूं, वे इस विषय का मनन अवश्य करें।
वेदान्त के मत से तो संसार माया का कार्य होने से वास्तव में गमनागमन का कोई प्रश्न ही नहीं रह जाता, परन्तु यह सिद्धान्त समझाने की वस्तु नहीं है, यह तो वास्तविक स्थिति है । इस स्थिति में स्थित पुरुष ही इसका यथार्थ रहस्य जानते हैं । जिस यथार्थता में एक शुद्ध सत् चित् आनन्दघन ब्रह्म के सिवा अन्य का सर्वथा अभाव है । उसमें तो कुछ भी कहना सुनना संभव नहीं होता, जहां व्यवहार है, वहां इस स्थिति का सिद्धान्त सामने रखनेमात्र से काम नहीं चलता । वहां सृष्टि, जीव, जीव के कर्म, कर्मानुसार गमनागमन और भोग आदि सभी सत्य हैं। अतएव यही समझकर यहां इस विषयपर कुछ विचार किया जाता है।
शेष आगामी पोस्ट में ..........
................००३. ०८. फाल्गुन कृ०११ सं०१९८५. कल्याण (पृ०७९३)
जय श्रीहरि
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